10 August, 2013

बेवश पति का भनायक फैसला

दीपिका
यौवन के वृक्ष पर खूबसूरती के फूल खिले हो तो मंजर किसी कयामत से कम नहीं होता। यही हाल था दीपिका का। यूं तो खूबसूरती उसे कुदरत ने जन्म से तोहफे में बख्शी थी, लेकिन अब जब उसने लड़कपन के पड़ाव को पार कर यौवन की बहार में कदम रखा तो खूबसूरती संभाले नहीं सम्भल रही थी।
वह आईना देखती तो जैसे आईना भी खुद पर गर्व करता। उसकी सांस थम जाती और वह दुनिया में खुबसूरती के उदाहरण चांद को भी नसीहत दे डालता, ऐ चांद, खुद पर न कर इतना गुरूर। तुझ पर तो दाग है। मगर मेरे वजूद में जो चांद सिमटा है, वह बेदाग है।
दीपिका मुस्कुराती तो लगता जैसे गुलाब का फूल सूरज की पहली किरण से मिलते हुए मुस्करा रहा है। अक्सर उसकी सहेलियां इस पर उसे टोक देतीं, ‘‘ऐसे मत मुस्कराया कर दीपिका। अगर किसी मनचले भंवरे ने देख लिया तो बेचारा जान से चला जाएगा। ’’
उसकी खूबसूरती को देखकर भी सहेलियां प्रेम भरी ईश्र्या से भर उठती थी। एक सहेली तो अपने जज्बात रोक नही पाई। उसने कह डाला, ‘‘तेरी इस खूबसूरती पर सदके जाऊं। जरा संभल के मेरी जान। तेरी ये बाकी अदाएं, ये नाजो अंदाज। खुदा कसम, मेरी तो जान ही ले लेगी। कुदरत ने गलती से मुझे लड़की बना दिया। अगर लड़का बनाया होता तो कसम से, अब तक तेरे साथ किसी न किसी तरह फेरे लगवा ही लेती।’’
दीपिका इस पर शरमा जाती। सहेली को झटकते हुए कहती, ‘‘चल हट पाजी कही की’’
दीपिका उत्तरप्रदेश में गंगा व यमुना के किनारे बसे इलाहाबाद के निवासी धर्मराज सिंह की लाड़ली बेटी थी। धर्मराज सिंह की परिवार में पत्नी के अलावा दो बेटियां थी। दीपिका सबसे छोटी थी। उसने स्नातक तक शिक्षा ग्रहण की थी।
दीपिका खूबसूरत तो थी ही, साथ ही अच्छे संस्कार उसकी नस-नस में बसे थे। उसका व्यवहार कुशल होना, आधुनिकता और हंसमुख स्वभाव खूबसूरती पर चांद की तरह थे।
दीपिका सयानी हो गई है। यह अहसास उसकी मां को हो चला था, पर बड़ी बेटी शालिनी की शादी भी अभी नहीं हुई तो फिर भला दीपिका की शादी कैसे हो पाती। दीपिका की मां बार-बार पति धर्मराज सिंह को टोकती रहतीं, ‘‘बेटी पराया धन होती है। जितनी जल्दी हो सके, इन अमानतों को योग्य हाथों में सौंप दो। जमाना भी खराब है, फिर यह उम्र भी ऐसी है कि कदम भटकते देर नही लगती। इसलिए कहती हूँ, कोई अच्छा सा घर-वर देखकर इनके हाथ पीले कर दो।’’
धर्मराज सिंह आधुनिक विचारों थे। वह समय के साथ चलना चाहते थे। शुरू-शुरू में जब पत्नी ने कहा तो वह हंसकर बात टाल जाते थे, लेकिन जब दीपिका की मां कुछ अधिक ही गले पड़ने लगी तो धर्मराज सिंह ने दोनो बहनों के लिए घर-वर देखना शुरू कर दिया। अपने नाते रिश्तेदारों को भी उन्होंने सहेज दिया।
जल्द ही दीपिका के घर वाले और रिश्तेदारों की मेहनत रंग लाई। एक परिचित के माध्यम से दीपिका के लिए इलाहाबाद में ही एक लड़का सूर्यकान्त व शालिनी के लिए दिल्ली में कार्यरत एक लड़के के बारे में पता चला। तब उनके घर वालों से मिलकर धर्मराज सिंह ने रिश्ते की बात चली दी।
सूर्यकान्त के पिता नरेन्द्र सिंह पवार शिक्षा विभाग में अधिकारी थे। उनके परिवार में पत्नी के आशा पवार के अलावा दो पुत्र सूर्यकान्त व चन्द्रकान्त है। छोटा परिवार होने के कारण उनके घर में किसी बात की कोई कमी नहीं थी। कुल मिलकार समाज और रिश्तेदारी में उनकी गिनती प्रतिष्ठित व्यक्तियों में होती थी। दोनों बेटों ने अच्छी शिक्षा हासिल की थी।
शिक्षा पूरी होने के बाद सूर्यकान्त भारतीय जीवन बीमा का एजेन्ट बन गया। उसे बीमा का काम बेहद पसन्द आया। तब वह पूरी लगन से इस काम में जुट गया और जल्द ही वह इस कार्य में निपुण हो गया। फिर तो वह सीढ़ी दर सीढ़ी बुलंदियों को छूते हुए भारतीय जीवन बीमा निगम में बी0एम0 क्लब का सदस्य बन गया। अब उसके पास गाड़ी, मकान व बैंक बैलेन्स भी हो गया था। बेटे के कार्य की क्षमता से पिता नरेन्द्र सिंह भी बहुत खुश रहा करते थे।
बीमा का काम जनसम्पर्क से ही सम्भव होता है। इसलिए सूर्यकान्त को जानने पहचानने वाले भी बहुत हो गए थे। उन्हीं में से एक सन्तलाल भी था। जिसके माध्यम से दीपिका के घर वालों ने रिश्ते की बात चलाई थी।
सगाई के समय दीपिका व सूर्यकान्त
संतलाल का सूर्यकान्त के घर आना जाना था। कुछ समय से सूर्यकान्त की शादी की चर्चा चल रही थी। कई लड़कियों का फोटो आया था, पर कोई भी लड़की सूर्यकान्त को पसन्द नहीं आ रही थी। धर्मराज सिंह ने बेटी दीपिका के लिए सूर्यकान्त को देखा तो उन्हें सूर्यकान्त पसन्द आ गया। बात आगे बढ़ी तो नरेन्द्र सिंह ने साफ-साफ कह दिया कि अगर उनके बेटे को लड़की पसन्द आ जाती है तब वह शादी के लिए तैयार है।
धर्मराज सिंह को भला इससे क्या आपत्ति थी। उन्हें तो पूरा विश्वास था कि पहली ही नजर में सूर्यकान्त दीपिका को पसन्द कर लेगा। आखिर थी भी तो वह इतनी सुन्दर और गुणवान। अतः धर्मराज सिंह ने लड़की देखने का न्योता दे दिया।
तयशुदा दिन पर सूर्यकान्त अपने मित्र संतलाल के साथ दीपिका को देखने के लिए धर्मराज सिंह के घर पहुँच गए। दरवाजा खोलने के लिए संतलाल ने कालबेल बजाई तो कुछ क्षण में एक युवती ने दरवाजा खोला। दरवाजा खोलने के लिए जो युवती आई थी, वह बहुत ही हसीन और खूबसूरत थी। सूर्यकान्त एकटक उसकी तरफ देखता ही रह गया। अपनी तरफ एकटक देखता देख वह युवती शरमाती हुई धीरे से संतलाल से बोली, ‘‘अन्दर आइए।’’ इतना कहते ही तेजी से वह अन्दर की तरफ चली गयी पर सूर्यकान्त उसे जाते हुए देखते यूं ही खड़ा रहा तब संतलाल ने चुटकी ली, ‘‘कहां खो गए जनाब यही दीपिका है, जिससे आपके रिश्ते की बात चल रही है। आओ अन्दर चलें।’’
सूर्यकान्त संतलाल की बात सुनकर दिल ही दिल में खुशी से ओत-प्रोत हो उठा था। अब तक धर्मराज सिंह व उसकी पत्नी भी आ गए। उन्होंने दोनो को ले जाकर ड्रांइग रूम में बैठाया, फिर औपचारिक परिचय के बाद सब बातें करने लगे। इस दौरान सूर्यकान्त चुप ही था पर उसकी निगाहें रह-रहकर अन्दर की तरफ चली जाती। जिस तरफ दीपिका गई थी। थोड़ी ही देर बाद दीपिका चाय लेकर आई तो उसकी मां ने उसे भी अपने पास बैठा लिया। सूर्यकान्त दीपिका से बहुत कुछ बात करना चाहता था पर संकोचवश कम ही बोलता था। वह तो बस दीपिका की नूर से चकाचौध हो गया था। अब तो वह दीपिका की तिरछी चितवन, गुलाबी होठों व मदभरी आंखों में जीवन के हसीन सपने तलाशने लगा था।
आधुनिक व खुले विचारों की दीपिका ने कनखियों से एक नजर सूर्यकान्त पर डाली तो उसे चेहरे पर हल्की सी मुस्कान सिमट आई। मां ने दीपिका से जब अकेले में सूर्यकान्त के बारे में बात की तो उसने भी अपनी पसंद की रजामंदी दे दी।
