02 March, 2016

" कामना की आग में जला पति और बेटे का बजूद "

गोरखपुर/सेक्स अपराध कथा


टी.सी.विश्वकर्मा
उस दिन सुबह बलरामपुर जिले के उतरौला थाने पर इंस्पेक्टर के पद पर तैनात राजकुमार यादव के घर कंस्ट्रक्शन का काम करने आए मजदूर उनके छोटे भाई ओमप्रकाश यादव को आवाज देते हुए ऊपर पहुंचे तो, कमरे का दरवाजा खुला देख चैक पडे़। इतना आवाज देने के बाद भी अंदर भयावह सन्नाटा छाया हुआ था। यह देख मजदूर रामू का दिन धाड़-धाड़ पसलियों को ठोकर मारने लगा। धड़कते दिल के साथ वह खुले दरवाजे के भीतर दाखिल हुआ। उसकी आंशका निर्मूल नहीं थी। थोड़ा आगे बढ़ते ही बिस्तर पर खून से सनी ओमप्रकाश व उनके बेटे की लाश दिखाई पड़ी। नजारा इतना वीभत्स था कि रामू के मुख से चीख निकल गई और वह "खून....खून..." चिल्लाते हुए उल्टे पांव कमरे से बाहर की तरफ भागने ही वाला था कि बगल के कमरे से ओमप्रकाश की पत्नी अर्चना के चीखने की आवाज आने लगी। वह जोर-जोर से दरवाजा पीटकर दरवाजा खोल देने को कह रही थी। अर्चना के चीखने की आवाज सुनकर रामू चैका, पर डर के कारण वह रूका नहीं और उल्टे पांव नीचे की तरफ भागा।
रामू की चींख इतनी तेज थी कि घर के नीचे रहने वालों के साथ ही आस-पास के लोग चैंक पड़े और जो जैसे था, उसी दशा में चीख की तरफ दौड़ पड़ा। देखते ही देखते काफी संख्या में लोग जमा हो गए। इसी दौरान किसी ने उस कमरे का दरवाजा खोल दिया जिसमें से महिला की दरवाजा पीटने की आवाज आ रही थी। इस बीच किसी ने वारदात की जानकारी पुलिस को भी दे दी।
यह घटना 21 जनवरी 2016 की है। घटनास्थल था गोरखपुर जिले के शाहपुर थानाक्षेत्र का अशोकनगर बशारतपुर क्षेत्र। घटना की जानकारी शाहपुर थाना प्रभारी आनंद प्रकाश शुक्ला को मिली तो आनन-फानन में वह अपने वरिष्ठ अधिकारी डीआईजी आरके चतुर्वेदी व एसएसपी लव कुमार सहित अन्य अधिकारियों के देने के साथ ही दल-बल सहित घटनास्थल पर पहुंच गए।
थाना प्रभारी श्री शुक्ला अभी घटनास्थल पर पहुंचे ही थे कि कुछ ही देर में क्राइम ब्रांच प्रभारी राजेश मिश्रा सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा एसएसपी लव कुमार व डीआईजी आरके चतुर्वेदी भी घटना स्थल पर पहुंच गए। पुलिस अधिकारियों ने मौका मुआयना करने में जुट गये। मृतक ओम प्रकाश घर की दूसरी मंजिल पर बने फ्लैट में रहते थे। अंदर जाने के लिए सीढ़ी के पास एक मुख्य दरवाजा है। मुख्य दरवाजे से सटे कमरे में ओम प्रकाश, बेटे के साथ सोए थे। फ्लैट के मुख्य दरवाजे की बाहर की कुंडी टूटी थी। पुलिस के पल्ले यह बात नहीं पड़ रही थी कि कमरा अंदर से बंद होने पर बाहर की कुंडी तोड़ने का कोई तुक नहीं बनता। बाहर मौजूद व्यक्ति अंदर की कुंडी खुलने या टूटने पर ही अंदर जा सकता है। छत की तरफ खुलने वाले दरवाजे की भी उल्टे तरफ की ही कुंडी टूटी थी।
कमरे में ओमप्रकाश और उनके चार वर्षीय बेटे का सोते समय कत्ल करने के संकेत दिखाई दे रहे थे। क्योंकि कमरे में या विस्तर पर संघर्ष का कोई निशान नहीं था। ओम प्रकाश पीठ के बल सोए थे। उनका सिर तकिये पर बाएं तरफ मुड़ा था। सिर का दाहिना हिस्सा ऊपर था। कातिल ने उसी पर वार किया था। बेटा नितिन भी उनके बगल में दाहिने तरफ पीठ के बल ही सोया हुआ था। उसी अवस्था में उसका गला घोंट दिया गया था। वहीं पास में खून से सना हथौड़ा पड़ा था। घर का सामान भी उधर-उधर बिखरा पड़ा था। पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया शायद इसी हथौड़े से प्रहार कर ओमप्रकाश की हत्या की होगी।
पुलिस अधिकारी मौका मुआयना कर ही रहे थे कि इसी बीच मौके पर खेजी कुत्ता और फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट की टीम भी आ पहुंची। फिंगर प्रिंट युनिट ने संभावित जगह से उंगलियों के निशान उठाये। खोजी कुत्ते को भी छोड़ा गया, लेकिन कातिल के बारे में कोई सुराग नहीं मिला।
