06 February, 2013

“इश्क की गली में मौत का सन्नाटा”

मीरजापुर अवैध सम्बन्ध हत्याकाण्ड
प्रतिक चित्र
मीरजापुर स्थित देहात कोतवाली क्षेत्र में सिरसी गहरवार गाँव के कुछ लोग सुबह-सुबह दिशा-मैदान के लिए निकले तो पक्की सड़क के किनारे बोरे का एक बड़ा-सा बंडल पड़ा देखकर थोड़ी हैरानी हुई। असमंजस भरे भाव से डरते-सहमते हुए वे थोड़ा पास पहुंचे तो बोरे पर खून के दाग और मक्खिंया भिनभिनाती देखकर सब एकदम चौंक पड़े और आशंकित दृष्टि से एक दूसरे की ओर ताकने लगे। वे समझ गये कि बोरे में जरूर लाश भरी है। यह खबर फैलते देर नहीं लगी। देखते-ही-देखते ग्राम प्रधान सहित गाँव के तमाम लोग आ गए। मामले की नजाकत महसूस करते ही ग्राम प्रधान ने पुलिस को सूचना दी तो देहात कोतवाली के प्रभारी इंस्पेक्टर बी0 के0 सिंह भी दल-बल के साथ आ पहुंचे और सूक्ष्मता से बोरे की जाँच करने लगे।
बोरे का मुंह सुतली से सिला हुआ था। इंस्पेक्टर बी0के0 सिंह के संकेत पर सिपाहियों ने बोरे का मुंह खोला तो अनुमान की पुष्टि हो गई- उसमें सचमुच एक युवक की लाश ठूंसी हुई थी। उसे बाहर निकालने के प्रयास में पता चला कि धड़ अलग है और दोनों पैर अलग। इंस्पेक्टर बी0के0 सिंह को समझते देर नहीं लगी कि लाश को बोरे में ठूंसने के लिए ही उसके पैरों को क्रूरता पूर्वक काट दिया गया होगा।
इंस्पेक्टर बी0के0 सिंह सूक्ष्मतापूर्वक लाश का निरीक्षण करने लगे- मृतक पर बड़ी निर्दयतापूर्वक चाकू से वार किये गये थे और आँखें निकाल कर चेहरा विकृत कर दिया गया था, फिर भी अनुमान लगाना आसान था कि मृतक की उम्र अभी 30 से 35 वर्ष के बीच ही रही होगी। लाश की हालत देखकर यह अनुमान लगाने में भी कठिनाई नही हुई कि उसकी हत्या बीती रात में ही किसी समय की गई होगी सड़क के किनारे पड़ी लाश बोरे में भरी थी और घटनास्थल पर कुछ खास खून भी नहीं गिरा था, इसलिए स्पष्ट था कि उसकी हत्या कहीं और करने के बाद लाश को बोरे में भरकर किसी वाहन से लाकर यहाँ फेंक दिया गया था।
इस बीच यह खबर जंगल में लगी आग की तरह चारों ओर फैल गई थी, परिणामस्वरूप आस-पास के तमाम गाँवों के लोग आ जुटे और तरह-तरह की बातें करने लगे। अपने इलाके में हुए इस काण्ड से इंस्पेक्टर बी0के0 सिंह तिलमिला उठे और किसी भी तरह जल्दी-से-जल्दी हत्यारे का पता लगाने के लिए कटिबद्ध हो गये।
खून-कत्ल के मामलें में जाँच आगे बढ़ाने के लिए सबसे पहले मृतक की शिनाख्त होनी जरूरी होती है। मृतक पैंट-शर्ट पहले हुए था। शर्ट पर ‘न्यू मद्रास टेलर्स’ का स्टीकर टंका हुआ था। जेबों की तलाशी लेने पर उसके पास लगभग 3200 रूपये के साथ ‘भारतीय स्टेट बैंक’ की एक पर्ची भी मिली, लेकिन खून में सनी होने के कारण न तो खातेदार का नाम पढ़ा जा सका, न खाता संख्या। लाश की सूक्ष्म जाँच-पड़ताल में यह जानकारी जरूर मिल गई कि मृतक मुस्लिम समुदाय का युवक था, लेकिन वहाँ मौजूद तमाम लोगों में से कोई भी उसकी शिनाख्त नहीं कर सका। आखिर भरसक पूछताछ के बाद तात्कालिक कार्यवाही शुरू हुई। इस सिलसिले में भा0द0वि0 की धारा 302/201 के अन्तर्गत मुकदमा अपराध संख्या 239 पंजीकृत कर लिया गया। लाश का पंचायतनामा करके उसे सील-मोहर