अब शादी की तारीख तय की जानी बाकी थी। हालांकि शालिनी का रिश्ता अभी नहीं तय हुआ था फिर भी लड़का हाथ से निकल जाने के डर से धर्मराज सिंह ने शुभ मुहूर्त देखवाकर उनकी सगाई करवा दी फिर 12 फरवरी 2004 को विवाह होना भी तय कर दिया गया। शादी की तैयारियां की जाने लगी और फिर वह दिन भी आ गया जब सूर्यकान्त की बारात दीपिका की चौखट पर आ पहुंची उसे लिवा जाने के लिए। धूमधाम से शादी की रस्में पूरी हो गई। फिर आई विदाई की बेला। दीपिका के परिजन जहां फूले नही समा रहे थे वहीं दूसरी ओर उन्हें बेटी की जुदाई का दर्द भी था, लेकिन यह तो परंपरा थी। पराई अमानत को तो घर से विदा करना ही था।
आशीर्वादों और खुशियों के आंसुओं के साथ दीपिका को परिजनों ने सूर्यकान्त की डोली में बैठा कर बिदा कर दिया। अपनों की जुदाई में आंसू छलकाती दीपिका ससुराल पहुंची तो चेहरे पर खुशी सिमट आई। ससुराल के लोगों ने उसे पलको पर बिठाया। सभी का व्यवहार देखकर दीपिका खुशी से फूली नहीं समा रही थी।
मधुर मिलन की रात्रि में सूर्यकान्त दीपिका के हुश्न और इश्क में इस तरह दीवाना हुआ कि उसे दीपिका की पलभर की जुदाई बर्दाश्त नहीं हो पाती। दोनो ने महीनों खूब मौज-मजा किया। इस दौरान घूमने-फिरने और प्रेम के सिवा उनकी दुनिया में और कुछ भी नहीं था।
यूं ही समय खिसकता रहा काफी दिनों बाद भी जब सूर्यकान्त ने अपना काम-धाम नहीं शुरू किया तब घर वालों ने उसे काम करने को याद दिलाया तो जैसे वह नींद से जागा और पुनः अपने काम में लग गया। दीपिका भी ससुराल में आज्ञाकारी बहू की तरह दिन बिताने लगी। कुछ दिन तक तो ठीक-ठाक चला। धीरे-धीरे घर की जिम्मेदारियां दीपिका को भारी लगने लगी फिर तो वह उदास सी रहने लगी। पत्नी की उदासी जब सूर्यकान्त से नहीं देखी गई तो एक दिन पूछ बैठा, ‘‘क्या बात है दीपा आजकल तुम कुछ अधिक ही उदास रहती हो?’’
दीपिका के माता-पिता
सूर्यकान्त के पूछने पर दीपिका कहने लगी, ‘‘मेरा तो घर के अन्दर दम घुटने लगा है। मैं इतने प्रतिबन्ध में नहीं रह सकती हूँ।’’
‘‘प्रतिबन्ध.....’’ सूर्यकान्त ने चौकते हुए कहा, ‘‘प्रतिबन्ध कैसे दीपा यह तो हर लड़की के साथ होता है। ससुराल में बड़ो का कहना मानना तो तुम्हारा फर्ज है, फिर तुम्हें किसी प्रकार का कोई रोक तो नहीं है, ऊपर से मैं भी तो तुम्हे घुमाता टहलाता रहता हूँ। बहुत ज्यादा घर से बाहर रहना अच्छी बात थोड़े होती है।’’
सूर्यकान्त के समझाने पर दीपिका चुप हो गई पर अब वह ज्यादातर अपने मायके में ही रहने लगी थी। जब वह ससुराल आती तो सूर्यकान्त से अनाप-सनाप चीजों की फरमाइश कर देती। इसी दौरान एक दिन दीपिका ने बीयर पीने की इच्छा जाहिर करते हुए बताया कि बीयर पीना तो उसका शौक है। तब सहसा सूर्यकान्त को दीपिका की बात का यकीन ही नहीं हुआ।
सूर्यकान्त दीपिका को अपनी जान से भी अधिक चाहता था। उसके बीयर पीने की शौक सूर्यकान्त को नागवार लग रही थी, फिर भी पत्नी के प्रेम में अंधा सूर्यकान्त दीपिका का यह शौक भी पूरा करने लगा। जब कभी भी दीपिका बीयर पीती थी तब वह सूर्यकान्त के आगे खुली किताब हो जाती थी और मजा लेकर बताती थी कि उसके कौन-कौन ब्वायफ्रेन्ड थे। किन-किन के साथ वह घूमती और कहां-कहां जाती थी।
हालांकि पत्नी की बात सूर्यकान्त को बुरी जरूर लगती थी, पर यह सोचकर वह कुछ भी नहीं कहता था कि यह सब उसने शादी से पहले किया था। लेकिन प्यार से दीपिका को समझाता, ‘‘देखो दीपा ! अब तक तुम क्या करती थी इससे मुझे कोई लेना-देना नहीं है पर अब तुम शादीशुदा हो। इसका भी ध्यान देना।’’
इस पर दीपिका नशे में झूमते हुए कहती, ‘‘छोड़ो यार! मुझे तो उन सब के साथ धूमने-फिरने, मौज-मजा करने में बहुत आनन्द आता है। तुम तो बस अब भी पुराने ख्यालात के लगते हो।’’
समय का चक्र चलता रहा सूर्यकान्त दीपिका को यह सोचकर कम ही मायके जाने देता था कि कही फिर वह अपने पुराने यार-दोस्तों के साथ फिर से घूमना टहलना न शुरू कर दे। इसी बीच अप्रैल 2005 में दीपिका की बड़ी बहन शालिनी की शादी पड़ी तो भी सूर्यकान्त ने बहुत कम दिनों के लिए दीपिका को मायके जाने दिया था। यह बात दीपिका के मां-बाप को भी बुरी लगी पर उन्होंने इसकी कोई चर्चा नहीं की।
पति के बदले रवैये से दीपिका परेशान सी हो उठी थी। उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? आखिर कुछ सोच कर वह भी सूर्यकान्त पर अपने मां-बाप व भाई से अलग रहने के लिए दबाव बनाने लगी। लेकिन जब सूर्यकान्त परिवार से अलग रहने के लिए साफ मना कर दिया तो दीपिका सूर्यकान्त से बातचीत बंदकर अपने मायके चली गई।
दीपिका की नाराजगी से सूर्यकान्त अन्दर ही अन्दर टूट गया था। दीपिका को वापस घर लाने का सूर्यकान्त ने काफी प्रयास भी किया लेकिन सफल नहीं हुआ और एक दिन बहन की तबियत खराब होने की जानकारी मिली तो वह बहन के पास दिल्ली चली गई।
दीपिका के दिल्ली जाने की जानकारी सूर्यकान्त को हुई तो वह और भी परेशान हो उठा। फिर वह दीपिका से बात करने के लिए ससुराल से दीपिका के जीजा अभिषेक का मोबाइल नम्बर ले लिया। मोबाइल पर सम्पर्क करने के बाद भी गुस्से बस दीपिका सूर्यकान्त से बात नहीं करती थी। काफी प्रयास के बाद भी दीपिका जब सूर्यकान्त से बात तक करने को राजी नहीं हुई तो बिल्कुल ही टूट गया और कह दिया, ‘‘अब जैसा वह कहेगी वैसा ही करेगा।’’
सूर्यकान्त के हार मानते ही कुछ दिनों के बाद ही दीपिका दिल्ली से वापस आ गई। फिर दीपिका की इच्छानुसार उसने सितम्बर 2005 में इलाहाबाद के रसूलाबाद क्षेत्र स्थित गंगादर्शन कालोनी में कमरा लेकर रहने लगा। रसूलाबाद आते ही दीपिका पूरी तरह से स्वतंत्र हो गई थी। सोना, खाना और जागना सब उसकी मर्जी से होता था।
रसूलाबाद में रहते हुए सूर्यकान्त को अभी कुछ ही दिन हुए थे कि 13 सितम्बर 2005 की शाम सूर्यकान्त घबराई हालत में शिवकुटी थाने पहुंच गया। उस समय थाना प्रभारी मनोज सिंह रूटीन गश्त पर निकलने की तैयारी कर रहे थे। सूर्यकान्त ने सब इंस्पेक्टर मनोज सिंह का एक बीमा अपने एक परिचित के माध्यम से किया था इस कारण मनोज सिंह सूर्यकान्त को जानते पहचानते थे।
थाने पहुंच कर सूर्यकान्त ने थानाप्रभारी मनोज सिंह से मुलाकात की और एक तहरीर देते हुए कहने लगा, ‘‘साहब आज सुबह से ही बहुत अधिक परेशान हूँ। मेरी पत्नी सुबह-सुबह न जाने कहां चली गई है। काफी पता लगाने के बाद भी उसका अब तक कोई पता नहीं चल रहा है।’’
सूर्यकान्त की बात सुनकर सबइंस्पेक्टर मनोज सिंह ने सरसरी नजर तहरीर पर डाली और चुटकी लेते हुए सूर्यकान्त से कहने लगे, ‘‘अरे भाई! तुम्हारी पत्नी कोई बच्ची तो है नहीं जो कहीं गुम हो जाएगी। इंतजार कर लो शायद किसी काम से गई हो। वापस आ जाएगी।’’
‘‘पर सर आज तक ऐसा नही हुआ है। मैने हर जगह पता भी कर लिया कहीं से भी उसके बारे में जरा सा भी सुराग नहीं मिला।’’ इतना कहते ही सूर्यकान्त रूआंसा हो उठा तब मनोज सिंह भी गम्भीर होकर पूछने लगे, ‘‘कहीं तुमने अपनी पत्नी से लड़ाई-झगड़ा तो नहीं किया था ?’’