पूछताछ के दौरान कमरे में बंद ओमप्रकाश की पत्नी अर्चना ने बताया कि बुधवार को उनके पड़ोस में मैरिज एनिवर्सरी की पार्टी थी। पति और बेटा वहीं गए थे। रात करीब 10 बजे लौटे। बेटे के परेशान करने की वजह से वह बगल के कमरे में सो रही थी। भोर में उनकी नींद खुली तो देखा कि बाहर से दरवाजा बंद था। उसे दरवाजा खोलने की पूरी कोशिश की, पर नहीं खुला।
साढ़े नौ बजे के आसपास दामाद की हत्या की खबर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की सुरक्षा में तैनात पीएसी में कंपनी कमांडर अर्चना के पिता दीपचंद यादव हो गयी। इसके कुछ देर बाद ही मुख्यमंत्री सुरक्षा के इंचार्ज शिव कुमार यादव ने अधिकारियों को फोन कर घटना का विवरण पूछना शुरू किया तो पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया।
ओम प्रकाश के साढ़ू भी 26वीं वाहिनी पीएसी में सिपाही हैं। उनके साथ के कुछ जवान इन दिनों राज्यपाल की सुरक्षा में राजभवन में तैनात हैं। घटना की जानकारी होने के बाद वे भी राजभवन से अपने परिचित पुलिस वालों को फोन कर घटना के बारे में बार-बार पूछताछ करने लगे। मामला हाईप्रोफाइल था। लिहाजा पुलिस मौके की सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद शव को सील मोहर कर पोस्टमार्टम के लिये चीरघर भेज दिया।
प्रथम दृष्टया मामला लूट व हत्या का था। लिहाजा प्ुलिस ने मृतक ओमप्रकाश की मां बागेश्वरी देवी की तहरीर पर अज्ञात बदमाशों के खिलाफ चेन-मोबाइल लूट और हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया।
मामला दर्ज होते ही वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक लव कुमार ने इस प्रकरण का पर्दाफाश के लिए एक टीम गठित कर दी। टीम में थाना प्रभारी शाहपुर आनंद प्रकाश शुक्ला, इंस्पेक्टर कैंट श्याम लाल यादव, क्राइम ब्रांच प्रभारी राजेश मिश्रा, सब इंस्पेक्टर अनिल कुमार उपाध्याय (क्राइम ब्रांच) व धर्मेन्द्र सिंह प्रभारी (स्वाट क्राइम ब्रांच) को शामिल कर जल्द से जल्द इस ब्लाइंड मर्डर की गुत्थी शीघ्र सुलझाने का आदेश दे दिया।
पुलिस टीम अपने स्तर से मामले के छानबीन में जुट गई। पूछताछ के दौरान ओम प्रकाश की मां बागेश्वरी देवी ने बताया कि उनके बेटे का पत्नी से अच्छा संबंध नहीं था। दोनों के बीच अक्सर विवाद होता रहता था। विवाद की वजह से करीब एक माह से बहू दूसरे कमरे में सो रही थी। विवाद के चलते ही घटना की रात पड़ोसी के घर आयोजित समारोह में ओम प्रकाश के साथ अर्चना नहीं गई थी।
बाागेश्वरी देवी ने पुलिस को बताया कि अर्चना फोन पर अकेले में काफी देर तक बात करती रहती थी। यह बात उसके बेटे ओम प्रकाश को पसंद नहीं थी। इसी के चलते दोनों के बीच विवाद होता था। ओमप्रकाश शुरू-शुरू में अर्चना से यह जानने का प्रयास किया कि वह किससे और क्या बात करती है, लेकिन वह जवाब देने की बजाय बात को टाल देती थी। दोनों के संबंधों में यहीं से दरार आनी शुरू हुई थी।
जानकारी चैकाने वाली थी लिहाजा पुलिस ने अर्चना का काल डिटेल निकलवाया तो पता चला कि एक विशेष नम्बर पर अर्चना काफी देर-देर तक बात बात करती थी। पुलिस ने जब इस बात की जानकारी अर्चना से करने के लिए पूछताछ की तो पहले वह इधर-उधर की बात बता कर पुलिस को गुमराह करने का प्रयास करने लगी। चूकिं मामला हाईप्रोफाइल था। जरा सी चूक में पुलिस की फजीहत हो जानी थी, पर काल डिटेल यह यह साफ कर दे रहा था कि कही कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है।
काफी सोच विचार के बाद 22 जनवरी पुलिस ने अर्चना को हिरासत में लेकर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक लव कुमार पूछताछ की तो वह अधिक देर तक टिक न पायी और कबूल कर लिया कि अपने फेसबुक मित्र के सहयोग से अपने पति और मासूम बेटे की हत्या का अपराध कबूल कर लिया। अभी कुछ ही देर बीता था कि अजय यादव को भी पुलिस ने गोरखपुर रेलवे स्टेशन के पास लकी ढाबे से गिरफ्तार कर पुलिस ने घटना में प्रयुक्त हथौड़ी, रस्सी, ओमप्रकाश का आधार कार्ड, निर्वाचन कार्ड, सोने का चेन, मोबाइल और 2210 रुपये के साथ ओमप्रकाश का पर्स भी बरामद कर लिया अंततः दोनों से की गई पूछताछ में जो कथा उभरकर सामने आई वह कुछ इस प्रकार बताई जाती है।