करवाने के बाद पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेजवा कर इंस्पेक्टर बी0के0 सिंह मृतक की शिनाख्त और हत्यारे का पता लगाने की योजना बनाने लगे। पुलिस अधीक्षक के0 सत्यनारायणा ने भी इस घटना की पूरी जानकारी लेकर आवश्यक दिशा-निर्देश देते हुए मामले की जाँच-पड़ताल के लिए तुरन्त ही एस0ओ0जी0 एवं देहात कोतवाली पुलिस की एक टीम गठित कर दी। एस0ओ0जी0 टीम के सब-इंस्पेक्टर इन्द्रभूषण यादव, कांस्टेबल फिरोज, कांस्टेबल अजीमुल्ला और कांस्टेबल अरविन्द सिंह ने मृतक की शिनाख्त के साथ-साथ हत्यारे का पता लगाने की दिशा में तत्परता से मुखबिरों का जाल फैला दिया।
आखिर बहुतरफी प्रयास ने रंग दिखाया। लाश मिलने के अगले दिन ही एक युवक ने आकर शव की शिनाख्त कर दी। शिनाख्त करने वाले युवक ने अपना नाम सुभान बताते हुए कहा कि मृतक उसका चचेरा भाई इस्लाम है। वह शहर कोतवाली इलाके के मलइया की बारी मोहल्ले में रहता था और भवन-निर्माण के ठेके लिया करता था। काम करने के लिए उसने कई कारीगर और मजदूर भी रख छोड़े थे, जिनमें से कुछ को तो बकायदा बंधी तनख्वाह पर रखा था, लेकिन ज्यादातर रोज की दिहाड़ी पर काम करते थे। ऐसे लोगों को इस्लाम जहाँ काम चल रहा होता, वहीं से रख लिया करता था।
सविता
इन दिनों भी इस्लाम के पास कई ठेके थे। आमतौर से वह हर जगह काम करने वालों में से ही किसी विश्वासी को चुनकर वहाँ की तात्कालिक जिम्मेदारी सौंप देता, फिर भी इस्लाम कभी लापरवाह नहीं होता था और मौके-बेमौके हर जगह पहुँच कर काम-काज देखता रहता और जरूरी हिदायतें भी दे देता। इसी सिललिसे में उस दिन वह निकला था। आम तौर से वह कहीं भी जाता, शाम को देर-सबेर डेरे पर वापस जरूर लौट आता था, लेकिन उस रोज वह रात भर नहीं लौटा। फिर सबेरे भी जब उसका कोई संदेश नहीं मिला तो परेशान होकर चचेरा भाई सुभान पता लगाने निकल पड़ा। उसी समय सुभान को देहात कोतवाली क्षेत्र में सिरसी गहरवार गाँव के पास सड़क के किनारे 30-35 साल के किसी मुस्लिम युवक की लाश मिलने की खबर सुनने को मिली तो दिल आशंका से धड़क उठा। फिर वह भागा-भागा तुरन्त देहात कोतवाली पहुँचा तो यह देखकर विलख उठा कि लाश उसके चचेरे भाई इस्लाम की ही थी।
देहात कोतवाली के प्रभारी वी0के0 सिंह ने ढांढ़स बंधाते हुए कहा, “जो होना था, वह तो हो ही चुका, अब तुम्हें अपने भाई के कातिल को पकड़वाने में पुलिस की मदद करनी चाहिए! क्या इस्लाम की किसी से दुश्मनी....”
“नहीं, साहब.... मेरे भाई की किसी से दुश्मनी नहीं थी। वह तो सबसे मेल-मिलाप रखता था ...”
“फिर भी..... पैसे के लिए अपने ही बेगाने हो जाते हैं.... जरा याद करके बताओ.... लेन-देन के मामले में कभी किसी मजदूर-कारीगर से लड़ाई-झगड़ा.....”
“किभी नहीं, साहब! भाई अपने साथ काम करने वालों से भी बड़े प्यार से बोलता था। मौके-बेमौके वह खुद चार पैसे का नुकसान सह लेता, लेकिन किसी मजदूर-कारीगर का कभी एक पैसा भी नहीं मारता था। वह किसी से लड़ता-झगड़ता नहीं....”
बोलते-बोलते एकाएक सुभाष अटककर जैसे कुछ सोचने लगा तो इंसपेक्टर वी0के0 सिंह ने उतावली से पूछा, “बोलो-बोलो.... अटक क्यों गए? क्या कहना चाहते हो.....”