‘‘नही साहब, लड़ाई हमारी नहीं होती है।’’
सब इंस्पेक्टर मनोज सिंह 
आखिरकार थानाप्रभारी मनोज सिंह को दिलासा देते हुए कहा, ‘‘अच्छा सूर्यकान्त तुम एक-दो घंटे तक और अपनी पत्नी की प्रतिक्षा कर लो शायद वह लौट आए। फिर भी वह नहीं लौट आती है तो तुम लगभग 10 बजे रात फिर मुझसे मिलना, फिर देखता हूँ मैं क्या कर सकता हूँ।’’
इसके साथ ही थाना प्रभारी सब इंस्पेक्टर मनोज सिंह अपनी कुर्सी से उठे और दलबल सहित गश्त पर निकल पड़े।
रात दस बजे सब इंस्पेक्टर मनोज सिंह गश्त से लौटे ही थे कि सूर्यकान्त कुछ लोगों के साथ शिवकुटी थाने पर आ गया। सूर्यकान्त को दोबार थाने में आया देखते ही सब इंस्पेक्टर मनोज सिंह ने पूछा, ‘‘क्यों सूर्यकान्त तुम्हारी पत्नी का कुछ पता चला ?’’
‘‘नहीं साहब ।’’ सूर्यकान्त ने निराशा की एक लम्बी सांस ली, ‘‘थक हारकर आपके पास आया हूँ।’’
अन्ततः थाना प्रभारी मनोज सिंह सूर्यकान्त से पूछताछ कर घटनाक्रम के बारे में विस्तृत जानकारी लेने लगे।
पूछताछ के दौरान सूर्यकान्त ने मनोज सिंह को जानकारी दी कि आज सुबह वह तैयार होकर मार्निंग वाक के लिए निकला तब उसकी पत्नी दीपिका कमरे में सो रही थी। इस दौरान वह अपनी गाड़ी लेकर गया था लिहाजा मार्निंग वाक के बाद कुछ खास काम से चला गया। लगभग 11 बजे खाली होने के बाद सूर्यकान्त ने बाहर चाय-नाश्ता किया फिर अपने एक परिचित से मिलने चला गया। वहां से खाली होने के बाद लगभग 1 बजे घर लौटा तो दरवाजे पर ताला लगा हुआ था।
दरवाजे पर ताला लगा देख सूर्यकान्त कुछ देर तक इंतजार करने के बाद जब दीपिका नहीं आई तो फिर वह काम के सिलसिले में चला गया। दो घंटे बाद पुनः वापस लौटा तो भी दरवाजे पर ताला लटकता मिला तो सूर्यकान्त परेशान हो उठा। फिर उसने पास-पड़ोस से दीपिका के बारे में पता किया लेकिन दीपिका के बारे में उसे कोई जानकारी नही मिली। निराश हो दीपिका के मायके फोन कर पता किया । वहां भी उसके होने की जानकरी नहीं मिली। हैरान-परेशान सूर्यकान्त अपने कई परिचित और मित्रों के यहां सम्पर्क किया जहां दीपिका आया जाया करती थी। लेकिन वहां से भी सर्यूकान्त को निराशा ही हाथ लगी।
हर जगह से निराश होने के बाद सूर्यकान्त शिवकुटी थाना प्रभारी मनोज सिंह से सम्पर्क किया। सूर्यकान्त से मिली जानकारी से सब इंस्पेक्टर मनोज सिंह चकित से हो गए थे। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर दीपिका जा कहा सकती है। फिर यह बात भी थानाप्रभारी श्री सिंह के गले नहीं उतर रही थी कि सुबह-सुबह मार्निंग वाक पर निकला व्यक्ति बाहर ही चाय-नाश्ता कर काम पर लग गया। सब इंस्पेक्टर मनोज सिंह ने सूर्यकान्त से अपनी शंका जाहिर न करते हुए पूछा,‘‘तुम्हारी ससुराल कहां है?’’
‘‘रसूलाबाद मे ही है, साहब !’’
‘‘जरा अपने ससुराल का फोन नम्बर देना। पता लगाऊं शायद अब दीपिका वहां पहुंच गई हो।’’
अतुल
थाना प्रभारी श्री सिंह के पूछने पर सूर्यकान्त ने उन्हे अपने ससुराल का नम्बर दे दिया। नम्बर मिलते ही उसी क्षण सब इंस्पेक्टर श्री सिंह ने दीपिका के मायके का नम्बर डायल किया तो उस तरफ से फोन दीपिका के पिता धर्मराज ने उठाया। अपना परिचय देते हुए सब इंस्पेक्टर श्री सिंह ने पूछा, ‘‘आपकी बेटी दीपिका कहां चली गई है। कुछ पता चला आप लोगों को?’’
‘‘नही साहब, हम सब भी उसी को लेकर परेशान है। मुझे तो शक है कि दामाद सूर्यकान्त ने ही दीपिका को गायब किया है।’’
‘‘यह कैसे कह सकते है आप?’’
