11 March, 2013

अवैध सम्बन्धों की विवशता में...

बन गई विधवा
(उड़ीसा के कटक जिले की सनसनी खेज हत्या कथा) 
प्रतीक चित्र
अनीता मन्दिर के बाहर ही खड़ी एक पड़ोसन से बात कर रही थी कि एकाएक बड़े बेटे प्रकाश की चींख सुनाई पड़ी, “मां.. मां.. जल्दी चलो..’’
“क्या हुआ रे..?’’ अनीता ने डाटते हुए कहा, “क्यांे बिना मतलब गला फाड़ रहा है?”
“दौड़ कर चलो, मां... बाबूजी को सोमू ने छुरा मार दिया...”
सोमू यानी धनेश्वर सामल उर्फ सोमू। अनीता चौक पड़ी। अभी थोड़ी देर पहले उसका पति प्रफुल्ल सामल घर के बाहर बैठा छोटे बेटे दीपक से बात कर रहा था। बड़ा बेटा प्रकाश ट्राली लेकर बाजार गया हुआ था और अनीता रसोई में खाना बना रही थी। फिर अंधेरा होने लगा तो हाथ धोकर आंचल में पोंछते हुए उसने बाहर निकल कर पति से कहा, “तुम हो न... दरवाजा खुला है... मैं जरा मन्दिर में हाथ जोड़कर आती हूॅ...”
लेकिन कुछ देर बाद अनीता मंदिर से निकली तो प्रफुल्ल सामल बाहर ही खड़ा था। पत्नी को देख कहने लगा, “जरा चौराहे तक जा रहा हूॅ, एक कप चाय पीकर अभी आ जाऊँगा....”
इसके बाद अनीता मन्दिर के बाहर ही खड़ी-खड़ी पड़ोसिन से बाते करने लगी थी, पर इतनी सी देर में ही अनर्थ हो गया। बेटे की चींख सुनकर अनीता दौड़ी-दौड़ी घटनास्थल पर पहुॅची तो कुलिया चौक से थोड़ा पहले कुंए के पास ही प्रफुल्ल सामल खून से नहाया हुआ पड़ा था। लोगों के बताए अनुसार वह चौराहे की ओर जा रहा था कि धनेश्वर सामल उर्फ सोमू मिल गया और अचानक बड़ा सा चाकू निकाल कर प्रफुल्ल पर सपासप वार करने लगा। घायल होते ही प्रफुल्ल सामल चिल्ला पड़ा था, “बचाओ... बचाओ...”
लेकिन जब तक लोग दौड़कर पास पहुॅचते तब तक धनेश्वर सामल उसे चाकू से गोदकर भाग चुका था। प्रफुल्ल सामल के पेट में चार बड़े-बड़े घाव लगे थे। एक बड़ा घाव पैर में भी लगा था। वह कुछ क्षण छटपटाता रहा, फिर लोगों के देखते ही देखते उसने दम तोड़ दिया था। अनीता व्याकुल भाव से पति के शव पर सिर पटकती हुई रोने लगी। बाकी सब भी इस घटना से बुरी तरह स्तब्ध थे, फिर वे सहमी-सहमी आवाज में अनीता से कहने लगे, “जो होना था सो तो हो ही गया, अब जल्दी से जाकर सबसे पहले थाने में रिपोर्ट लिखवा दो, वरना देर होने पर पुलिस वाले भी दुनिया भर का सवाल करेंगे...”