“ऐसे ही एक बात याद आ गई, साहब....”
“क्या....?”
“भाई लड़ाई-झगड़े से दस कदम दूर रहता था, पर..... पर एक बार उसने किसी बात पर नाराज होकर निजामुद्दीन को डांटते हुए धमकी दी थी कि फिर ऐसी हरकत की तो उसके खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करवा देगा....”
“निजामुद्दीन कौन है ?”
“भाई के साथ ही काम करता है, साहब! इधर के इलाके में जो काम चल रहे हैं, उनकी देखभाल की जिम्मेदारी भी भाई ने निजामुद्दीन को ही सौंप रखी थी.... ”
इंस्पेक्टर वी0के0 सिंह ने अनुमान लगाया कि शायद रूपये-पैसे के मामले में ही कोई गड़बड़ी हुई होगी और मामला डाँट-फटकार से बढ़कर खून-कत्ल तक पहुँच गया। लाश की शिनाख्त के साथ-साथ एक सूत्र भी मिला तो पुलिस ने निजामुद्दीन का पता-ठिकाना पूछकर तुरन्त ही उसे दबोच लिया।
इस्लाम के कत्ल के मामले में पकड़ जाने पर निजामुद्दीन एकदम घबरा गया और हाथ-पैर जोड़ता हुआ अपनी बेगुनाही का राग अलापने लगा, पर थाने में थोड़ी सख्ती होते ही उसका मनोबल टूट-बिखर गया। फिर उसने रोते-सिसकते हुए सब कुछ स्वीकार कर लिया तो पता चला कि कहानी कुछ और ही है।
आखिर निजामुद्दीन से व्यापक पूछताछ और सुभान के बयान के बाद इस्लाम के बेमौत मारे जाने की जो सनसनीखेज कहानी सामने आई, वह इस प्रकार बताई जाती है -
इस्लाम मूलतः झारखण्ड के गिरीडीह जिले में धनकार थानान्तर्गत चिहुटीकरन गाँव का रहने वाला था। उसके पिता लुकमान और परिवार के अन्य सदस्य अभी भी वहीं रहते हैं, लेकिन इस्लाम काम-धन्धे की तलाश में उत्तर प्रदेश चला आया था। यहाँ मीरजापुर उसे रास आ गया। कुछ दिन जैसे-तैसे काटने के बाद उसने अपना अच्छा सिलसिला जमा लिया और भवन-निर्माण के ठेके लेने लगा।
पांच-छः साल की अवधि में ही इस्लाम ने अच्छा-खासा काम जमा लिया।
कुछ समय से इस्लाम ने लालगंज और हलिया इलाकों में भी भवन निर्माण के ठेके लेने शुरू कर दिए थे। वहीं उसका परिचय लालगंज थानान्तर्गत तेन्दुआ कलां गाँव के निवासी निजामुद्दीन से हुआ। निजामुद्दीन राजमिस्त्री था और इस्लाम की ठीकेदारी में काम करने आया था, पर हमउम्र और बिरादरी का होने के कारण दोनों में जल्दी ही दोस्ती हो गई। दो-ढ़ाई साल के साथ में ही इस्लाम का निजामुद्दीन पर इतना विश्वास जम गया कि उस इलाके में हो रहे काम-काज के देख-रेख की पूरी जिम्मेदारी उसी को सौंप दी थी।
मृतक  इस्लाम 
लेकिन निजामुद्दीन ने इस छूट का नाजायज फायदा उठाया और दूसरे कारीगरों एवं मजदूरों से इस तरह व्यवहार करने लगा जैसे वही ठेकदार हो। इस्लाम शुरू-शुरू में आदतन कभी-कभी आकर काम की रफ्तार देख कर जरूरी हिदायतें दे जाता था, पर निजामुद्दीन पर विश्वास जमा होने के कारण धीरे-धीरे उसने वहाँ आना कम कर दिया और दूसरी जगह हो रहे कामों पर ज्यादा ध्यान देने लगा। उसका आवागमन एकदम कम हो जाने के कारण वहाँ काम कर रहे सब कारीगर और मजदूर भी सोचने लगे कि शायद इस्लाम ने ठेका छोड़ दिया है, इसलिए अब वे निजामुद्दीन को ही ठेकेदार समझकर उसे खुश रखने की कोशिश करने लगे।