‘‘दरअसल सुबह नौ बजे दीपिका की मां उससे मिलने उसके घर गई थी भला इतनी सुबह वह अकेले कहां जाएगी। हम लोगों ने सोचा कि दोनों साथ में कही बाहर गए होंगे, लेकिन जब दोपहर में फोन कर सूर्यकान्त ने दीपिका के बारे में पूछा तो हमें बहुत आश्चर्य हुआ।’’ कुछ क्षण चुप रहने के बाद धर्मराज सिंह कहने लगे, ‘‘दरअसल साहब, इधर कुछ दिनों से सूर्यकान्त मेरी बेटी को परेशान किया करता था। इससे लगता है कि सारी कारस्तानी उसी की है।’’
धर्मराज सिंह के रहस्य उजागर करने से थाना प्रभारी श्री सिंह गम्भीर हो उठे और उन्होंने सूर्यकान्त को थाना कार्यालय में बैठने को कह धर्मराज सिंह से बोले, ‘‘ऐसा किजिए अपनी लड़की का एक फोटो लेकर आप इसी वक्त थाने आ जाइए। आपका दामाद भी इस समय थाने में ही बैठा है।’’
इधर थाना प्रभारी ने सूर्यकान्त को थाना कार्यालय में बैठने व उसकी निगरानी करने की बात दीवान से कही तो सूर्यकान्त कुछ परेशान हो उठा। हालांकि अपने चेहरे पर आएं भावों को सूर्यकान्त जाहिर नहीं किया था, फिर भी तेज-तर्रार थाना प्रभारी श्री सिंह की सूक्ष्म नजरों ने तेजी से बदले इन भावों को पढ़ ली थी।
थाना प्रभारी मनोज सिंह अभी कुछ सोच ही रहे थे कि दीपिका के पिता धर्मराज सिंह भी आ गए। उन्होने साथ लायी दीपिका की फोटो उनकी तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह है मेरी बेटी दीपिका की फोटो।’’
तब थाना प्रभारी ने धर्मराज सिंह की हाथों से फोटो ले लिया। फोटो पर नजर पड़ते ही सब इंस्पेक्टर श्री सिंह की नजर स्थिर हो गई। फोटो एक बेहद खूबसूरत और फैशन परस्त युवती की थी। फोटो से नजर हटाते हुए थाना प्रभारी मनोज सिंह मन ही मन सोच में पड़ गए कि इतनी हसीन और खूबसूरत पत्नी से भला सूर्यकान्त को क्या शिकायत हो सकती है। कहीं मामला त्रिकोणीय प्रेम प्रसंग का तो नही है। आखिरकार वह धर्मराज सिंह से पूछताछ करने लगे।
पूछताछ के दौरान धर्मराज सिंह ने बताया कि सूर्यकान्त अक्सर ही दीपिका को मारा-पीटा करता था जबकि सूर्यकान्त कह रहा था कि वह अपनी पत्नी से बहुत प्रेम किया करता था फिर मारने-पीटने की बात उनकी समझ में नहीं आ रही थी। मामला उलझता हुआ देख तत्काल सब इंस्पेक्टर मनोज सिंह ने अपने वरिष्ठ अधिकारी क्षेत्राधिकारी कर्नलगंज डी.पी.शुक्ला को सारी जानकारी से अवगत करा दिया।
जानकारी मिलते ही डी.पी.शुक्ला भी थाने आ गए। उन्होने भी सूर्यकान्त से व्यापक पूछताछ की तो पुनः सूर्यकान्त वही पुराना राग अलापने लगा। मामला हल होता हुआ न देख पुलिस अपने पर उतर आई तो सूर्यकान्त की आंखों में बेवसी के आंसू आ गए। लेकिन मुंह से कुछ बोल नहीं रहा था। तब क्षेत्राधिकारी डी.पी.शुक्ला ने मनोवैज्ञानिक दबाव डालते हुए कहने लगे, ‘‘देखो सूर्यकान्त मुझे तुमसे बेहद हमदर्दी है। मैं सब जान गया हूँ कि तुम्हारे साथ क्या मजबूरी थी। पर जब तक मैं पूरी बात नहीं जान पाऊंगा तब तक तुम्हारी कोई भी मदद नहीं कर सकता।’’
डी.पी. शुक्ला क सहानभूति भरे शब्द सुन चार घण्टे से पुलिस की जलालत सह रहे सूर्यकान्त के सब्र का बांध टूट गया और वह उनका पैर पकड़ कर रोता हुआ कहने लगा, ‘‘मैं आपको सब कुछ बता रहा हूँ साहब।’’ फिर सूर्यकान्त ने जो कुछ भी बताया। वह दर्द में डूबे बेवश पति की व्यथा और मजबूरी थी जिसने एक सीधे-साधे व्यक्ति को भयानक फैंसला कर लेने को मजबूर कर दिया था।
काफी मानमनौवल के बाद रूठकर दीपिका दिल्ली से सूर्यकान्त के पास आ गई थी। एक दिन बीयर पीने के बाद उसने एकान्त की क्षणों में बताया था कि दिल्ली में जीजाजी उसकी हर इच्छा पूरी करते थे। वहां एक दिन में हम सब तीन-तीन बोतल रम पी जाते थे। वाह-वाही झाड़ते हुए उसने यह भी बता दिया कि दिल्ली में रहने के दौरान वह कभी जीजा के साथ तो कभी उनके भाई के साथ तक सो जाती थी तो सूर्यकान्त का खून खौल उठा, भला कोई मर्द यह कैसे बर्दाश्त कर सकता है कि उसकी बीबी दूसरे के साथ सोई थी फिर भी सूर्यकान्त ने इस पर कोई खास ध्यान नहीं दिया।
अभी कुछ ही दिन बीते थे कि दीपिका का जीजा दिल्ली से इलाहाबाद आया। फिर पति से जिद कर उसने एक दिन खाने का प्रोग्राम अपने घर पर रखा और पूर्वी उत्तर प्रदेश का पसंदीदा व्यंजन बाटी-चोखा बनवाया और जीजा को खाने पर बुलवाया। उस दिन दीपिका का जीजा आया तो सूर्यकान्त किसी जरूरी काम से कुछ देर के लिए बाहर चला गया। वापस लौटा तो कमरे में दीपिका अपने जीजा के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पड़ी थी। सूर्यकान्त के वापस आते ही दोनो अलग हुए और अपने कपड़े ठीक कर बाहर निकल गए।
अपनी आंखों से पत्नी का असली रूप देखकर सूर्यकान्त को अपने आपसे घीन आने लगी और वह सोचने लगा कि जिसके प्यार में वह पागल है, वह उसकी बीबी होते हुए भी गैरों की बांहों में झूलने के लिए बेताब है। गुस्से में आकर उसने दीपिका को कई थप्पड़ रसीद कर दिया।
अब तक दीपिका के प्रेम में दीवाना सूर्यकान्त दीपिका से घृणा करने लगा था। वह सोचता था कि दीपिका कभी नहीं सुधरेगी और हमेशा ही अपने हुश्न के जाल में उलझाकर नए-नए लोगों के साथ मौज-मस्ती करती रहेगी। अन्ततः सूर्यकान्त को जब यकीन हो गया कि कि दीपिका उसकी बन कर नहीं रह सकती और वह किसी अन्य की बाहों में उसे नहीं देख सकता था। सूर्यकान्त ने हमेशा-हमेशा के लिए दीपिका को दुनिया से विदा कर देने का निर्णय ले लिया।
इसी बीच सूर्यकान्त परिवार से अलग होकर गंगादर्शन कालोनी आ गया था। यहां आते ही दीपिका और भी आजाद हो गई। पहले तो सूर्यकान्त ने दीपिका को एक बार पुनः समझा-बुझा कर रास्ते पर लाने का प्रयास किया, लेकिन दीपिका इस पर भी नहीं सुधरी तो अपने फैसले को अंतिम रूप देने की योजना बना ली।
योजनानुसार 12 सितम्बर 2005 को सूर्यकान्त का चित्रकूट घूमने का प्रोग्राम था। घूमने के लिए उसने अपने मित्र अतुल काटिया और अरविन्द पाण्डेय को साथ ले लिया। फिर उसने दीपिका से पूछा, ‘‘हम लोग चित्रकूट घूमने जा रहे है, तुम्हारा क्या इरादा है ?’’
पति की बात सुनते ही घूमने-फिरने की शौकीन दीपिका तुरन्त ही तैयार हो गई। फिर कार से चारो घर से निकल पड़े। नैनी (इलाहाबाद) में आकर सब एक होटल पर रूके तो अतुल एक बोतल रम ले आया। फिर सबने मिल कर रम पी और खाना खाया और चित्रकूट की तरफ निकल पड़े। यहां वहां घूमते-फिरते रात घिर आई थी।
अन्ततः सूर्यकान्त ने चित्रकूट के मझगवां थाना क्षेत्र में एक सुनसान स्थान पर अपनी कार रोकते हुए कहने लगा, ‘‘यहां कितनी शांति है। चलो कुछ देर यहां हवा खोरी की जाएं, फिर आगे चलेंगे।’’
पति की बात दीपिका को भी अच्छी लगी और वह सब के साथ कार से बाहर आ गई और नशे की खुमारी लिए यहां-वहां टहलने लगी। अचानक योजना के मुताबिक सूर्यकान्त ने साथ लाएं असलहे से दीपिका के सीने पर फायर कर दिया। गोली लगते ही दीपिका के सीने से खून धारा बहने लगी और वह जमीन पर गिर कर छटपटाने लगी। कुछ देर तड़पने के बाद जब दीपिका शांत हो गई तो सूर्यकान्त ने साथ लाए कार से पेट्रोल निकालकर मृत दीपिका पर उड़ेल कर आग लगा दी।
धू-धू कर दीपिका का शरीर जलने लगा तब सूर्यकान्त अपने मित्रों के साथ घर की तरफ चल दिया। भोर होते-होते सब इलाहाबाद आ गए। फिर अरविन्द व अतुल अपने-अपने घर चले गए और सूर्यकान्त भी अपने घर आ गया। सुबह जल्दी उठ कर सूर्यकान्त ने दरवाजे पर ताला लगाया फिर चला गया दोपहर बाद घर लौटा तो यहां-वहां दीपिका के बारे में पता लगाने लगा। इसी क्रम में उसने दीपिका के मायके भी पता किया।