आखिर घटना के करीब डेढ़ घण्टा बाद शाम करीब सात बजे अनीता थाने के लिए रवाना हुई। सालेपुर थाना करीब तीन किलोमीटर फांसले पर है, वहाॅ रिपोर्ट दर्ज करवा कर लौटते-लौटते रात के दस बज गए।
प्रफुल्ल सामल और अनीता की शादी करीब बीस साल पहले हुई थी। अनीता के बताए अनुसार उसका मायका जाजपुर जिलान्तर्गत मंगलपुर थानाक्षेत्र के हेमन्तपुर गाॅव में है। शादी के समय गाॅव के निकट ही स्थित दशरथपुर बालिका स्कूल में 12वीं कक्षा में पढ़ रही थी। उन दिनों उसका पिता रामचन्द्र जेना कोलकाता में बड़ा बाजार स्थित लोहे का कांटा बनाने वाले एक कारखाने में काम करता था और प्रफुल्ल का पिता गणेश्वर सामल चन्दन नगर में दफ्तर में प्यून (चपरासी) था। दोनों में परस्पर काफी दोस्ती हो गई थी, फिर उन दोनों ने बातों ही बातों में एक दिन अपनी दोस्ती को रिश्ते में बदलने का फैसला कर लिया, परिणामस्वरूप प्रफुल्ल सामल के साथ अनीता की शादी हो गई। उस समय अनीता करीब 17 साल की थी और 11वीं कक्षा पास कर चुकी थी, लेकिन
इसके बाद उसकी पढ़ाई रूक गयी
अनीता
प्रफुल्ल भी 12वीं पास कर लिया था लेकिन बहुत दौड़-धूप करने के बावजूद भी उसे कोई नौकरी नहीं मिली, फिर भी वह बेकार नहीं बैठा। शादी के बाद कुछ निजी खर्चे हो ही जाते हैं। फिर तीन साल बाद एक बेटा भी हो गया। प्रफुल्ल और अनीता ने बड़े ही प्यार से उसका नाम प्रकाश रखा था। डेढ़ साल बाद ही एक और बेटा हो गया, उसका नाम दीपक रखा गया। इसके बाद ही उन दोनों ने परिवार सीमित रखने का निश्चय कर लिया था।
बच्चे होने के बाद खर्च बढ़ गया था, फिर भी प्रफुल्ल को कोई कमी नहीं थी। वह माॅ-बाप की इकलौती संतान था। छोटा सा था, तभी उसकी माॅ की मृत्यु हो गयी थी, इसके बाद उसके पिता गणेश्वर ने ही उसे माॅ-बाप दोनों का प्यार दिया था। यही कारण था कि दो-दो बच्चों का बाप बन जाने के बावजूद वह प्रफुल्ल को भी बच्चा समझकर उसकी जरूरतों का पूरा ध्यान रखता था। थोड़े खेत भी थे इसके अलावा प्रफुल्ल भी कभी कुछ तो कभी कुछ करता ही रहता था, इसलिए कभी किसी चीज की कमी नहीं खली और दिन हंसी-खुशी बीत रहे थे। लेकिन अचानक धनेश्वर सामल उर्फ सोमू उनके दाम्पत्य जीवन में राहु बनकर आ गया।
धनेश्वर सामल उर्फ सोमू प्रफुल्ल सामल के घर के पीछे ही रहने वाले नरहरी सामल और श्यामा देवी का बेटा है। उसके अलावा नरहरि के एक बेटी भी है। दोनों अभी तक अविवाहित है। बेटी तो खैर अभी शादी लायक हुई ही है, पर धनेश्वर 27 साल का हो चुका है। नौवी कक्षा के बाद उसने पढ़ाई भी छोड़ दी और कुसंगति में पड़कर लफंगों की तरह इधर-उधर घूमने लगा। काम धन्धे के नाम पर कुछ नहीं करता था, लेकिन जरा-जरा सी बात पर किसी से लड़ाई-झगड़ा, मारपीट कर लेना उसके लिए मामूली बात थी। नरहरि सामल समझाते-समझाते थक गया। आखिर उसने सोचा ब्याह कर देने पर कुछ जिम्मेदारी आ जायेगी तो शायद संभल जाए, लेकिन शादी का नाम सुनते ही धनेश्वर इस तरह भड़क जाता मानों औरत कोई साॅप-बिच्छू हो।
लेकिन बाद में पता चला कि इसका कारण अनीता थी।