राज-मिस्त्री के साथ काम करने वालों में मर्द भी थे और औरतें भी। उन्हीं में एक युवती सविता भी थी। कोल परिवार की तीखे, नाक-नक्शवाली सविता तेंदुआ कला की रहने वाली थी। डेढ़-दो साल पहले मां-बाप ने पड़ोस के गाँव में रहने वाले बिरादरी के ही एक युवक के साथ उसकी शादी करके विदा भी कर दिया था, लेकिन सविता का पति दिमागी रूप से कुछ कमजोर था, इसलिए सविता को रास नहीं आया और वह छः महीने के अन्दर ही उससे नाता तोड़कर मायके लौट आयी। फिर मां-बाप के बहुत समझाने-बुझाने और डांटने-डपटने के बावजूद सविता ससुराल नहीं गई और किसी का एहसान न सहना पड़े। इसका अच्छा-सा उपाय सोच लिया। उन्हीं दिनों इस्लाम ठेकेदार कलुआ गाँव में भी ठेका लेकर एक मकान बनवा रहा था। वहाँ भी काम की देख-रेख निजामुद्दीन ही करता था। सविता वहीं जाकर मजदूरी करने लगी।
निजामुद्दीन शादीशुदा और बाल-बच्चेदार था, फिर भी शादी के बाद छः महीने के अन्दर ही पति को छोड़ आई सविता का उमड़ता यौवन देखकर उसका मन मचल उठा और उसका उपभोग करने के लिए वह बेचैन रहने लगा। लेकिन विपरीत धर्म का होने के कारण यह काम आसान नहीं था, इसलिए किसी तरह मन पर काबू करके वह बड़ी तिकड़म से चारा फेंकने लगा।
वैसे तो निजामुद्दीन रोज की दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूरों के साथ बड़ी सख्ती से पेश आता था और किसी को भी काम में कोताही करते देख लेता तुरन्त दस बात सुना देता, लेकिन सविता के साथ वह बड़े अपनेपन का व्यवहापर करता। कभी वह सुस्ताने बैठ जाती तब भी निजामुद्दीन हंसकर कहता, “थक गई क्या! लेकिन थोड़ा हमारे ऊपर भी रहम करों... जानती तो हो कि अभी देखा-देखी दूसरों को भी थकान लग जायेगी.... ” फिर फुसफुसा देता, “मैं तुम्हें सुस्ताने से नहीं मना कर रहा हूँ, पर एकदम से मत बैठो..... ज्यादा बोझ मत उठाओं, लेकिन धीरे-धीरे चलती-फिरती दिखाई पड़ती रहोगी तो किसी को बोलने का मौका नहीं मिलेगा.....” नागा का तो कोई हिसाब ही नहीं था! सविता को जब मान होता, छुट्टी कर लेती लेकिन निजामुद्दीन उसे रिझाने के लिए कभी एक भी पैसा नहीं काटता था। ऊपर से उसकी तारीफ ही करता रहता। साथ ही मौके-बेमौके यह भी सहेज देता कि हिसाब-किताब तो होता ही रहता है, लेकिन उसे तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं है। जब भी कोई कमी महसूस हो, फौरन उससे कह दे!
फिर एक दिन निजामुद्दीन मतलब की बात पर आ गया। घुमा-फिराकर कहने लगा, “अभी तेरी उम्र ही कितनी है, सविता! इसके अलावा सिर्फ कमाने-खाने से ही तो जिन्दगी नहीं बीत जाती न! सुख-दुख में अपना कहने वाला कोई न हो तो..... तू दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेती.... ”
“ना बाबा, ना! ” सविता ने छूटते ही सिर हिला दिया, “एक बार शादी करके धोखा खा चुकी हूँ! अब फिर वही पचड़ा मोल लेने का मन नहीं है! ”
“हर मामले में मन की बात नहीं मानी जा सकती..... ”
“मन को मारना भी नहीं चाहिए..... ”
निजामुद्दीन का हौंसला बढ़ गया। बात खींचता हुआ बोला, “खूब अच्छी तरह दूर तक की सोचकर तब कुछ तय करना चाहिए! तू यह तो जानती ही है कि किसी के माँ-बाप सब दिन साथ देने के लिए तो बैठे नहीं रहते...... ”
“माँ-बाप को मेरी चिन्ता होती तो पागल के साथ थोड़े ही ब्याह देते... ”
“उन्होंने जान-बूझकर थोड़े ही तुझे कुंए में झोका! ”
“ठीक से पता लगाया होता तो इतने बड़ी बात छिपी थोड़े ही रह जाती! ” सविता ने उपेक्षा से सिर झटक दिया, फिर किसी के भरोसे थोड़े ही हूँ। मेहनत-मजदूरी करके कमाती हूँ तब खाती हूँ .... ”
“वह तो मैं देख ही रहा हूँ..... लेकिन जिन्दगी बहुत लम्बी होती है, सविता! अच्छे-बुरे दस तरह के मौके आते हैं.... इतने लम्बे सफर में वक्त-बेवक्त हाथ पकड़कर चलने के लिए किसी का साथ हो तो जिन्दगी मजे से कट जाती है। सोच भला- अभी तो तेरे हाथ-पांव चल रहे हैं..... फिर माँ-बाप भी हैं, लेकिन उनके बाद... कभी हारी-बीमारी में एक लोटा पानी पूछने वाला कोई तो होना ही चाहिए.... इसीलिए कह रहा हूँ कि जो होनी थी, सो हो गई, अब पिछली बातें भूलकर तू दूसरी शादी कर लें...... ”