अन्ततः दीपिका को खोजने का नाटक करता गुमसूदगी दर्ज करवाने खुद थाने पहुंच गया। लेकिन तेज-तर्रार थाना प्रभारी सब इंस्पेक्टर मनोज सिंह की सूझ-बूझ से सूर्यकान्त की चालाकी काम नहीं आई और उसने अपना अपराध कबूल कर लिया।
सूर्यकान्त के रहस्य उजागर करते ही सब इंस्पेक्टर मनोज सिंह चौक पड़े और उन्होंने तत्काल उसकी जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को देने के साथ ही चित्रकूट के मझगवां थाने से सम्पर्क कर पता किया तो पता चला कि क्षेत्र में एक युवती का शव जली अवस्था में मिला है। शिनाख्त न होने पर मुकदमा दर्ज कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है।
शव पाए जाने की जानकारी होते ही सब इंस्पेक्टर ने मझगवां पुलिस को बता दिया कि हत्यारे को उन्होने गिरफ्तार कर लिया है अब वह शिनाख्त के लिए उसे लेकर खुद ही मझगवां आ रहे है। उसके साथ ही श्री सिंह ने दीपिका के मां-बाप से ही दीपिका को मार डाले जाने की जानकारी दे दी। बेटी की नृषंस हत्या से घर में कोहराम मच गया। आनन-फानन में बेटी का शव लेने के लिए धर्मराज सिंह अपने परिचितों के साथ चित्रकूट चल दिए।
इधर शिवकुटी थानाप्रभारी सब इंस्पेक्टर मनोज सिंह सूर्यकान्त को लेकर मझगवां पहुँचे तो पहले उन्होने उस स्थान की पहचान करवाई जहां सूर्यकान्त ने दीपिका को मौत के घाट उतारा था फिर उसे मझगवां पुलिस को सौंप दिया। जहां से आवश्यक कार्यवाही एवं पूछताछ के बाद अगले दिन पुलिस ने उसे अदालत में प्रस्तुत कर दिया। वहां से उसे 14 दिनों की न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया।
प्रस्तुत कथा लिखे जाने तक चित्रकूट पुलिस सूर्यकान्त के मित्र अतुल व अरविन्द की तलाश में उनके मिलने वाले सम्भावित स्थानों पर छापा मारने में लगी थी। पुलिस को विश्वास है कि शीघ्र की वह दोनों भी पुलिस के हत्थे लग जाएगें।
 (प्रस्तुत कथा पुलिस सूत्रों अभियुक्त के बयानो व जनचर्चाओं पर आधारित है)
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नौकर ने बुझाया घर का चिराग

शुभांग जीवीत अवस्था में
- ताराचंद विश्वकर्मा
उस दिन विशाल संदीप से काफी दिनों बाद मिला तो संदीप व्यंग्य करते हुए कहने लगा, “क्यों विशाल आज इस नाचीज की याद कैसे आ गई…
इधर पैसे की काफी कड़की है यार! नौकरी के सिलसिले में गया था पर..” विशाल बोलते-बोलते रूक गया।
पर क्या…? खुलकर बताओ यार…” संदीप ने पूछा था।
विशाल कुछ पल शांत रहा फिर बोला, “जेब भी खाली और जिंदगी भी खाली है। कोर्इ नौकरी भी नही मिल रही है। कर्इ वांट भरे भी पर पैसे के चलते कोर्इ भी काम नही बन रहा है। आखिर जिंदगी हमारी कठिन परीक्षा क्यों ले रही है, यह समझ में नही आ रहा है। अच्छा तू बता तेरे पास कुछ पैसे है? मुझे कुछ जरूरी काम है।
संदीप सर हिलाते हुए बोला, “नही यार महीने का आखिरी समय चल रहा है। इस समय तो मेरा हाथ भी काफी तंग रहता है।
ऐसे कैसे चलेगा यार ..? क्या हम लोगों के नसीब में यूही घुट-घुटकर जीना लिखा है?”
संदीप कुछ देर सोचता रहा फिर बोला, “अगर तू मेरा साथ दे तो हम लोग भी रातों-रातों लखपति बन सकते है।
वह कैसे?” विशाल को आश्चर्य था कि भला संदीप के दिमाग में ऐसी कौन सी योजना है, जो उन्हें रातों-रातों लखपति बना देगी। उसने आंखें फाडे़ आश्चर्य से पूछा था।
संदीप ने कहना शुरू किया, “मेरे सेठजी काफी मालदार असामी हैं ही ऊपर से अभी हाल ही में उन्होनें 17 लाख रुपये में अपना एक जमीन भी बेंचा है। पैसे की कोर्इ कमी नही है। उनके दो बच्चे साक्षी व शुभांग है। अगर हम उनके बेटे शुभांग का अपहरण कर ले तो हम लोग आराम से सेठ से 20-25 लाख रुपयों की फिरौती वसूल सकते है।
विशाल ने संदीप की योजना सुनी तो वह घबरा कर बोला, “अगर तुम्हारा सेठ पुलिस के पास चला गया तो?”
मृत शुभांग- इस दशा में बरामद हुआ था शव
यह सुनकर संदीप ठहाका मार कर हसतें हुए बोला, “अरे यार शुभांग उनका इकलौता वारिस है। सेठ और सेठानी दोनो उस पर जान छिड़कते है। इसलिए वह कोर्इ रिस्क नही उठाएगें। हम जितना रूपया मागेंगे सेठ शुभांग की वापसी के लिए आराम से हम तक पहुंचा देंगे। फिर भी हम सावधन होकर पूरी प्लानिंग के साथ यह काम करेंगे। पैसा मिलते ही बच्चे को यूंही कही लावारिस छोड़ हम फरार हो जायेगे।
शुभांग तो तुम्हें अच्छी तरह से जानता-पहचानता है?”
वह हमें ही जानता है न! जब तक वह घरवालों को हमारे बारे में बतायेगा, हम यह शहर छोड़कर कही और चले जाएगें....बोल, लखपति बनने के लिए तू मेरे साथ यह रिस्क लेगा?”
अब तक घ्यान से संदीप की बात सुनता विशाल संदीप से हाथ मिलाते हुए फिल्मी स्टाइल से बोला, “चल यार, यह गेम कर ही डालते हैं। इस पार या उस पार। लखपति बनने के लिए थोड़ा रिस्क तो उठाना ही पड़ेगा। वरना सारी जिंदगी यूंही घुट-घुटकर बीत जाएगी.... पर यार इतना बड़ा काम हम दो लोगो के बस का नही है।
फिर कुछ विचार-विमर्श के बाद उन्होंने अजीत उर्फ विजय शर्मा व प्रमोद कुमार यादव को भी अपने साथ मिला लिए फिर फूलप्रूफ प्लानिंग के साथ घटना को अंजाम देने का दिन निर्धारित कर लिया।
संदीप सिंह उत्तर प्रदेश के पुर्वांचल में स्थित आजमगढ़ जनपद के व्यापार मंडल के पूर्व अघ्यक्ष छेदी लाल रूंगटा के पुत्र अजीत रूंगटा का विश्वास पात्र नौकर है। छेदी लाल के परिवार में पत्नी दमयंती देवी के अलावा दो पुत्र- आलोक रूंगटा व अजीत रूंगटा तथा दो पुत्रियां- अनुपमा व श्वेता हैं।
खाते-पीते सम्पन्न परिवार से ताल्लुकात रखने वाले अरसठ वर्षीय छेदी लाल रूंगटा कपड़े का थोक व्यवसाय करतें थे। समय के साथ पढ़-लिखकर बच्चे योग्य हुए तो उन्होंने अपनी बड़ी लड़की अनुपमा की शादी कोलकाता के पवन बजाज से कर दिया। फिर आलोक की शादी कोलकाता में ही की। बाद में श्वेता की कटक (उड़ीसा) निवासी सूरज के साथ तथा अजीत की कोलकाता निवासिनी लता के साथ शादी कर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गये। आज उनकी बेटिया जहा अपने बाल-बच्चों के साथ हसी खुशी जीवन यापन कर रही हैं वहीं बेटे भी अपने-अपने व्यवसाय में लग गये हैं और कोतवाली क्षेत्र के ही सदावार्ती मोहल्ले में रहते है।
दो लड़कियों व एक लड़के के पिता आलोक रूंगटा का मन पिता के व्यवसाय में नही लगा तब वह शेयर मार्केट से जुड़ गए और अपने बाल बच्चों की परवरिश करने लगे। आलोक से छोटे अजीत रूंगटा पिता के नक्से कदम पर चलते हुए कपड़े के व्यवसाय से ही जुड़े रहे और लगभग डेढ़ वर्ष पहले थोक कपड़े का व्यवसाय बन्द कर चौक अहमद कटरा आसिफ गंज में ही 'रत्न प्रिया साड़ी नाम से साडि़यों के रिटेल सेल की दुकान खोल ली। साथ ही इसी दुकान से ही वह शेयर मार्केट का भी कुछ काम धाम करते थे। इसी दुकान पर काम में हाथ बटाने के लिए अजीत ने संदीप को नौकर रखा था।
अभियुक्त विशाल श्रीवास्तव
अजीत रूंगटा के परिवार में पत्नी लता के अलावा दो संताने- चौदह वर्षीय लड़की साक्षी व ग्यारह वर्षीय पुत्र शुभांग था। साक्षी सातवीं कक्षा तथा शुभांग छठी में शहर के जाने माने स्कूल ज्योति निकेतन में पढ़ते थे।
31 अगस्त 2006 की सुबह शुभांग रोज की तरह स्कूल गया। जब दोपहर 2 बजे तक घर वापस नहीं पहुचा तो मा लता रूंगटा बेचैन हो गर्इ और वह बेटी साक्षी से शुभांग के बारे में पूछने लगी, “बेटीशुभांग अभी तक क्यों नही आया? उसने तुमसे कुछ कहा तो नही है?”