पेशे से नेत्र परीक्षक ओमप्रकाश यादव मूलरूप से गाजीपुर के रहने वाले थे। तीन भाईआंे में सबसे छोटे ओमप्रकाश वर्तमान में गोरखपुर जिले के शाहपुर थाना क्षेत्र के अशोकनगर बशारतपुर में अपने मझले भाई राज कुमार यादव के साथ उपरी मंजिल पर रहते थे। राजकुमार यादव बलरामपुर जिले के उतरौला थाने पर इंस्पेक्टर हैं। ओमप्रकाश जब 5 साल के हुए तभी उनके सर से बाप का खत्म हो गया। भाईओं ने ही पढ़ा लिखा कर काबिल बनाया था।
ओमप्रकाश यादव बचपन से ही मिलनसार व शांत स्वभाव के इंसान थे। वह जब बचपन की दहलीज को पार कर जवानी की दहलीज में प्रवेश किया और पढ़-लिखकर नेत्र परीक्षक बन गए तब उनकी मां बागेश्वरी देवी ने अपने बेटों से राय मसवरा के बाद भारतीय मूल की सिंगापुरी लड़की के साथ शादी कर दी। लड़की के परिवार वाले मूलरूप से गोरखपुर के ही रहने वाले थे। किसी माध्यम से इस परिवार से ओमप्रकाश का संबंध हो गया। बाद में उनके परिवार की लड़की से उनके घर वालों  शादी कर ली। वह लड़की सिंगापुर के किसी बैंक में काम करती थी। ससुराल आने के बाद वह लड़की परिवार से तालमेल नहीं बिठा सकी। इसलिए छह माह बाद ही तलाक लेकर वह सिंगापुर वापस चली गई। इसके बाद वर्ष 2009 में बड़े भाई मुसाफिर यादव के प्रयास से ओमप्रकाश की दूसरी शादी अर्चना के साथ हुई।
अर्चना के पिता दीपचंद यादव भी पीएसी में कंपनी कमांडर है। वर्तमान में वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की सुरक्षा में तैनात है। मूलरूप से गाजीपुर निवासी दीपचंद यादव भी ओमप्रकाश के घर के पास के ही रहने वाले है। बच्चों के अच्छे परवरिश के लिए वह लखनऊ में ही सेटल हो गए थे। अर्चना का बचपन भी लखनऊ में ही बीता, यहीं से ही वहीं पली बढ़ी।
यूं तो उनका अर्चना बचपन से ही खूबसूरत थी, लेकिन जब उसने जवानी की दहलीज में कदम रखा तो उसकी सुन्दरता और भी निखर आई थी। लिहाज उसके मन में अपनी सुन्दरता का अभिमान हो गया था। साथ ही परिवार वालों के अत्यधिक लाड़-प्यार ने अर्चना को और भी उच्छृंखल बनाकर रख दिया। दिनों दिन उसकी आकांक्षाएं पल्वित होती जा रही थीं। परिवार में कमाई का कोई टेंसन नहीं था।
अर्चना 19वें साल में कदम रख चुकी थी। उसका गोरा रंग, बड़ी-बड़ी आंखें। साधारण होने के बावजूद भी उसे आकर्षक बनाते थे। खास बात यह थी कि उसे सज-संवर कर रहने की बीमारी थी। भले ही कहीं आना-जाना न हो, किन्तु वह रोजाना घंटों आइने के सामने बैठकर बनाव-शृंगार करती रहती थी। मां को उसकी यह आदत बुरी लगती थी, मगर उसकी खुशियों को ध्यान में रखते हुए कुछ कहती नहीं थी।
अब उसकी अपनी एक अलग दुनिया थी 'सपनों की दुनिया' जहां वह सपनों में ही जीती थी। सपने ही उसके सब कुछ थे। वह सपनों के साथ खेला करती थी, उन्हें तोड़-मरोड़ कर अपने हक में करती थी। वह नहीं जानती थी कि ये सपने ही एक दिन उसके सबसे बड़े शत्रु बन जायेंगे।
जैसा कि आमतौर पर देखा जाता है कि जवानी की डगर पर कदम रखते ही युवतियां एक सुन्दर-सजीले जीवन साथी की कल्पनाओं में जीने लगती हैं। भावी पति में जाने कौन-कौन सी विशेषतायें उनकी कल्पनाओं में छाती चली जाती हैं। ऐसा ही कुछ अर्चना के साथ भी हो रहा था। वह दिन-रात एक आकर्षक युवक के सपनों में खोई रहती। पति के रूप में वह एक ऐसे युवक की कल्पना करती, जो उसके तमाम सपनों को साकार कर सके।
अर्चना सयानी हो गई है। यह अहसास उसके घर वालों को हो चुका था। उन्होंने अर्चना के लिए घर-वर देखना शुरू करने के साथ ही अपने नाते रिश्तेदारों को भी बेटी के लिए योग्य वर तलाशने के लिए सहेज दिया था। जल्द ही अर्चना के घर वाले और रिश्तेदारों की मेहनत रंग लाई। एक परिचित के माध्यम से अर्चना के लिए गोरखपुर जिला के नेत्र परीक्षक ओमप्रकाश के बारे में पता चला। कुल मिलाकर अर्चना के घर वालों को ओमप्रकाश हर तरफ से अपनी बेटी के योग्य लगा। बस कमी थी तो यह कि ओम प्रकाश की शादी एक बार पहले भी हो चुकी थी। घर वालों से राय-मसवरा के बाद अर्चना के पिता दीपचंद यादव ने ओमप्रकाश के घर वालों से मिलकर रिश्ते की बात चला दी।