अनीता बहुत सुन्दर तो नहीं थी, फिर भी कई वर्ष पूर्व प्रफुल्ल सामल मामूली-सी सूरत-शक्लवाली 16-17 साल की जिस किशोरी को ब्याह कर लाया था, वह देखते-ही-देखते बहुत बदल चुकी थी। अनीता बचपन से ही बहुत महत्वाकांक्षी थी और हरदम साफ-सुथरे कपड़े पहनकर बनी-ठनी रहने का उसे बड़ा चाव था। शादी के बाद उसकी उमंगे और ठाठ मारने लगी। बदन भी अब खूब भर आया था। इक्कीस-बाईस साल की होते-होते दो बच्चों की माॅ बन जाने के बाद देह में शिथिलता आने के बजाए उसका यौवन जैसे परिपक्व होकर और निखर आया, जिसकी मादकता मनचलों के दिल की धड़कन एकदम तेज कर देती थी। धनेश्वर सामल उर्फ सोमू तो उसका दिवाना ही हो चुका था।
धनेश्वर सामल हट्टा-कट्टा, भरा-पूरा जवान हो चुका था, फिर भी उम्र में अनीता से दो-तीन साल छोटा ही था, इसके बावजूद वह पागल की तरह अनीता के इर्द-गिर्द मंडराता रहता। अनीता ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराते समय थाना प्रभारी प्रदीप कुमार दलाई से बताया कि कई बार धनेश्वर सामल उर्फ सोमू ने उसे छेड़छाड़ भी की थी, लेकिन वह उपेक्षा ही करती रही तो एक रोज रात में धनेश्वर ने उसे जबर्दस्ती पकड़ लिया। अनीता के बताए अनुसार उस समय उसने बेइज्जती के डर से हल्ला-गुल्ला तो नहीं मचाया, फिर भी धनेश्वर सामल की पकड़ से छूटने के लिए उसने अपना पूरा जोर लगा दिया, लेकिन उस कामुक दरिन्दे के सामने उसकी एक नही चली और धनेश्वर सामल उर्फ सोमू ने अपनी मनचाही पूरी करने के बाद ही अनीता को छोड़ा। इसके बाद जेब से खटके वाला बड़ा सा छुरा निकालकर लपलपाता हुआ अनीता को धमकाने लगा, “खबरदार... अगर इसके बारे में किसी से भी कुछ कहा तो तुझे जिन्दा नहीं ही छोड़ूॅगा, तेरा घरवाला भी बेमौत मारा जायेगा... मेरे बारे में अच्छी तरह जानती है न तू... इसलिए याद रखना...”
अनीता के बताए अनुसार यह करीब दस साल पहले की घटना है, पर अपनी और अपने पति प्रफुल्ल सामल की जान के डर से उसने अपना मुॅह सी लिया था और अपने भरसक धनेश्वर सामल उर्फ सोमू के सामने पड़ने से भी कतराने लगी थी। लेकिन एक ही गांव में एकदम पास-पड़ोस में रहने के कारण कब तक बचाती। कभी-न-कभी आमना-सामना हो ही जाता, तब धनेश्वर सामल उर्फ सोमू उसे अकेले में बुलाने के लिए इशारा करने लगता, फिर भी अनीता अनदेखी करती रही। लेकिन एक रोज पुनः एकान्त में मिलते ही धनेश्वर ने उसे फिर जकड़ लिया और कहने लगा, “उस दिन मैंने छोड़ दिया तो बड़ी तीसमार खाॅ बनने लगी? मन तो होता था कि तेरे आदमी और बच्चों को भी काटकर फेंक दूॅ...”
“नहीं... नहीं... मेरे ऊपर दया करो...”
“दया करके ही तो नहीं मारा, लेकिन एक बात कान खोलकर सुन लें अब तू मिलती रहने का पक्का वादा करेगी, तभी छोड़ूॅगा...”
अनीता के बताए अनुसार वह बार-बार हाथ-पांव जोड़ती हुई गिड़गिड़ाती रही, लेकिन धनेश्वर सामल एक ही बात पर अड़ा रहा तो जान छुड़ाने के लिए उसने वादा कर दिया था। इतने पर भी धनेश्वर नहीं माना कहने लगा, “ऐसे नहीं, कसम खा कर कह...”
प्रफुल्ल सामल की फाईल
आखिर अनीता ने मजबूरी में कसम भी खा ली, तब अपनी मनचाही पूरी करने के बाद धनेश्वर सामल ने उसे छोड़ तो दिया, लेकिन चलते-चलते एक बार फिर धमकी देता हुआ कहने लगा, “अच्छी तरह याद रखना... अगर फिर चालबाजी की तो अबकी टोकूॅगा नहीं, बल्कि तेरे आदमी और बेटों को काटकर सामने रख दूॅगा... और हाॅ, इस बारे में अगर किसी से भी कुछ कहा तो जानती ही हैं...”