“और कहीं फिर कोई पागल-सरेख मिल गया तो..... ”
निजामुद्दीन हंस पड़ा, “यह तो मैं गारंटी के साथ कह सकता हूँ कि तेरी किस्मत इतनी खोटी नहीं है। क्या दुनिया में सब पागल ही भरे हैं! पहले अच्छी तरह देख-समझ लें..... जब तेरा मन राजी हो जाए तब शादी कर।”
अभियुक्त निजामुद्दीन व उसका साथी ताजू
“हूँ..... ” सविता हुंकारी भर कर कुछ सोचने लगी।
“अच्छा एक मोटी-सी बात बता...... ” निजामुद्दीन ने इधर-उधर ताककर फुसफुसाते हुए पूछा, “मैं तुझे कैसा लगता हूँ..... ”
“तुम...... क्या मतलब? ”
“मतलब.... क्या मैं पागल लगता हूँ? ”
“तुम क्यों पागल लगोगे? ” सविता हंस पड़ी, “अच्छी-भली ठेकेदारी कर रहे हो.... इतने लोग तुम्हारी मातहती में काम करते हैं...... सबका भुगतान करने के बाद भी हजारों रूपये कमा रहे होगे..... ऐसे आदमी को तो कोई पागल ही पागल कहेगा..... ”
“अब अगर मैं ही तुम्हारे साथ शादी करने की बात करूं तो..... ”
“क्या-ऽ-ऽ-ऽ..... ” निजामुद्दीन का व्यवहार देखते-देखते उसकी बातों से यह तो समझ में आ गया था कि उसके मन में कुछ है, पर वह एकदम शादी करने की बात कहने लगा तो सविता का चौंकना स्वाभाविक था। हंस कर कहने लगी, “यही जरूर पागलपन की बात होगी, क्योंकि मैं जानती हूँ कि तुम शादी-शुदा और बाल-बच्चेदार हो! ”
निजामुद्दीन ने तपाक से बात बनाई, “शादीशुदा होने की बात याद दिला कर तुमने तो मेरे जले पर नमक छिड़क दिया, सविता..... ”
“क्यों.... क्या हुआ”
“अरे, ऐसा शादी-शुदा होने से तो अच्छा होता कि मैं जिन्दगी-भर कुंवारा ही रहता... ”
“क्यों? घरवाली मन की नहीं मिली क्या? ”
“ऐसी घरवाली से तो अच्छा होता कि मौत आ गई होती... सूरत-शक्ल से तो माशा अल्लाह है ही, जबान भी इतनी जहरीली है कि बोलती है तो लगता है जैसे नागिन फुफकार रही हो! कुछ दिन और उसके साथ गुजारना पड़ा तो पक्का समझो कि मैं कभी खुदकुशी कर लूंगा.... ”
उस समय शाम हो चली थी। काम खत्म करके कुछ और कारीगर-मजदूर आ गए तो बात बीच ही में रूक गई, लेकिन एक बार मुंह खुल गया तो निजामुद्दीन ने मामले को ठण्डा नहीं पड़ने दिया और जब-न-तब मौका पाते ही सविता से छेड़-छाड़ करने लगता। फिर भी कई दिन तक सविता हंसी-हंसी में ही टालती रही तो एक दिन निजाम ने फैसला करने की ठान ली। उस रोज शाम को कारीगर-मजूदर काम खत्म करके जाने लगे तो निजामुद्दीन ने जान-बूझ कर हिसाब करने के बहाने सविता को अटका लिया। आखिर एकान्त मिलते ही वह सविता का हाथ पकड़ कर कहने लगा, “तुमने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया, सविता.... ”
“किस बात का? ”
“इतनी जल्दी भूल गई? ” निजाम ने खिन्नता में जोर से सांस लेकर कहा, “शायद मैं ही बदनसीब हूँ, वरना...... तुम्हारे बारे में सब कुछ जानता-समझता था..... फिर तुम पहली ही नजर में मन को भा गई थी, इसीलिए बड़ी उम्मीद से तुम्हारे सामने बात रखी थी..... सोचा था कि तुम मान जाओगी तो मुझे भी आदमी की तरह हंसी-खुशी जीने का मौका मिल जायेगा! बीबी की जली-कटी से तो जान बचेगी ही दोनों जून तुम्हारे हाथ की बनी रोटी खाने को मिलने लगेगी, पर.... ”
सविता चुप बैठी ताकती रही जैसे आँखों ही आँखों में तोल रही हो!