ओमप्रकाश के परिवार वालों ने अर्चना को देखा। पहली नजर में ही अर्चना ओमप्रकाश के घर वालों को भा गई। फिर बात आगे बढ़ी, लेन-देन तय हुआ और ओमप्रकाश की शादी अर्चना से तय हो गई। इसके बाद विवाह की तारीख पक्की हो गई।
तय समय पर ओमप्रकाश की बारात अर्चना को लिवा ले जाने के लिए उसकी चैखट पर आ पहुंची। धूमधाम से शादी की रस्में पूरी की गई, फिर आई विदाई की बेला। विदाई के समय अर्चना के परिजन जहां फूले नहीं समा रहे थे, वहीं दूसरी ओर उन्हें बेटी की जुदाई का दर्द भी था, लेकिन यह तो परंपरा थी। पराई अमानत तो घर से विदा तो करना ही था।
विवाह के बाद अर्चना ओमप्रकाश की दुल्हन बन उसके घर आ गई। घर भी किसी चीज की कोई कमी नहीं थी, ना ही परिवार बड़ा था, अतः गृहस्थी की गाड़ी सुचारू रूप से चल पड़ी। शादी के लगभग तीन साल बाद अर्चना ने एक बेटे को जन्म दिया, तो पति-पत्नी की खुशी दोगुनी हो गई। एक बच्चे की मां बन जाने के बाद अर्चना की जिम्मेदारियां भी बढ़ गई। वह शुरू से ही आजाद ख्यालों की थी घर परिवार के बंधन से वह उब चुकी थी। लिहाजे वह पति से अलग रहने के लिए दबाव बनाने लगी।
शांत स्वभाव का ओमप्रकाश यह नहीं चाहता था। इसके बावजूद अर्चना अपने जेठ-जेठानी से अलग खाना बनाने लगी तो मजबूरन ओमप्रकाश को भी अर्चना का साथ देना पड़ा। अब तो घर के काम काज के बाद अर्चना के पास काफी समय बच जाता था। इस समय को काटने के लिए उसने सोशल साइट फेसबुक पर अपना एकाउंट खोल लिया और दिन भी इसी पर अपने दोस्तो के साथ समय बीताने लगी।
बात आठ महीने पहले की है। अर्चना घर के काम से फ्री होकर फेसबुक आन किया तो काफी फ्रेन्ड रिक्वेस्ट आई हुई  थी। वह इन में से कुछ को तो डिलीट कर दिया पर अचानक एक रिक्वेस्ट पर उसकी नजर स्थित हो गई। मुलायम सिंह यादव यूथ ब्रिगेड सपा के पूर्व प्रदेश सचिव अजय यादव की थी। अजय यादव की प्रोफाइल में मुलायम सिंह यादव, शिवपाल, डिंपल और अखिलेश यादव के साथ अजय की फोटोज देखकर वह उसकी दोस्त बन गई। कारण उसका भी राजनीति की तरफ जाने का झुकाव था। वह जब भी किसी नेता को देखती थी या फिर टीवी में उनका बयान सुनती थी तो कहती थी कि इनके ठाट हैं। असल मायने में ये ही जिंदगी जीते हैं। यही चीजें वह परिवार के लोगों से भी बताती थी।
अजय यादव फिरोजाबाद जिले के शिकोहाबाद थानाक्षेत्र के स्वामीनगर निवासी श्याम बाबू यादव का बेटा है। वह पेशे से शिक्षक है। अजय की प्रोफइल से उसे लगता था कि बड़े कान्टैक्ट वाला ये आदमी उसे राजनीति की बुलंदी तक पहुंचने में मददगार साबित हो सकता है।
धीरे-धीरे बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो जल्द ही वह अजय यादव से और प्रभावित हो गयी। और दोनों ने एक दूसरे को अपना मोबाइल नम्बर दे दिया। अब उनकी बात मोबाइल पर भी होने लगी। धीरे धीरे उनकी यह दोस्ती प्यार में बदल गई।
अर्चना फोन पर अकेले में काफी देर तक बात करती रहती थी। यह बात ओमप्रकाश को पसंद नहीं थी। शुरू-शुरू में उन्होंने पत्नी से जानने का प्रयास किया कि वह किससे और क्या बात करती है, पर इसका जवाब देने की बजाय अर्चना बात को टाल देती थी। धीरे-धीरे इन्हीं सब बातों को लेकर दोनों के संबंधों में यहीं से दरार आनी शुरू हो गयी। इसी दौरान एक बार अर्चना का लखनऊ जाना हुआ तो उसने अजय को भी मिलने के लिए लखनऊ बुला लिया। अर्चना के बुलावे पर अजय लखनऊ आ गया।
अजय जब अर्चना से मिलने उसके मायके आया था संयोग से उस समय घर पर कोई नहीं था। यहीं इनकी पहली मुलाकात हुई इस मुलाकात में अर्चना अजय से इतनी प्रभावित हुई कि वह यह भूल गई कि वह शादी शुदा और एक बच्चे की मां है। अजय तो फेसबुक पर अर्चना की प्रोफइल फोटो में बेमिसाल हुस्न देखकर दीवाना हो चुका था। जब उसे अर्चना की तरफ से ग्रीन सिग्नल मिला तो वक्त ना गंवाते हुए उसने अर्चना को अपनी बांहों में भर लिया।
"क्या कर रहे हो दिमाग तो नहीं खराब है तुम्हारा... छोड़ो मुझे, कोई देख लेगा तो.." अर्चना बनावटी गुस्सा दिखाई।