वह थर-थर काॅपती हुई घर चली आई थी, पर जानती थी कि धनेश्वर सामल कितना बेरहम है, इसलिए पति और बेटों के मारे जाने के डर से किसी से भी कुछ बताने की हिम्मत नहीं पड़ी और धनेश्वर सामल जब-न-तब इस मजबूरी का फायदा उठाकर उसकी इज्जत से खिलवाड़ करता रहा। अनीता की बेबसी से उसकी ढिठाई बढ़ती ही जा रही थी। यहाॅ तक की वह रास्ता चलते भी छेड़-छाड़ करने लगा तो एक दिन बदकिस्मती से प्रफुल्ल ने देख ही लिया। उस समय धनेश्वर सामल तो फुर्ती से चलता बना, लेकिन अनीता की शामत आ गई। प्रफुल्ल घर आकर बिगड़ने लगा, “कब से चल रहा है यह चक्कर?”
अनीता की सांस गले में अटक गई, “चक्कर... चक्कर कैसा...?”
“मेरी आॅखों में धूल झोकना चाहती है तू...? चक्कर नहीं था तो क्या यों ही उस बदमाश ने तेरा हाथ पकड़ लिया...”
फिर भी अनीता को असली बात बताने की हिम्मत नहीं पड़ी। वह सिसकती हुई कहने लगी, “उसकी तो आदत ही है सबसे छेड़छाड़ करने की... मुझे भी उसकी हरकत अच्छी थोड़े ही लगती है...”
“मुझे बताया कभी तूने...”
“डर लगता था कि तुम झगड़ा करने पहुॅच जाओगे...
“नहीं... तेरी तरह पूजा करूॅगा...”
“देखो जी, तुम तो मेरे ऊपर झूठ-मूठ में ही शक कर रहे हो... मैने तो इस डर से नहीं बताया कि उस आदमी का क्या ठिकाना... चिढ़ कर कहीं तुम्हें या हमारे बच्चों को कुछ कर-करा दिया तो... उसके लिए तो कोई रोने वाला भी नहीं है, लेकिन मैं किसके सहारे जीऊंगी...”
लेकिन प्रफुल्ल के मन में शक नहीं मिटा और उसी गुस्से में उसने अनीता को उसके मायके पहुॅचा दिया था। इसके बाद चार साल तक अनीता वही पड़ी रही। आखिर बड़ी-बड़ी मुश्किल से वह अपनी निर्दोषिता का विश्वास दिला सकी, तब प्रफुल्ल उसे इस शर्त पर ससुराल से बिदा करवा कर ले आया था कि अब वह धनेश्वर उर्फ सोमू से एकदम नहीं हंसे बोलेगी और अगर कभी भी वह कुछ कहेगा तो अनीता तुरन्त उसे बतायेगी।
अनीता ने प्रफुल्ल सामल की शर्त तो मान ली थी, लेकिन उसका पालन करने की हिम्मत वह कभी नहीं कर सकी। थाने में उसने बड़ी मासूमियत से बताया कि धनेश्वर तो जैसे उसके लौटने का इन्तजार ही कर रहा था। उसी के कारण उसने शादी भी नही की थी। एक दिन अनीता मिली तो वह कहने लगा, “तू मेरे दिल में बस चुकी है अनीता... तेरे बिना मैं पागल हो गया था। सोते-जागते बस, तू-ही-तू दिखाई पड़ती है।”
अनीता घबराकर जाने लगी तो धनेश्वर ने फुर्ती से रास्ता रोक लिया, “ऐसी भी क्या जल्दी है अनीता रानी... मैं तो तेरी राह देखते-देखते आधा हो गया और तू है कि इतने दिनों बाद मिली भी तो...”
“धनेश्वर रास्ता छोड़ों, तुम्हारे ही कारण प्रकाश के बाप ने मुझे चार साल तक छोड़ रखा था।”
“वह हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हें क्यों नहीं छोड़ देता, फिर तो हमारा रास्ता ही साफ हो जाए... सच्ची कहता हूॅ अनीता, तूझे रानी बनाकर रखॅूगा मैं।”
“धनेश्वर! मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूॅ, मुझे जाने दो... वरना किसी ने देख लिया तो...”