सविता को चुप देख कर निजामुद्दीन बेचैनी से गिड़गिड़ा उठा, “इस तरह क्यों ताक रही हो? कुछ तो बोलों...... यकीन करो सविता, मैं तुमको बहुत चाहता हूँ! तुम्हें पाने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ...... देख, लेना, तुम्हारे आगे मैं खुशियों का ढेर लगा दूँगा..... ”
“तब भी मैं रखैल बन कर नहीं रहूँगी, ठेकेदार..... ”
“तुम्हें रखैल बनाने को कौन कह रहा है, सविता! ” निजाम चहककर जोश से बोला, “मैं तो शादी करने की बात कर रहा हूँ..... ”
“एक बीबी के रहते...... मैं जानती हूँ कि तुम लोगों में चार-चार बीबियां तक रखने रिवाज है, पर मुझसे सौतिया डाह नहीं सहा जायेगा, बाबा........ ”
“तुम बिना मतलब उसकी फिक्र कर रही हो, मैं तो कहता हूँ कि शहर चलो, वहाँ कचहरी में सरकारी स्टैम्प पेपर पर शादी की लिखा-पढ़ी होगी ! एकदम पक्का काम तुम्हारा सहारा मिलते ही मैं अलग घर ले लूंगा जहाँ सिर्फ हम दोनों रहेंगे! उसे तलाक देकर हमेशा-हमेशा के लिए अपनी जिन्दगी से दूर कर दूँगा..... ”
आखिर निजामुद्दीन के झांसे में आकर एक दिन सविता उसके साथ शहर चली गई, लेकिन वादे के मुताबिक निजामुद्दीन ने कोर्ट मैरिज करने के बजाए दिखावे के लिए स्टैम्प पेपर लेकर शादी का फर्जी इकरारनामा बनवा लिया, इसके बाद एक कमरा लेकर दोनों पति-पत्नी की तरह रहने लगे। निजामुद्दीन ने पहली बीबी को तलाक भी नहीं दिया। इसके बजाए उसने एक बहाना जरूर गढ़ लिया कि काम बहुत पिछड़ गया है और लोग जल्दी काम खत्म करने के लिए दबाव डाल रहे हैं, इसलिए ठेकेदार ने कुछ जगहों पर रात में भी काम करने को कहा है और खुद भी सिर पर सवार रहता है। इस बहाने वह घर से गायब रहकर मजे से सविता के साथ रात भर रहकर मनचाही पूरी करने लगा। लेकिन बीबी को कुछ शक न हो, इसलिए बीच-बीच में यही बहाना सविता से करके दो-चार राते घर जाकर बीबी के साथ भी काट आता था।
लेकिन सविता आए दिन तलाक के बारे में पूछने लगी तब मामला गड़बड़ हो गया। शुरू-शुरू में निजामुद्दीन इधर-उधर की बातें करके टाल-मटोल करता रहा, पर सविता तो जेसे हाथ धोकर पीछे पड़ गई। तब तक निजामुद्दीन का मन भी उससे भर चुका था, इसलिए उसने काम के ही बहाने सविता से कटना शुरू कर दिया। इससे सविता के मन में शक का अंकुर फूट पड़ा और वह लड़ने-झगड़ने लगी तो निजामुद्दीन ने उसके साथ रहना ही कम कर दिया। कभी-कभी खाने-खर्चे के लिए कुछ रूपये-पैसे देने आ जाता, लेकिन सविता के झगड़ों से घबरा कर उसने धीरे-धीरे आना एकदम बन्द कर दिया।
सुभान
जली-भुनी सविता कुछ दिन इन्तजार करती रही, लेकिन भूखों मरने की नौबत आ गई तो गुस्से में बिलबिलाई हुई एक दिन पूछताछ करती हुई निजामुद्दीन के घर पहुँच गई तब सबको पता चला कि निजामुद्दीन ने चोरी-चोरी एक और शादी कर ली है और रात में भी ठेके पर काम करने के बहाने वह सविता के साथ रंगरेलियां मनाया करता था। भेद खुलने के बाद मामला जटिल हो गया। अभी तक सविता ही लड़ा-झगड़ा करती थी, अब बीबी भी बिफरने लगी। दो पाटों के बीच पिसने के कारण निजामुद्दीन का जीना मुहाल हो गया। न बीबी उसकी सुनती, न सविता पीछा छोड़ने को तैयार थी। वह आए दिन उसके घर पहुँचकर हड़कम्प मचाने लगी।