अजय अब कहा मानने वाला था। वह अपनी बाहों का कसाव और भी मजबूत कर दिया। अर्चना के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई। वह अजय की बाहों से निकलने को कसमसाई, मगर उसने ने उसे नहीं छोड़ा। अजय के हाथ उसके कपड़ों के भीतर छिपे सौंदर्य का जायजा लेने लगे। कुछ ही क्षणों में अर्चना का बनावटी विरोध भी समाप्त हो गया, और वह उसका साथ देने लगी। कमरा उनकी उत्तेजक सिसकारियों से गूंज उठा और देखते ही देखते वे एक दूसरे में समाहित हो गये। उस दिन के बाद तो उनके शारीरिक मिलन का सिलसिला ही चल निकला। जब भी दोनों का मन होता ससुराल में भी अर्चना अपने पति की अनुपस्थिती में बुला लेती और कुछ देर रासलीला रचाने के बाद अजय वापस चला जाता।
इस दौरान अर्चना ने ही अजय से बताया कि वह पति और बच्चे से छुटकारा चाहती है। फिर दोनों ने मिलकर इस हत्याकांड का प्लान तैयार कर लिया। 20 जनवरी को योजना के मुताबिक अजय ट्रेन से गोरखपुर पहुंचा और सब की नजर बचा कर अर्चना के घर जाकर मिला। उस समय ओमप्रकाश अपने बेटे के साथ पड़ोस में एक पार्टी में गए हुए थे। अजय को देखते ही अर्चना उसके आगोश में समा गई। कुछ देर तक दोनों जमकर अपने जिश्म की प्यास बुझाई। ओमप्रकाश के आने के पहले अर्चना ने अजय को बगलवाले कमरे में सुला दिया।
रात 10 बजे पार्टी से लौटने के बाद पत्नी के मनसूबों से अन्जान ओमप्रकाश अपने बेटे के साथ बेड पर सो गया। रात 12 बजे के बाद अर्चना ने अजय के मोबाइल पर फोन करके पति और बच्चे के सो जाने की जानकारी दी। इसके बाद दोनों हथोड़ा लेकर कमरे में गए और ओमप्रकाश यादव का सिर कुंच डाला। इस बीच बेटे नितिन की आॅख खुल गयी तो दोनों डर गये कि राज फाॅस न हो जाय, यह सोचकर दोनों ने उसका गला दबाकर हत्या कर दी। घटना को लूट का रूप देने के लिए दोनों ने कमरे का सामान बिखेर दिया। प्लान के अनुसार अजय ने अर्चना को बगल के कमरे में प्लान के तहत भेज दिया और बाहर की कुंडी बंद कर फरार हो गया।
आखिरकार पूछताछ के बाद सारी औपचारिकताएं पूरी कर पुलिस ने डबल मर्डर के आरोपी अर्चना यादव और उसके प्रेमी अजय यादव को सीजेएम नियाज अहमद अंसारी की कोर्ट में पेश कर दिया जहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया। कथा लिखे जाने तक अर्चना व अजय जेल में अपने कुकर्माे की सजा भोग रहे है।

06 March, 2014

तीन आशिकों से यारी जान से गयी बेचारी

तीन आशिकों से यारी जान से गयी बेचारी

संगीता
रिपोर्ट : ताराचंद विश्वकर्मा
उस दिन सूर्य की तपिश ज्यों-ज्यों बढ़ती जा रही थी, त्यों-त्यों संगीता की मां टीबली बाई की चिंता बढ़ती जा रही थी। कभी उनकी निगाहें खेतों पर अटक जातीं, कभी नजरे दरवाजे की ओर घूम जाती। घड़ी की सुईयों पर नजर पड़ती तो वह और भी बेचैन हो जाती। हर पल बीतने के साथ ही संगीता की मां के मन की अशांति बढ़ती जा रही थी।
दरअसल, बात ही कुछ ऐसी थी। जवान बेटी संगीता सुबह 10 बजे अपनी बड़ी बहन पारो की बेटी अन्नू को साथ लेकर चूड़ी खरीदने रावटी बाजार जाने का बोलकर निकली थी। धीरे-धीरे शाम हो गयी, लेकिन संगीता घर नही लौटी तो मां ने सोचा कि शायद संगीता अपनी किसी सहेली के घर चली गयी होगी।
धीरे-धीरे रात के नौ बजने को गए, लेकिन अभी तक संगीता का कोई अता-पता मिलने से टीबली बाई के दिमाग में आशंकाओं के बादल घुमड़ने लगे। वह सोच रही थी कि जवान बेटी का मामला है। कहीं कोई ऊंच-नीच हो गयी तो? संगीता आखिर कहां गयी होगी? यही सोच-सोचकर टीबली बाई परेशान हो रही थी।
रात दस बजे संगीता के पिता गलिया पारगी घर आये तो पत्नी के चेहरे पर उड़ती हवाईयां देखकर उन्होंने पूछा, “क्या बात है संगीता की मां! तुम इतनी परेशान क्यों हो?”
क्या बताऊं, संगीता सुबह दस बजे चूड़ी खरीदने रावटी जाने का बोलकर निकली थी, अभी तक घर नहीं आयी है। मेरा तो दिल बैठा जा रहा है।
अपने किसी सहेली के घर तो नहीं चली गयी?”
कहकर जाती तो चिन्ता किस बात की थी। कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे मंुह पर कालिख पोतकर किसी के साथ भाग गयी हो?”