“मुझे किसी साले की परवाह नहीं हैं।”
“तुम्हें भले परवाह न हो, लेकिन डर के मारे मेरी जान निकली जा रही है। अगर प्रकाश के बाप को पता चल गया तो...” अनीता ने आंसू पोंछते हुए बताया।
यह सुनते ही धनेश्वर तमक उठा और कहने लगा, “मैं जानता हूॅ... वही साला मेरी राह का कांटा बना हुआ है... लगता है, इस कांटे को अब निकालना ही पड़ेगा...”
“नहीं-नहीं... मैं तुम्हारे पैर छूती हूॅ... उनको कुछ हो गया तो, धनेश्वर मेरे बच्चे अनाथ हो जाएंगे।”
“यही सोच कर तो तेरी बात मान लेता हूॅ, पर तू भी समझ ले कि वह तभी तक जिन्दा है, जब तक तू मेरी बात मानती रहेगी... अगर तू मुझको खुश करती रही तो मुझे किसी साले के बारे में सोचने की जरूरत नहीं है, लेकिन अगर वह बाधा बना तो मैं अपना गुस्सा नहीं रोक पाऊॅगा...”
इस तरह जब मन होता धनेश्वर डरा-धमका कर मनचाही पूरी कर लेता था। लेकिन पति और बच्चों की जान जाने के डर से अनीता कभी किसी से कुछ नहीं बताती थी, कलेजे पर पत्थर रखकर भीतर-ही-भीतर घुटती रहती कि अगर कभी प्रफुल्ल देख लिया या किसी और तरह उसे पता चल गया तो वह तुरन्त लड़ने पहुॅच जाएगा। उस समय धनेश्वर सामल जाने क्या कर डाले... फिर भी कभी-कभी बात खुलने का डर होता तो वह स्वयं ही डरती-डरती प्रफुल्ल से बता देती थी कि आज फिर धनेश्वर मिला था लेकिन वह अनदेखी करके तुरन्त भाग आई।
अनीता ने सिसकते हुए थाना प्रभारी को बताया कि वह धनेश्वर सामल की धमकियों से डर कर अपने पति और बच्चों की जान बचाने के लिए मजबूरी में अपना यौन-शोषण करवाती रही। इसे वह अपने परिवार के हित के लिए अपना त्याग समझकर बर्दाश्त कर रही थी और हमेशा सावधान रहती कि उसके पति को कुछ न पता चलने पाए वरना, उसका सारा त्याग व्यर्थ हो जायेगा। फिर भी एक दिन गाॅव के एक आदमी ने धनेश्वर सामल को उससे बाते करते देख ही लिया। तब अनीता ने अपने भरसक विपत्ति को टालने की ही कोशिश की। वह जानती थी कि बात छिपी नहीं रहेगी, इसलिए किसी और से प्रफुल्ल को मालूम हो, इसके पहले उसने ही अपने ढंग से बता देना जरूरी समझा और जैसे ही प्रफुल्ल घर आया, वह कहने लगी, “आज फिर धनेश्वर मिल गया...”
“मुझे सब पता चल चुका है।” प्रफुल्ल गुस्से से फुफकार उठा, “मैंने तुझे उससे बात करने के लिए मना किया था न?”
धनेश्वर उर्फ सोमू
“मैं क्यों उसे बोलती...”
“मुझे पता चला है कि वह बदमाश बात कर रहा था...”
“अब इसमें मेरा क्या दोष? मैं तो उसे देखते ही चली आई थी, पीछे वह चाहे जो बकता रहे...”
“सीधे-सीधे बता... क्या कह रहा था?”   
“कह तो रही हूॅ कि मैं चली आई... मैंने कुछ सुना ही नहीं।” अनीता ने पलभर रूक कर कहा, “कोई किसी का मुुॅह थोड़े ही पकड़ सकता है। फिर बात का बतंगड़ बनाने से क्या फायदा... उसकी तो कोई इज्जत है नहीं, लोग सुनेंगे तो अपनी ही बदनामी होगी... फिर वह हमेशा मार-पीट के लिए तैयार रहता है...”
“तो...? मेरे हाथ पैर नहीं है क्या?”
“हाथ पैर है तो क्या तुम भी खून-कत्ल करोंगे? जेल जाओगे? उसके बाद मेरा और बच्चों का क्या होगा... यह भी सोचा है?”