निजामुद्दीन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें और क्या नहीं। बौखलाहट में काम में भी कोताही होने लगी तो ठेकेदार इस्लाम ने भी टोकना शुरू कर दिया। आखिर टूटकर एक दिन निजामुद्दीन ने सब कुछ बता कर गिड़गिड़ाने लगा, “मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई, इस्लाम भाई! अब तुम्हारा ही सहारा है...... छुटकारे का कोई उपाय बताओं, वरना मैं खुदकुशी कर लूंगा..... ”
इस्लाम पहले तो निजामुद्दीन की हरकत के लिए उसे झिड़कता रहा, लेकिन दोस्त था इसलिए दोस्ती भी निभाई। सोच-विचार कर कहने लगा, “मेरा एक चचेरा भाई है- सुभान, गाजीपुर में काम-धन्धे से भी लगा है। उसकी बीबी हमेशा बीमार रहती है.... चाहों तो मैं सविता की शादी सुभान के साथ...... ”
निजामुद्दीन को मुंहमांगी मुराद मिल गई! वह गिड़गिड़ा उठा, “मैं तुम्हारा यह अहसान जिन्दगीभर नहीं भूलूँगा, इस्लाम भाई..... ”
आखिर इस्लाम ने सविता और सुभान के घरवालों से बात करके उनकी रजामंदी से दोनों की शादी करवा दी। इसके बाद इस्लाम के कहने पर सुभान भी मीरजापुर चला आया और बरौंधा गाँव में घर लेकर सविता के साथ रहने लगा। इस्लाम ने उसे अपने ठेके में ही काम दे दिया था। दो-दो जन की ठोकरे खाई सविता को सुभान और उसके भाई से निश्छल अपनापन मिला तो वह भी पिछली बातों को भूलकर अपनी गृहस्थी संजोने लगी।
लेकिन निजामुद्दीन सविता को नहीं भूला। सिर से बला टलते ही उसके मन में फिर शैतान जाग उठा और सविता के साथ मनाई गई रंगरेलियां याद आने लगीं तो बेचैन होकर वह एक दिन बरौधा पहुँच गया और सविता के साथ फिर सम्बन्ध बनाने की कोशिश करने लगा, पर एकाएक सुभान के आ जाने के कारण वह बातें बनाता हुआ तुरन्त रफूचक्कर हो गया।
दूसरे दिन सुभान ने सारी बात इस्लाम को बताई तो वह तुरन्त जाकर निजामुद्दीन की लानत-मलामत करने लगा। घबराकर निजामुद्दीन सफाई देने लगा, “तुम गलत मत समझो इस्लाम भाई.... मैं..... मैं बस यूँ ही सविता का हाल पूछने चला गया था.... ”
“आइन्दा कभी भूलकर भी उसकी ओर नजर मत उठाना! ” इस्लाम ने फटकारते हुए कहा, “कान खोल कर सुन लो, सविता अब हमारे घर की इज्जत है! अगर फिर कभी ऐसी हरकत की तो मैं तुरन्त तुम्हारे खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करवा दूँगा.... ”
इंस्पेक्टर बी0के0 सिंह
“नहीं-नहीं, इस्लाम भाई.... तुम ऐसी बात भूलकर भी दिल में मत लाना..... ईमान से कहता हूँ ..... तुमने मेरी इतनी मदद की है कि जिन्दगी भर तुम्हारा अहसान नहीं भूल सकता... ”
लेकिन सच यह था कि अहसान मानना तो दूर रहा, इस्लाम की धमकी सुनकर निजामुद्दीन भीतर-ही-भीतर सुलग उठा और उसे किसी भी तरह अपने रास्ते से हटाने की सोचने लगा। पूरी योजना बनाकर निजामुद्दीन ने इस्लाम को सन्देश दिया कि कोल्हुआ लालगंज में हो रहे काम के सिलसिल में कुछ जरूरी बात करनी है, इसलिए एक बार जल्दी से जल्दी आ जाऐ.....