ऐसा अशुभ मत बोलो संगीता की मां। भगवान करे ऐसी कोई बात हो। वरना हम कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे। तुम जाकर उसे ढूंढो।एक बार पुनः संगीता के घरवाले संगीता को ढूंढने लगे।
यह वाकया 29 मई 2013 की है। संगीता के घरवाले संगीता को अपने जानने-पहचानने वालों के अलावा रिश्तेदारों के यहां ढूंढने में लगे रहे। इस तरह 30 मई और 31 मई का भी दिन बीत गया। लेकिन संगीता और उसके साथ गयी अन्नू का कोई सूराग नहीं मिला। हर तरफ से निराश होने के बाद आखिरकार संगीता के घर वालों ने आपस में राय मसवरा कर 1 जून को रावटी थाने पर उनकी गुमशुदगी दर्ज करवा दी।
वक्त गुजरता रहा पुलिस अपने स्तर से संगीता और अन्नू को तलश में लगी थी। वहीं घर वाले भी बेटी नातिन की तलाश में लगे रहे, पर उनके बारे में कोई भी जानकारी नहीं मिल पा रही थी।
20 जून को उमर गांव के नजदीक सड़क से करीब किलोमीटर नीचे स्थित जंगल में कुछ चरवाहों ने एक मानव खोपड़ी, कुछ हड्डियां और फटे हुए कपड़े देखे। पलक झपकते ही यह खबर दूर-दूर तक फैल गई। देखते ही देखते देखने वालों की भीड़ जमा हो गई।
इस बात की जानकारी बिलड़ी में संगीता के परिजनों को हुई। वह लोग भी कौतूहल बस मौके पर पहुंचे, तो वहां संगीता अन्नू के कपड़े, चप्पल चूडियां देख समझ गए कि उनकी बेटी नातिन अब इस दुनिया में नहीं रह गए। शायद किसी जालिम ने उन्हें मारकर यहीं कही दफन कर दिया है। इसी बीच किसी ने रावटी थाने पर इसकी जानकारी दे दी।
अन्नू
अपने थाना क्षेत्र में मानव खोपड़ी, कुछ हड्डियां और फटे हुए कपड़े पड़े होने की सूचना मिलते ही थाना प्रभारी आर.एस. बजैया ने आनन-फानन में इसकी जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारी एस.पी. डा.जी.के. पाठक देने के साथ ही अपने सहयोगी .एस.आई. लक्ष्मण तिवारी के अलावा आवश्यक दल-बल सहित घटनास्थल के लिए रवाना हो गए।
पुलिस को मौके पर पहुंची तो लोगों की भीड़ इधर-उधर हो गयी। थाना प्रभारी आर.एस. बजैया ने मौका मुआयना के बाद लगभग तीन घंटे तक कागजी कार्रवाई में उलझे रहे। चूंकि कपड़े, चप्पल चूडियां देखकर संगीता के पिता गलिया पारगी ने इसकी पहचान अपनी बेटी संगीता और नातिन अन्नू के होने की बात कह चुके थे। जबकि घटनास्थल पर एक ही खोपड़ी मिली थी।
शाम करीब चार बजे एसपी डा.जी.के. पाठक के मौके पर पहुंचने के बाद दूसरे कंकाल की खोज में उनके निर्देशन में खुदाई शुरू हुई। करीब एक फीट अंदर जाने के बाद कपड़ों में लिपटी एक ओर खोपड़ी निकली। यह पहले की खोपड़ी से बड़ी थी। एक साथ दो कंकाल देख पीडित परिवार के आंसू फूट पड़े और चारों तरफ कोहराम मच गया।
पुलिस दल कार्यवाही में जुटा ही था कि सूचना पाकर मौके पर पहुंचे एफएसएल अधिकारी अतुल मित्तल बरामद कपड़े और हड्डियों का निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान उन्हें कपड़े पर कहीं भी कोई ऐसा निशान नहीं मिला जिससे यह अंदाजा लगाया जा सके कि वारदात में चाकू या किसी अन्य हथियार का इस्तेमाल किया गया हो। लिहाजा उन्होंने अपनी आशंका व्यक्त की कि शायद दोनों की हत्या गला दबाकर की गयी है।
दो खोपड़ी कुछ कपड़ें बरामद करने के बाद पुलिस ने दोनों के घड़ बरामद करने के लिए काफी प्रयास किया। लेकिन पुलिस को सफलता नहीं मिली। फिर घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद कंकाल को सील-मोहर करवा दिया।
हांलाकि घटनास्थल से बरामद कंकाल और कपड़ों की शिनाख्त गलिया पारगी ने अपनी बेटी संगीता और नातिन अन्नू के रूप में कर दी थी। फिर भी इसकी पुष्टि के लिए एस.पी. डा.जी.के. पाठक के निर्देशन पर थाना प्रभारी आर.एस. बजैया ने वैज्ञानिक जांच पोस्टमार्टम के लिए गांधी मेडिकल कालेज भोपाल भिजवाने की व्यवस्था करवा दी।