नहीं मां छुटटी के बाद मैनें उसे देखा ही नही, पर उसकी साइकिल स्टैड पर खड़ी थी। मैंने सोचा कहीं इधर-उधर होगा आ जाएगा।
साक्षी की बात सुन लता रूंगटा आश्वस्त हो सोचने लगी शायद वह अपने किसी मित्र के साथ खेलने-कूदने में लग गया होगा। कुछ देर बाद आ जायेगा। इस तरह मन को तसल्ली देकर वह घर के काम में जुट गर्इ पर उनका मन काम में नही लग रहा था। जरा सी हल्की आहट पर रह-रहकर उनकी नजर दरवाजे की तरफ उठ जाती कि शायद शुभांग आ गया, पर शुभांग की झलक न दिखने पर वह व्याकुल हो उठती थी।
जैसे तैसे एक घंटा बीत गया पर शुभांग नही लौटा न ही उसकी कोर्इ खबर ही आर्इ तो बदहवास लता रूंगटा ने अपने पति की दुकान पर फोन कर सारी बात बताते हुए तत्काल शुभांग के बारे में पता लगाने को कहकर रोने बिलखने लगी। शुभांग के घर न लौटने से अजीत रूंगटा भी परेशान हो उठे थे। फिर भी पत्नी को सांत्वना देकर अपने स्तर से शुभांग के बारे में पता लगाने में जुट गए। लेकिन वह जहा भी जाते वहा उन्हें निराशा ही हाथ लगती थी।
अब तक शुभांग के रहस्यमय ढंग से लापता होने से पूरा परिवार ही परेशान हो उठा था। इसी बीच शाम लगभग 5 बजे अजीत रूंगटा के मोबाइल पर फोन आया। फोन सुनकर अजीत रूंगटा को चक्कर सा आ गया और घर में कोहराम मच गया। अभी कुछ देर ही बीता था कि दूसरी बार भी मोबाइल की घंटी बजी। इसे रिसीव करते ही पूरी रूंगटा फैमली बदहवास हो गयी थी कि शुभांग का अपहरण हो गया है। अपहर्ता रिहार्इ के एवज में 20 लाख मागे थे। लता का हाल काफी बुरा था। वह पति के कदमों से लिपट कर रोते हुए कहे जा रही थी, जैसे भी अभी मेरे बेट को वापस लेकर आइए। यही हाल अजीत का भी था। वह किसी तरह अपने मन को काबू में रखे हुए लता को सांत्वना दिए जा रहे थे। परिवार के कुछ लोग फोनकर्ता की बात मान लेने को कह रहे थे, तो कुछ पुलिस को सूचना देने की बात करते थे।
अभियुक्त संदीप प्रमोद पुलिस हिरासत में
आखिरकार आनन-फानन में विचार-विमर्श के बाद तय हुआ कि पुलिस को सूचना दी जाय पर अपहरण एवं फिरौती की बात छुपा कर। तय होने के बाद कुछ व्यापारियों के साथ अजीत रूंगटा एस0पी0 नवीन अरोरा से सम्पर्क कर स्कूल से रहस्यमय तरीके से शुभांग के गायब होने की जानकारी दी गर्इ। फिर उनके निर्देशन पर अजीत रूंगटा ने शाम छ: बजे कोतवाली पुलिस को घटना की जानकारी दे दी।
अब तक जंगल में लगी आग की तरह शुभांग की रहस्यमय गुमसूदगी की जानकारी चारो तरफ फैल चुकी थी। शहर का व्यापारी वर्ग घटना से सहम गया था। विधालयों में पढ़ने वाले छोटे बच्चों के अभिभावक काफी भयभीत थे। शुभांग की मां तो अन्न-जल तक छोड़ दिया था। रहस्यमय गुमसूदगी की सूचना मिलते ही कोतवाली पुलिस संदिग्ध लोगों पर नजर रखने के साथ ही ज्योति निकेतन स्कूल के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को पूछताछ कर सुराग लगाने के लिए उठा लिया। रात भर की व्यापक पूछताछ के बाद भी कुछ जानकारी नही मिल पार्इ।
जैसे-जैसे समय बीतता गया शहर में आक्रोश फैलता गया। इसी बीच किसी माघ्यम से एस0टी0एफ0 के एस0पी0 भगत को घटना की जानकारी हो गर्इ। उन्होने तत्काल आजमगढ़ के एस0पी0 नपवीन अरोरा से घटना की जानकारी ली। फिर एस0टी0एफ0 का एक दल तुरन्त आजमगढ़ के लिए रवाना कर दिया।
अब तक की पुलिस छानबीन से साफ हो गया था कि शुभांग का फिरौती के लिए अपहरण किया गया है। तब पुलिस ने शुभांग के पिता अजीत रूंगटा द्वारा दर्ज करवाये गये गुमसूदगी रिपोर्ट को मुकदमा अपराध संख्या 1448/2006 पर भारतीय दण्ड विधान की धारा 364 ए आर्इ0पी0सी0 के अन्तर्गत प्राथमिकी दर्ज कर शुभांग के बारे में पता लगाने के लिए तेजी से जुट गर्इ थी। इसी दौरान लखनऊ से आर्इ एस0टी0एफ0 की टीम भी आजमगढ़ पहुच कर काम में जुट गर्इ। पुलिस अधीक्षक नवीन अरोरा ने शुभांग का पता लगाने के काम में तेजी लाने के लिए कोतवाली प्रभारी को हटाकर उनके स्थान पर इंस्पेक्टर राम मोहन यादव को कोतवाली का प्रभारी बनाकर विवचना की जिम्मेदारी  उन्हे सौंप दी।
विवेचना हाथ में आते ही इंस्पेक्टर श्री यादव ने चारों तरफ मुखबिरों का जाल फैला दिया था। इसी बीच ज्योति निकेतन स्कूल के फादर ने एस0पी0 नवीनअरोरा से सम्पर्क कर शुभांग की सकुशल वापसी कराये जाने का अनुरोध करते हुए जानकारी दी कि स्कूल के कुछ बच्चों ने शुभांग को उस दिन किसी के साथ जाते देखा था।
जानकारी महत्वपूर्ण थी। पुलिस के साथ एस0टी0एफ0 का दल तुरन्त ही बच्चों से सम्पर्क कर शुभांग को स्कूल से ले जाने वालों का हुलिया पता लगा लिया। हुलिया अजीत रूंगटा के नौकर संदीप सिंह से काफी मिलता-जुलता था। संदीप रूंगटा परिवार का एक विश्वासपात्र नौकर था। सीधे उस पर हाथ डालना खतरे से खाली नही था। लिहाजा पुलिस गुपचुप ढंग से छानबीन करने लगी।
अभियुक्त को देखने के लिए जमा लोग
संदीप मूलरूप से अम्बेडकर नगर जिले के जहागीरगंज थाना अन्तर्गत मकसूदपुर गाव के निवासी स्वर्गीय राजेन्द्र सिंह के दो पुत्र व दो पुत्रियों में तीसरे नम्बर पर है। आजमगढ़ के हीरापटटी मोहल्ले में उसका ननिहाल है। नवासे में उसके पिता को यहा की जमीन मिली थी। जिस पर वह दूध का कारोबार किया करते थे। 15 मार्च 2006 को हार्ट अटैक होने के कारण राजेन्द्र सिंह की मौत हो गर्इ।
राजेन्द्र सिंह की मौत के बाद दूध का कारोबार बंद हो गया था। राजेन्द्र के दो पुत्र प्रदीप व संदीप का रहनसहन बदल गया। बड़ा पुत्र प्रदीप तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत करता है। जबकि संदीप पहले से ही जीविकोपार्जन के लिए अजीत रूंगटा के यहा कपड़े की दुकान पर नौकरी करने लगा था।