प्रफुल्ल अपने दोनों बच्चों को बहुत प्यार करता था, इसलिए उस समय तो दांत पीसकर रह गया, पर कुछ दिन बाद ही एक रोज लोगों ने धनेश्वर सामल को अनीता का हाथ पकड़कर खींचते देख लिया तो यह सुनते ही प्रफुल्ल आपे से बाहर हो गया। उस समय भी अनीता ने उसकी और बच्चों की जान का खतरा बताते हुए उसे समझाने की बड़ी कोशिश की, लेकिन संयोग से वह मिला ही नहीं। गाॅव वाले भी धनेश्वर के स्वभाव से परिचित थे, इसलिए उन्होंने भी उस समय प्रफुल्ल को समझा-बुझाकर शांत कर दिया। लेकिन प्रफुल्ल उसी रोज पंचायत बुलाकर इस बारे में फैसला कर देने का प्रार्थना करने लगा। पंचों ने जब धनेश्वर सामल से इसका जवाब मांगा तो वह हंसकर कहने लगा, “अगर प्रफुल्ल को अपनी औरत पर शक है तो उसे छोड़ क्यों नही देता?”
“तुम अपनी बात करों... अनीता से तुम रास्ते में छेड़छाड़...”
“एक गाॅव में पास-पड़ोस में रहकर सभी एक दूसरे से हंसते-बोलते हैं...”
“लेकिन हंसने-बोलने की भी एक हद होती है। तुम्हारे हंसने-बोलने से प्रफुल्ल और अनीता की गृहस्थी पर असर पड़ रहा है...”
धनेश्वर अक्खड़ता से बीच ही में बोल पड़ा, “अगर प्रफुल्ल मेरे कारण अपनी औरत को छोड़ता है तो उसका खाना-खर्चा उठाने की जिम्मेदारी मेरी होगी...
“सिर्फ खाने-खर्चे से किसी औरत की जिन्दगी नहीं बीतती...”
“तो मैं उसे अपने साथ रखने को भी तैयार हूॅ... चाहे तो इसी समय...
“बकवास करने की जरूरत नहीं है। पंचायत हुक्म देती है कि आज के बाद तुम और अनीता कभी आपस में बात नहीं करोगें... अगर किसी को बोलते देख लिया गया तो उसको भरी पंचायत में नंगा करके मारा जायेगा...”
यह करीब आठ महीने पहले की बात है। अनीता ने बताया कि पंचायत का फैसला सुनकर धनेश्वर सामल की आॅखे भक् से जल उठी थी। कुछ बोलने पर पूरी बिरादरी का कोप सहना पड़ता, इसलिए वह उस समय तो चुपचाप दांत पीसता हुआ चला गया, पर उसी दिन से उसकी आॅखों में जैसे खून छलकने लगा था। इसके बाद भी उसने अनीता का पीछा नहीं छोड़ा हाॅ, पहले से थोड़ा सावधान जरूर हो गया था, लेकिन रात-बिरात अकेले में मौका मिलते ही वह अनीता को दबोच लेता और कहता, तूने मुझे दीवाना बना दिया है... अब मैं तेरे बिना नहीं रह सकता। लेकिन अब यह भी समझ में आ गया है, जब तक तेरा आदमी जिन्दा है, तब तक निश्चित होकर तुझे नहीं भोग सकूॅगा... वह हमारे बीच दीवार बना हुआ है, लेकिन एक दिन मैं इस दीवार को ढहा कर पूरी तरह तुझे अपना बना लूॅगा...”
अनीता के बताए अनुसार वह हमेशा हाथ-पाॅव जोड़कर धनेश्वर को मनाती ही रहती थी। इशारे-इशारे में उसने प्रफुल्ल को होशियार कर दिया था और रात-बिरात कभी उसे अकेले घर से बाहर नहीं निकलने देती थी। लेकिन जिस अनर्थ को बचाने के लिए वह इतना अनाचार सहती रही, वह हो ही गया।
घटना के बारे मेें बताते हुए अनीता ने सिसक कर कहा, “शाम को सूरज डूबने से थोड़ा पहले धनेश्वर सामल हमारे घर के सामने से ही गुजरा था साहब! हमेशा की तरह उस समय भी उसने छुरा लपलपा कर अपनी धमकी की याद दिलाई थी, इसलिए मैंने अपने आदमी को कहीं जाने से मना कर दिया था। लेकिन थोड़ी देर के लिए मैं मन्दिर गयी तो वह भी चाय पीने के लिए चौराहे की ओर चले गए। इसके बाद मैं मन्दिर के सामने ही खड़ी एक पड़ोसिन से बात कर रही थी, उसी समय मेरा बेटा चिल्लाता हुआ आ गया कि सोमू ने उसके बाप को छुरा मार दिया। मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई, हुजूर... हम बेसहारा हो गए... अब कौन हमारा बेड़ापार करेगा, हे भगवान...”