साथ ही विज्ञानपरक रिपोर्ट के लिए संगीता अन्नू की माताओं के रक्त नमूने हड्डियां डीएनए टेस्ट के लिए फारेंसिक लैब भेजने की व्यवस्था करवाने के साथ ही थाना प्रभारी आर.एस. बजैया ने इस सन्दर्भ में दर्ज गुमसूदगी की रिर्पोट धारा 302 में परिवर्तित कर अपराधियों की धर-पकड़ के लिए मुखबीरों नगर सैनिकों का जाल फैला दिया। जल्द ही मुखबीरों से थाना प्रभारी आर.एस. बजैया को पता चला कि संगीता की घनिष्ठता गांव के ही मांगू मईड़ा के बेटे मदन बद्रीलाल भूरिया के बेटे गोविंद से अधिक थी। दोनों अक्सर ही संगीता के साथ देखे जाते थे।
बरामद कंकाल और कपड़ें
जानकारी मिलते ही थाना प्रभारी श्री बजैया ने पूछताछ के लिए छापा मारकर मांगू मईड़ा के बेटे मदन बद्रीलाल भूरिया के बेटे गोविंद को हिरासत में ले लिया। पूछताछ के दौरान पहले तो दोनों ने संगीता से किसी तरह का सम्बंध होने से इन्कार करते रहे। लेकिन जब दोनों को अलग करके के मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ किया गया तो वह टूट गए और अपना अपराध स्वीकार कर लिया।
अंततः अभियुक्तों के बयानों पुलिस छानबीन में अवैध संबंधों की चासनी में पकी हुई एक ऐसी रोमांचक कथा सामने आई जिसमें एक युवती, एक नहीं... दो नहीं... तीन युवकों से इश्क फरमाती थी। तीनों ही उसके प्यार में पागल थे। वह भी तीनों को बराबर समय देती थी। किसी को भी यह अहसास नहीं होने देती थी कि उसका किसी और से भी अफेयर है।
मध्य प्रदेश के रतलाम जिला अर्न्तगत रावटी थाना क्षेत्रा में एक कस्बा है बिलड़ी। इसी कस्बे में गलिया पारगी अपने परिवार के साथ रहते हैं। गलिया पारगी ने अपनी बड़ी बेटी पारो का कुछ साल पहले ही कर दिया था। पारो से छोटी थी संगीता, संगीता से छोटी थी सुमा।
साधारण परिवार में पली-बढ़ी संगीता को सिर्फ अपने परिवेश से नफरत थी, बल्कि वह गरीबी को भी अभिशाप समझती थी, लिहाजा होश संभालने के बाद से ही उसने सतरंगी सपनों में खुद को डुबाकर रख दिया था। सपनो में जीने की वह कुछ यूं अभयस्त हुई कि गुजरते वक्त के साथ उसने हकीकत को पूरी तरह नकार दिया। हकीकत क्या थी? यह वह जानना ही नहीं चाहती थी, मगर उसके परिजन भला सच्चाई से कैसे मुंह मोड़ लेते। अतः उन्हें मालुम था कि वे गरीब हैं। बेटी उनके लिए बोझ भले ही रही हो, मगर उसकी बढ़ती उम्र के साथ-साथ उनकी चिन्ता बढ़ती जा रही थी।
संगीता के पिता गलिया पारगी मेहनत कर जैसे-तैसे अपने परिवार का गुजारा कर रहे थे। संगीता उन दिनों किशोरावस्था में पहुंची ही थी, जब उसके पिता ने उसके लिए रिश्ता ढूंढना शुरू कर दिया। अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को भी उन्होंने संगीता के लिए उपयुक्त वर तलाशने को कह दिया था।
संगीता अब तक 17 साल की हो चुकी थी। गेहूंआ रंग, छरहरी काया और बड़ी-बड़ी आंखें, कुल मिलाकर वह आकर्षक युवती कहीं जा सकती थी। वैसे भी मुहल्ले में उसके मुकाबले कोई दूसरी लड़की नहीं थी। अतः मुहल्ले के तमाम लड़कों के आकर्षण का केन्द्र थी। वहां सभी उसका सामिप्य हासिल करना चाहते थे, या यूं कहे की उसके नजदीक आने को मरे जा रहे थे। हालत ये थी कि वह जिससे भी मुस्कराकर दो बातें कर लेती, अगले दिन वही उसके आगे-पीछे घूमना शुरू कर देता।
गलिया पारगीटीबली बाई
लड़कों को अपने आगे-पीछे चक्कर लगाते देखकर उसे बेहद खुशी मिलती थी। सुकून हासिल होता था या शायद उसके इस अहम को संतुष्टि मिलती थी कि वह बहुत खूबसूरत है। बात चाहे जो भी रही हो, मगर उसका गरूर बढ़ता जा रहा था, कदम जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। वह तो अब खुले आसमान में मुक्त भाव से विचरना चाहती थी। ऐसे में वह कब तक अपने आप को बचाकर रख सकती थी, जल्द ही गांव के ही मांगू मईड़ा के बेटे मदन से उसकी आंख लड़ गई।
बात लगभग दो-ढ़ाई पहले कि है एक दिन संगीता किसी काम से बाजार जा रही थी। रास्ते में अपनी तरफ गांव के ही मदन को एकटक देखते संगीता ने कड़क कर पूछा, “इस तरह मेरी तरफ क्या देख रहे हो?”