रूंगटा परिवार संदीप को काफी मानता था। उस पर काफी विश्वास भी करता था। संदीप ही दुकान खोलता था। इस दौरान दुकान की चाभी भी उसके पास ही रहती थी। वह कपड़ो की थोक खरीद और बिक्री भी करता था। इसके लिए वह गोरखपुर, वाराणसी भी आता-जाता था। इस दौरान उसके पास काफी पैसे होते थे।
छानबीन के दौरान ही पुलिस को पता चला कि रूंगटा परिवार की दुकान में पहले भी दो बार चोरी हुर्इ थी। तब भी संदीप पुलिस के संदेह में आया था। लेकिन उस पर अटूट विश्वास होने के कारण रूंगटा परिवार ने कोर्इ भी कार्यवाही नहीं होने दी थी। इस बीच एस0टी0एफ0 ने ज्योति निकेतन स्कूल के बच्चें द्वारा बताए गए हुलिए का स्कैच भी बनवा लिया। स्कैच हूबहू संदीप से मैच करता था। लिहाजा पुलिस ने पूछताछ के लिए उसे उठा लिया।
पूछताछ शुरू हुर्इ तो पहले संदीप अपने आप को बेगुनाह बताता रहा। लेकिन जब पुलिस अपने पर उतर आयी तो, संदीप टूट गया फिर उसने रहस्य उजागर करते हुए बताया कि डर बस हम सब ने उसकी हत्या कर दी है। संदीप के रहस्य उजागर करने पर सहसा पुलिस को विश्वास ही नही हुआ।
संदीप ने रहस्य उजागर करते हुए बताया था कि वह डेढ़ वर्षो से अजीत रूंगटा के कपडे़ की दुकान पर काम कर रहा था पर, उसका इस काम में मन नहीं लगता था। लिहाजा वह जगह-जगह  नौकरी के लिए आवेदन करता था। नौकरी के सिलसिले मे घटना से कुछ दिन पुर्व बिहार के गया जिले में सेना में भर्ती होन के लिए गया था। वहां उसे बताया गया, सेना में भर्ती होने के लिए डेढ़ लाख रुपये घूस लगती है। तभी से वह पैसे के जुगाड़ में लगा था।
समय का चक्र चलता रहा इसी बीच संदीप को पता चला कि अजीत रुंगटा ने अच्छे कीमत पर अपनी एक जमींन बेच दी है। जानकारी मिलते ही उसके मन में नौकरी की ललक जाग उठी। फिर उसने अपने मित्र विशाल श्रीवास्तव से सम्पर्क किया।
विशाल श्रीवास्तव विष्णु श्रीवास्तव के चार संतानों में इकलौता पुत्र है। विष्णु श्रीवास्तव मूलरुप से बिलरियागंज थानाक्षेत्र के रग्घूपुर गांव के रहने वाले हैं। इनकी पत्नी शशि श्रीवास्तव देवरिया जनपद में प्राथमिक विधालय मे शिक्षिका है तथा अपनी बड़ी लड़की के साथ देवरिया के सलेमपुर में रहती है। जबकि विष्णु श्रीवास्तव अपनी दो बेटियों व विशाल के साथ अपने एक रिश्तेदार के नाम से एलाट बिलरिया की चुंगी स्थित सदर अस्पताल के शासकीय आवास टाइप-2 में रहते है।
विरोध में सड़क पर उतरीय महिलायें
विशाल काम-धंधे को लेकर काफी परेशान रहता था। संदीप ने जब अपनी योजना बतार्इ तो पहले उसने इन्कार कर दिया। लेकिन जब जरा सी रिक्स पर अच्छा खासा पैसा मिलने की बात कही तो वह तैयार हो गया। दोनों ने अजीत शर्मा को भी सहयोग के लिए अपने साथ मिला लिया।
अजीत ऊर्फ विजय शर्मा महिला चिकित्सालय में चालक के पद पर कार्यरत अभय शर्मा के चार पुत्रों ने तीसरे नम्बर का है। मूलरुप से सिधारी थानाक्षेत्र के मतौलीपुर निवासी अभय शर्मा वर्तमान में आजमगढ़ जिला चिकित्सालय के सरकारी आवास में अपने परिजनों के साथ रहते है। अजीत शर्मा के बड़े भार्इ अमित की हरिऔध नगर कालोनी के बगल में सैलून की दुकान है। संदीप, अजीत व विशाल अक्सर ही यहीं बैठा करते थे। संदीप व विशाल ने जब अजीत को अपनी योजना बतार्इ तो वह भी उनका साथ देने को तैयार हो गया।
अब समस्या थी तो बस शुभांग को छिपाकर रखने की। लिहाजा तीनों ने सिधारी थानाक्षेत्र के जमालपुर गांव निवासी हरिबंश यादव के पुत्र प्रमोद को भी साथ मिला लिया। प्रमोद का एक अर्द्धनिर्मित मकान जमालपुर में था। जबकि उसका पूरा परिवार पास में ही दूसरे मकान में रहता था।
योजना पर काम 30 अगस्त को शुरु हो गया। उस दिन योजनानुसार अजीत व विशाल शुभांग का अपहरण करने के लिए ज्योति निकेतन स्कूल पहुंचे, पर पुलिस को स्कूल के आस-पास देख उनका हौसला जवाब दे गया और वह खाली हाथ लौट गए। अगले दिन 31अगस्त 2006 की सुबह संदीप ने अजीत रुंगटा से बहाना कर छुटटी ले ली कि वह अतरौलिया डाकघर से किसान विकास पत्र लेने जाएगा।
अजीत रुंगटा से छुटटी लेने के बाद संदीप व विकास अजीत की मोटर साइकिल से ज्योति निकेतन की तरफ चल पडे़। स्कूल से कुछ दूर पहले ही संदीप ने विकास को उतारकर पास ही स्थित बंधे पर इतंजार करने को कह स्कूल पहुंच गया। अभी स्कूल की छुटटी होने में कुछ समय बाकी था। संदीप-अजीत के साथ स्कूल के सामने एक चाय पान की दुकान पर खडे़ हो कर शुभांग के स्कूल की छुटटी की प्रतिक्षा करने लगे। कुछ देर बाद स्कूल की छुटटी हुर्इ। शायद शुभांग का दुर्भाग्य ही था कि छुटटी के समय स्कूल के गेट के पास एक हाथी को देख कौतूहल बस वह साइकिल स्टैन्ड पर न जाकर गेट पर आ गया।
गेट पर आते ही उसकी नजर संदीप से टकरा गर्इ तब संदीप इशारे से उसे अपने पास बुलाकर कहने लगा, “शुभांग जल्दी चलो मैं तुम्हें ही लेने आया हूं।
शुभांग संदीप को अच्छी तरह से जानता था, फिर भी वह पूछने लगा, “क्या हुआ संदीप अंकल ?”
घर में तुम्हारी मां की तबियत अचानक खराब हो गयी है।
मां की बिमारी का समाचार सुनते ही मासूम शुभांग घबरा गया और वह तेजी से साइकिल स्टैन्ड की तरफ जाने के लिए मुड़ा ही था कि संदीप बोल पड़ा, “साइकिल छोड़ मेरे साथ चलो। साइकिल बाद में चली जायेगी।
आखिरकार संदीप की बातों में आकर शुभांग संदीप के साथ अजीत की मोटर साइिकल पर बैठ गया। कुछ दूर जाने के बाद जब अजीत बंधे की तरफ मुड़े तब शुभांग बोल पड़ा, “इधर कहा चल रहे हैं, संदीप अंकल?”