थाना प्रभारी प्रदीप कुमार दलेई ने अनीता की प्रथम सूचना रिपोर्ट के आधार पर धनेश्वर सामल उर्फ सोमू के विरूद्ध उसके साथ बलात्कार और उसके पति की हत्या के आरोप में भारतीय दण्ड विधान की धारा 376, 302 के अन्तर्गत नामजद मुकदमा अपराध संख्या 23 पंजीकृत कर लिया और दल-बल के साथ घटनास्थल पर पहुॅचते ही सबसे पहले अभियुक्त की तलाश में उसके घर छापा मारा, लेकिन तब तक धनेश्वर फरार हो चुका था। आखिर दलेई ने प्रफुल्ल के शव का पंचनामा करके उसे सील-मोहर करवाने के बाद सुबह होते ही पोस्टमार्टम के लिए कटक स्थित रामचन्द्र भंज मेडिकल कालेज अस्पताल भेजवा दिया और फरार धनेश्वर का पता लगाने में जुट गए।
पूछताछ के दौरान गाॅव वालों ने भी अनीता के साथ धनेश्वर के अवैध सम्बन्धों की पुष्टि तो कर दी, लेकिन लोगों के मन में शक बना हुआ कि शायद इसमें अनीता की भी रजामंदी थी। कुछ लोगों का तो यहाॅ तक कहना है कि दोनों की मिलीभगत से ही प्रफुल्ल को खत्म किया गया है, लेकिन अनीता बड़ी मासूमियत से कहती है, “लोगों का मंॅंुह कौन पकड़ सकता है, अगर ऐसा ही होता तो मैं धनेश्वर के खिलाफ रिपोर्ट क्यों दर्ज करवाती?”
यद्यपि अनीता धनेश्वर का नाम न लेती तब भी पुलिस को पता तो चल ही जाता, लेकिन विधवा होने के कई दिनों बाद भी अनीता के माथे पर सिंदूर की लाली और उसका बनी-ठनी रहना लोगों के मन में शक जगाने के लिए काफी है। फिर एक दिन उसने यह कहकर संदेह के अंकुर को और संीच दिया कि सोमू किसी भी दिन आकर उसको ले जा सकता है। इस बारे में पूछने पर अनीता बताती है, “मैं तो यह बात इसलिए कह रही थी कि धनेश्वर हमेशा धमकी देता था कि एक दिन मेरे पति को मार कर मुझे हमेशा-हमेशा के लिए अपने साथ लिवा ले जायेगा... इसलिए मेरा मन हमेशा आशंका से कांपता रहता है...”
वास्तविकता जो भी हो, पुलिस की जाॅच-पड़ताल के बाद सच्चाई सामने आ ही जायेगी, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि अगर लोगों का अनुमान सच है तो अनीता और धनेश्वर का यह सपना बस, सपना ही रह जायेगा, क्योंकि अगर अनीता के विरूद्ध कोई आरोप न सिद्ध हो सकंे, तब भी सरेआम हुए इस हत्याकाण्ड के तमाम प्रत्यक्षदर्शी गवाहों के होते हुए भी कानून धनेश्वर सामल उर्फ सोमू को क्या मौज-मजा करने के लिए छोड़ देगा?
इसे भी एक विडम्बना ही कहा जा सकता है कि ऐसी घटना पहली बार नहीं हुई है। अवैध प्यार के चलते पत्नी प्रेमिका के पति की हत्या कर देने की तमाम घटनायें प्रकाशित हो चुकी है, फिर भी वारदात करने के पहले कोई यह क्यों नहीं सोचता कि इस तरह किसी को उसका प्यार मिल सका है क्या? तब दो हंसते-खिलखिलाते परिवारों को मातम में डुबा देने से क्या फायदा?

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