एकबारगी तो मदन झेंप गया और दूसरी तरफ देखने लगा। लेकिन थोड़ी ही देर में हिम्मत जुटाकर बोला, “संगीता ! मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं। मगर डरता कि कहीं तुम बुरा मान जाओ।
ऐसी कौन सी बात है?” संगीता त्यौरियां चढ़ाते हुए बोली।
पहले तुम वादा करो। अगर मेरी बात तुम्हें बुरी लगी तो, मुझे माफ कर दोगी।
मदन, तुम पहेलियां ही बुझाते ही रहोगे या कुछ कहोगे। चलो, मैं वादा करती हूं कि तुम्हारी किसी बात का बुरा नहीं मानूंगी।संगीता ने मुस्कुराते हुए कहा।
संगीता मैं तुमसे प्यार करने लगा हूं। अपनी जान से भी ज्यादा, मैं चाहता हूं कि तुम सदा के लिए मेरी बन जाओ।कुछ देर रूककर मदन फिर कहने लगा, “हां... कोई जवाब देने से पहले सोच लेना कि तुम्हारे इकरार और इंकार पर ही मेरी जिंदगी टिकी है।कहकर मदन संगीता के जवाब की प्रतिक्षा किये ही वहां से चला गया।
संगीता बुत बनी मदन को जाते देखती रही। उसके कानों में मदन के कहे शब्द गूंज रहे थे।
संगीता के मन में गुदगुदी-सी होने लगी। सच तो यही था कि वह भी दिल-दिल में मदन से इश्क करने लगी थी। मदन ने पहल की तो उसने भी मदन का प्यार कबूल कर लिया और दोनांे का प्यार परवान चढ़ने लगा। दोनों को जब भी समय मिलता, वे उसे गंवाते नहीं थे।
संगीता द्वारा मदन का प्यार स्वीकार लेने से मदन की तो जैसे दुनिया ही बदल गई थी। वह दिल खोलकर उस पर खर्च करने लगा था। संगीता भी बिना किसी ना-नुकुर के अपना सब कुछ मदन को साैंप दिया।
घटनास्थल का निरीक्षण करती पुलिस
इसी बीच गांव के ही बद्रीलाल भूरिया के बेटे गोविंद की नजर संगीता पर पड़ी तो वह भी संगीता के आगे-पीछे चक्कर लगाने लगा। जल्द ही संगीता ने उसे भी अपने प्यार में उलझा लिया। अब वह एक नहीं दो प्रेमियों से प्यार का खेल खेलने लगी। मदन जंहा खुलकर संगीता पर पैसे लुटाता था। वहीं गोबिन्द भी दोनों हाथों से संगीता पर खर्च करता था। संगीता ने भी दोनों के लिए अलग-अलग समय बना लिया। उन्हें शक तक नहीं होने दिया कि वह किसी और से भी प्यार करती है।
दो आशिक के होने के बाद भी चंचल संगीता के मन को चैन मिला और उसने एक और युवक से भी अपना नाता जोड़ लिया। एक फूल और तीन भौरों का यह सिलसिला लंबे समय तक चलता रहा। लेकिन प्यार की यह चोरी आखिर कब तक संगीता कर पाती, एक दिन तो परदा उठना ही था।


29 मई की सुबह संगीता अपनी बहन सुमा के साथ कुएं से पानी भर रहीं थी कि कुछ ही देर में गोविंद वहां पहुंचा मिलने के लिए संगीता को उमरघाटा बुलाया। पहले तो संगीता ने कुछ टालमटोल किया, क्योंकि उस दिन दिन उसका अपने प्रेमी मदन से रावटी में मिलने का प्रोग्राम पहले से ही तय था। लेकिन जब गोविंद जिद करने लगा तो संगीता ने उसकी बात मान ली।

सुबह दस बजे संगीता अपने प्रेमी गोविंद से मिलने के लिए अपनी बड़ी बहन पारो की बेटी अन्नू को साथ लेकर चूड़ी खरीदने के बहाने रावटी बाजार जाने का बोलकर घर से निकली। कुछ ही देर में वह उमरघाटा बस स्टाप पहुंच गयी। वहां गोविंद उसे मिला और अपने साथ लेकर चला गया। तीन-चार घण्टे मौज-मजा करने के बाद वह अपने घर बिलड़ी जाने के लिए निकल पड़ी।


इधर पहले से तय समय पर संगीता जब रावटी नहीं पहुंची, तो मदन बेचैन हो गया। जैसे-तैसे शाम चार बजे गये संगीता नहीं आई तो वह उसकी खोज-खबर लेने के लिए निकल पड़ा। यहां-वहां तलाश करते हुए उमरघाटा के पास पहुंचा ही था कि संगीता को गोविंद के साथ देख उसका खून खौल उठा और उसका गोविंद से विवाद होने लगा।
एस.पी. डा.जी.के. पाठक
गुस्से में मदन ने गोविंद को मारने के लिए घर से कुल्हाड़ी लाया। बात आगे बढ़ती इसी बीच गोविंद ने बताया संगीता का गांव के अन्य युवक से भी संबंध हैं। इतना सुनते ही मदन गुस्से से पागल हो गया। फिर गोविंद ओर मदन दोनों ही संगीता को मारने-पीटने लगे। इतने पर भी दोनांे का गुस्सा कम नहीं हुआ तो दोनों ने संगीता का गला कसकर मौत की नींद सुला दिया। इस दौरान संगीता के साथ आई उसकी भतीजी अन्नू शोर मचाने लगी तो दोनों ने मिलकर उसका भी गला घोंटकर मौत की नींद सुला दिया।
दोनों की मौत से मदन और गोविंद बदहवास हो गए। आनन-फानन में दोनों ने अपने मित्रा सग्गू भूरिया के बेटे रोशन, बाबू भूरिया के बेटे बबलू, शंभू खडिय़ा के बेटे रमेश, रंगजी मईड़ा के बेटे सुनील, मानजी मईड़ा के बेटे दुबलिया को बुला लिया। फिर उनके सहयोग से पहले संगीता उसके बाद अनु के सिर कुल्हाड़ी से अलग किए। गड्ढा खोदा संगीता के कपड़ों में उसका सिर लपेट कर अनु के शव के साथ दफना दिया। रात 8 बजे आरोपियों ने संगीता का निर्वस्त्रा धड़ धोलावड़ जलाशय में फेंक दिया।
बारिश होने पर गड्ढे में दबी लाश सड़ गई दुर्गंध फैलने से जंगली जानवरों ने उन्हें खोदकर निकाल लिया। पूछताछ के बाद पुलिस ने मदन और गोविंद की निशानदेही पर बिलड़ी निवासी रोशन, बबलू, रमेश, सुनील और दुबलिया को भी गिरफ्तार कर लिया है।
अंततः सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद 3 जूलाई को थाना प्रभारी आर.एस. बजैया ने सभी आरोपियों को सैलाना में न्यायिक दंडाधिकारी धर्मेंद्र टाडा के सामने पेश किया, जहां से 9 जुलाई तक उन्हें पुलिस रिमांड पर सौंप दिया।
(प्रस्तुत कथा पुलिस मीडिया सूत्रों पर आधरित है)