3 मई को इस्लाम मोटर साइकिल से कोल्हुआ आया तो वहाँ काम निपटने बाद निजामुद्दीन कहने लगा, “टउंआ में भी कुछ झंझट है इसलिए लगे हाथ वहाँ भी चलकर समझ लो नहीं तो काम रूक जाएगा.... ”
दोपहर बाद करीब दो बजे दोनों मोटर साइकिल से टउंआ के लिए रवाना हुए। रास्ते में एक जगह रूककर दोनों ने शराब भी पी। निजामुद्दीन बड़ी होशियारी से खुद तो कम पी रहा था, लेकिन इस्लाम को उसने जान-बूझकर ज्यादा पिला दी थी। इसके बाद दोनों आगे चले। नशे में होने के बावजूद मोटर साइकिल इस्लाम ही चला रहा था, निजामुद्दीन उसके पीछे बैठा सही मौके का इंतजार कर रहा था। आखिर टउंआ के जंगल में थोड़ी दूर जाते ही निजामुद्दीन ने सन्नाटा देखकर इस्लाम पर छूरे से भरपूर वार कर दिया और मोटर साइकिल गिरने के पहले ही नीचे कूद पड़ा। घायल इस्लाम तड़प कर जमीन पर गिर पड़ा, लेकिन नशे में होने के कारण विरोध नहीं कर पाया और इस्लाम ने देखते-ही-देखते उसको बुरी तरह गोद डाला।
आखिर खून से लथपथ इस्लाम ढेर हो गया, तब निजामुद्दीन उसकी लाश वही छिपाकर अपने घर चला आया। यहाँ उसने अपने एक साथी ताजू को राजदार बनाकर इस्लाम की लाश को ठिकाने लगाने में साथ देने के लिए तैयार कर लिया। इसके बाद कुल्हाड़ी और बोरा आदि लेकर निजामुद्दीन ताजू के साथ फिर टउंआ के जंगल में पहुँचा। उस समय रात के आठ-नौ बज रहे होंगे। समूची लाश बोरे में नहीं भरी जा सकती थी, इसलिए उसके पैरों को काटकर अलग कर दिया गया। बाकी धड़ को बोरे में डालने के बाद जैसे-तैसे दोनों टांगें भी ठूंसकर बोरे का मुंह सुतली से सिल दिया।
सारा काम निपटाकर लाश से भरे बोरे को इस्लाम की ही मोटरसाइकिल पर लादा गया। ताजू बोरे को सम्हालने के लिए पीछे बैठ गया तब निजामुद्दीन ने मोटर साइकिल स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी। उस समय तक काफी रात हो चुकी थी इसलिए चारों ओर गहरा सन्नाटा छाया हुआ था। इस मौके का फायदा उठाकर सिरसी गहरवार गाँव के पास लाश से भरा बोरा मोटर साइकिल से नीचे धकेल कर दोनों रफू चक्कर हो गये।
सब कुछ एकदम गुपचुप ढंग से निपट गया था, लेकिन एक कहावत है कि पाप कितना भी छिपा किया जाए, उजागर हो ही जाता है। एक छोटे से सूत्र के सहारे निजामुद्दीन को पकड़कर पुलिस ने सब कुछ उगलवा लिया। इसके बाद 7 मई को ताजू को पकड़ा गया तो उसने भी रोते-सिसकते हुए इस्लाम की लाश को ठिकाने लगाने में निजामुद्दीन का साथ देने की बात स्वीकार कर ली। दोनों अभियुक्तों की शिनाख्त पर पुलिस ने वारदात में इस्तेमाल किये गये छुरे और कुल्हाड़ी के अलावा इस्लाम की मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली। फिलहाल मुकदमा अदालत में विचाराधीन है। कथा लिखे जाने तक दोनों आरोपी जेल की सलाखों के पीछे है।
(प्रस्तुत सत्यकथा पुलिस द्वारा दिये गये तथ्यों, घटनास्थल से ली गयी जानकारी एवं मीडिया सूत्रों पर आधारित है।)

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