विरोध प्रदर्शन करते लोग
मां अस्पताल में हैं बेटा! इसलिए हम सब भीड़ वाले रास्ते से हटकर चल रहे हैं जिससे जल्दी पहुंच सके।
यह सुन मासूम शुभांग चुप हो गया। कुछ देर में शुभांग को लेकर दोनो बंधे के पास पहुच गये। जहां विशाल उन दोनों का इंतजार कर रहा था। इससे पहले ही संदीप ने शुभांग को बेहोश कर दिया था।
बंधे से विशाल को भी साथ लेकर संदीप सिधारी थाना क्षेत्र के जमालपुर के सड़क के किनारे सूनसान में प्रमोद यादव के अर्द्धनिर्मित मकान पर पहुचे। प्रमोद यादव वहां पूरी तैयारी से पहले से ही मौजूद था। वहा शुभांग को छिपाने के बाद शाम लगभग चार बजे पहले से ही फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर दूसरे जिले से लिए गए सिमकार्ड से अजीत को फोन कर 20लाख रुपए की फिरैती मांगी गर्इ।
कुछ देर रुकने के बाद संदीप शुभांग का वहीं छोड़कर सामान्य ढंग से अपने घर चला गया। अगले दिन रोज की भांति नियत समय पर अजीत रूंगटा की दुकान खोली। वहीं से वह साथियों से संपर्क करता रहा। साथ ही रूंगटा फैमली में क्या हो रहा है। उसकी पल-पल की जानकारी साथियों को देता रहा।
इधर होश में आने के बाद शुभांग घर जाने के लिए जोर-जोर से रोने लगा था। काफी समझाने-बुझाने के बाद भी वह चुप होने का नाम नही ले रहा था। इस पर गुस्से में आकर विशाल व अजीत ने शुभांग की जम कर पिटार्इ भी कर दी, पर वह चुप नहीं हो रहा था। इसी दौरान 1सितम्बर 06 का संदीप ने रूंगटा परिवार द्वारा किए जा रहे प्रयास के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि शुभांग की सकुशल वापसी के लिए घर पर यज्ञ करवाया जा रहा है। इस यज्ञ के पूरा हो जाने के बाद घटना को अंजाम देने वाले पागल हो जाएगें। वह खुद--खुद शुभांग को घर पहुचा देंगें।
इस जानकारी के बाद सब घबरा गए। विचार-विमर्श के बाद तय हुआ कि शुभांग की तत्काल हत्या कर उसके शव को ठिकाने लगा दिया जाय। तय कार्यक्रम के अनुसार 1 सितम्बर की रात 8 बजे के करीब अजीत शर्मा और विशाल शुभांग को बेहोश करके बार्इक पर बैठाकर निकले और शारदा तिराहे से बंधे वाले रोड होते हुए तमसा नदी के किनारे पहुचें। तब तक दुकान बंद करके संदीप भी वहां पहुच गया। फिर छह-छह फुट लम्बी झाडि़यों के बीच मासूम बेहोश शुभांग को ले जाकर उसका गला घोट कर हत्या कर वहीं छोड़ कर चले गए।
शुभांग के पिता को सांत्वना देते एस0पी0
शुभांग के अपहरण के बाद हत्या कर दिए जाने की जानकारी मिलते ही इंस्पेक्टर राममोहन यादव ने वरिष्ठ अधिकारी पुलिस अधीक्षक नवीन अरोरा, सीटी एस0 पी0 नन्द किशोर, क्षेत्राधिकारी हरिनाथ यादव को घटना की जानकारी दे अन्य अभियुक्तों कि गिरफ्तारी एवं शुभांग की लाश बरामद करने के लिए आवश्यक दल तैयार करने के लिए हेडकांस्टेबल शमशेर सिंह को निर्देश दे दिया।
वरिष्ठ अधिकारी का निर्देश मिलते ही कांस्टेबल शमशेर सिंह आनन-फानन में आवश्यक पुलिस बल एकत्रित कर कुछ अभियुक्तों को गिरफ्तारी के लिए रवाना कर दिया। इसी बीच एस0टी0एफ0 के साथ इंस्पेक्टर राममोहन यादव संदीप की निशान देही पर तमशा नदी के किनारे झाडि़यों से मासूम शुभांग का शव बरामद कर लिया।
शुभांग का शव बरामद होने की जानकारी मिलते ही वरिष्ठ अधिकारी भी घटना स्थल पर पहुंच गए फिर आवश्यक औपचारिकताए पूरी करने के बाद तत्काल शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया।
इसी बीच अन्य अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए निकले पुलिस दल के हत्थे प्रमोद कुमार यादव भी लग गया। पुलिस उसे लेकर थाने लौट आर्इ। अब तक शुभांग के अपहरण एंव हत्या किए जाने की जानकारी नगर मे फैल गर्इ तो लोगो को आक्रोश फूट पड़ा। जगह-जगह धरना प्रदर्शन का दौर चल पड़ा। आनन-फानन में उसी रात लगभग डेढ़ बजे तक शव का पोस्टमार्टम करवाकर शव परिजनों को सौंप दिया गया।
शुभांग का पार्थिव शव मिलने के बाद उसे जीप पर रखा गया। रात होने के बावजूद उस समय भीड़ इतनी अधिक थी कि जिला अस्पताल से अजीत रूंगटा के घर के बीच दो किलोमीटर की दूरी तय करने में एक घंटे से अधिक समय लग गया। परिस्थिति को देखते हुए पुलिस प्रशासन चौकन्ना था। सुरक्षा का व्यापक प्रबन्ध भी कर रखा था।
रात ढार्इ बजे के करीब जब शव अजीत रूंगटा के मकान के सामने पहुंचा तो कोहराम मच गया। घर की स्त्रियों के रुदन से वहां उपस्थित सभी लोग रो पड़े थे। शुभांग की मां तो बुत बनी बैठी थी। रोते-रोते उसकी आखों के आंसू सूख चुके थे। पिता अजीत रूंगटा की स्थिति बदहवासों जैसी थी। दादा छेदीलाल का भी यही हाल था।
जैसे-तैसे रात बीती अगले दिन सुबह पांच बजे के करीब शव का अंतिम संस्कार करने के लिए शव लेकर घर से चले तो चीख पुकार से एक पुन: पूरा माहौल गमगीन हो गया। आगे-आगे शुभांग का शव था, पीछे हजारों की संख्या में व्यापारी एवं नगरवासी थे। अंतत: गोदाम घाट पहुचकर शव को नदी में प्रवाहित कर दिया गया।
थाना प्रभारी राममोहन यादव
इधर घटना से बौखलार्इ पुलिस व पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी आनन-फानन में फरार विशाल श्रीवास्तव व अजीत शर्मा की गिरफ्तारी के लिए ढार्इ-ढार्इ हजार रुपये के इनाम की घोषणा कर दी।
शुभांग की अपहरण एवं हत्या के विरोध में आजमगढ़ जनपद में अभूतपूर्व बन्दी रही। बाजार से लेकर स्कूल कालेज सब बन्द रहे। घटना से दुखी नगर वासी स्वत: अपना कारोबार बन्द कर दिया था। शहर में करीब आधा दर्जन से अधिक संगठनों ने अपना अलग-अलग जुलूस निकाल कर विरोध प्रदर्शन किया, सब जिलाधिकारी कार्यालय पहुंच कर हत्यारों को सीधे फांसी पर चढ़ाए जाने की मांग कर रहे थे। इसी बीच पुलिस की कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच इंस्पेक्टर राममोहन यादव ने संदीप व प्रमोद को आवश्यक कार्यवाही पूरी करने के बाद जुडीशियल मजिस्टेट प्रथम श्रेणी शाहनवाज हसन के न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया। विवेचक राममोहन यादव ने दोनों को भा00विधान की धारा-363,364,302 201 आर्इ0पी0सी0 में वांछित कर मजिस्टट श्री हसन के समक्ष प्रस्तुत किया था। जहा से उन्हे न्यायिक अभिरक्षा में लेते हुए जेल भेज दिया गया।
दो अभियुक्तों के गिरफ्तारी के बाद भी लोगों का आक्रोश थम नही रहा था। लोग एक स्वर से घटना की निन्दा करते हुए हत्यारों को तत्काल फांसी पर चढ़ाए जाने की माग करते रहे। इसी बीच 8 सितम्बर की शाम मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने रेलवे स्टेशन से विशाल को भी गिरफ्तार कर लिया।
पूछताछ के दौरान पुलिस को विशाल ने बताया कि संदीप के कहने पर ही शुभांग की हत्या कर शव को झाडि़यों के बीच फेंका गया था। शव को ठिकानें लगाने के बाद अजीत के साथ वह मऊ चला गया। वहां एक स्थान पर बार्इक को लावारिस हालत में छोड़कर लखनऊ जाने के लिए बस पकड़ ली। बस से वह सुल्तानपुर तक गए। वहां पुलिस की चेकिंग देखकर सहम गए, बस छोड़कर वापस आजमगढ़ लौट आए। यहां आकर अजीत उससे अलग हो गया। फिर वह रात गुजारने की गरज से अपने मामा के घर गया। उसके मामा ने उसे रखने से इंकार कर दिया। तब से वह इधर-उधर भटकता रहा। आज दिल्ली जाने के लिए कैफियत ट्रेन पकड़ने स्टेशन गया था कि पुलिस के हत्थे चढ़ गया।
जुर्म स्वीकार करने के बाद पुलिस ने उसे भी अदालत में प्रस्तुत कर दिया। जहा से उसे जेल भेज दिया गया। अब तो विवेचनाधिकारी को चौथे अभियुक्त अजीत शर्मा की तलाश थी। लिहाजा वह उसकी गिरफ्तारी के लिए ताबड़-तोड़ छापे मार रहे थे। इसी बीच पुलिस अधीक्षक ने अजीत पर घोषित ढार्इ हजार के इनाम को बढ़ा कर दस हजार कर दिया था।
इंस्पेक्टर राममोहन यादव तत्परता पूर्वक अजीत की खोज में जुटे ही थे कि 11 सितम्बर की शाम देवगांव (आजमगढ़) के प्रभारी को सूचना मिली कि शुभांग हत्या काण्ड में वांछित अजीत शर्मा कंजहित बाजार में देखा गया है। सूचना के आधार पर देवगांव पुलिस आनन-फानन में दविश देकर उसे भी गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने उसकी जामा तलाशी ली तो घटना में प्रयुक्त नोकिया का मोबाइल बरामद हो गया। पूछताछ मे उसने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया। तब पुलिस ने आवश्यक कार्यवाही पूरी कर उसे भी अदालत में प्रस्तुत कर दिया। जहां से उसे भी न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया।
कथा लिखे जाने तक पता चला है कि विवेचनाधिकारी राममोहन यादव जल्द ही विवेचना पूरी कर अदालत में प्रस्तुत करने की तैयारी में जुटे है।
(सत्य घटना पर आधारित कथा पुलिस सूत्रों, अभियुक्तों व शुभांग के परिजनों के बयानों पर आधारित है)

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