28 February, 2013

जब प्रेमी लगे प्यारा

प्रतीक चित्र
उस दिन दोपहर में चैका-बर्तन से निवृत्त होकर गायत्री नहाने बैठी थी कि गिरधारी आ पहुॅचा। उसकी आवाज सुनकर गायत्री स्नानघर से ही बोली, ''हां-हां, बैठो। मैं अभी नहाकर आती हूॅ।''
गिरधारी की नसों में खून सनसना उठा। दूसरी ओर गायत्री भी ऐसे ही किसी मौके की ताक में थी। उसने क्षण भर बाद आवाज दी, ''
तुम्हारे बगल की खॅूटी पर मेरी साड़ी टंगी है जरा मेरी साड़ी उतार कर मुझे दे दो।''
क्षण भर रूक कर गिरधारी जब खूॅटी से साड़ी उतार कर देने गया तो गायत्री ने पूछा, ''बाहर वाला दरवाजा बंद कर दिया है न ?''
गिरधारी ने गायत्री के कहने पर फौरन ही बाहर वाला दरवाजा बंद कर दिया। तब तक गायत्री
स्नानघर से बाहर निकल आई और गीले बाल निचोड़ने लगी। उस समय वह सिर्फ पेटीकोट-ब्लाउज में थी, अतः उसका अर्द्धनग्न उत्तेजक यौवन देखते ही गिरधारी आपा खो बैठा। उसने एकदम झपटकर गायत्री को बांहों में भींच लिया और उन्मत्त भाव से उसे प्यार करने लगा तो गायत्री को लगा जैसे जीवन में पहली बार किसी पुरूष का संसर्ग मिल रहा हो। विह्नल भाव से वह गिरधारी की चैड़ी छाती में दुबक गई।
फिर जैसे तूफान आया गिरधारी और गायत्री एक-दूसरे से समा गए। गायत्री की उम्र 28 वर्ष थी जबकि उसका पति जग्गू 45 साल का था। खेती बाड़ी का काम निबटाकर जग्गू रात में खा-पीकर खाट पर लुढ़क जाता और खर्राटे भरने लगता था। यौवन से लबालब भरी गायत्री जलती रहती थी, मगर गिरधारी से मिले नैसर्गिक यौन-सुख को पाकर गायत्री निहाल सी हो गई और वह दिन-रात गिरधारी की बांहों में समाने के अवसर तलाश करने लगी।
गिरधारी का भी लगभग यही हाल था। यद्यपि अभी उसकी शादी नहीं हुई थी और केवल शादी की बात ही चल रही थी, पर जो सुख उसे गायत्री के संपर्क में मिला, वह उसकी पत्नी कभी दे पाएगी या नहीं यह भविष्य के गर्भ में था। यही सोच-सोचकर गिरधारी अपनी शादी की बात भूलकर गायत्री के रूप यौवन का रसपान करने लगा।
गायत्री चार बच्चों की मां बन गई, लेकिन गिरधारी के साथ उसका संबंध वैसा ही बना रहा, अतः उसके आते ही वह बच्चों को पैसे देकर बाहर भेज देती, फिर निश्चित होकर गिरधारी के साथ मौज-मजा करने लगती।
दरअसल गिरधारी सोनभद्र जनपद में करमा थानान्तर्गत सिधोरागाॅव का रहने वाला था। गिरधारी के पड़ोस में ही गायत्री का मकान था इस कारण दोनों एक दूसरे से परिचित थे। एकही गाॅव और पड़ोस में रहने के कारण दोनों में अक्सर भेंट मुलाकात हो जाया करती, इस भेंट मुलाकात में आगे चलकर गिरधारी के मन में गायत्री के प्रति प्रेम का भाव पैदा कर दिया और वह उसे दिल से चाहने लगा, कुछ ऐसा ही हाल गायत्री का था और वह भी मन ही मन गिरधारी को चाहने लगी। लेकिन भाग्य को शायद उन दोनों का प्रेम स्वीकार नहीं था। न तो गायत्री और न ही गिरधारी ने खुलकर कभी एक दूसरे से अपने प्रेम का इजहार किया कि वे एक दूसरे को कहाॅ तक चाहते है। गायत्री के प्रेम से बेखबर उसके पिता ने सयानी होती बेटी गायत्री की शादी की बात चलाई और घर - वर पसंद आ जाने पर उसकी शादी भी कर दी और गायत्री विदा होकर अपने ससुराल पहुॅच गयी, उसकी सारी चाहत दिल में ही रह गई। यह मात्र संयोग कहें या ऊपर वाले का कोई खेल गिरधारी की शादी की बात भी ड़ेढ साल बाद गायत्री की ही ससुराल पटवारी गाॅव में चली तो उसे गायत्री से सम्पर्क बढ़ाने का जैसे भगवान ने मौका दे दिया हो और वह आये दिन किसी न किसी बहाने से अपनी होने वाली ससुराल जाने के बहाने गायत्री के पति जग्गू के घर पहुॅचने लगा। इसी आने-जाने में एक दिन गिरधारी ने आखिर सालों से दबी अपने मन की बात गायत्री के सामने खोलकर रख ही दी। दरअसल गायत्री की शादी जग्गू के साथ ऐसे हालात में हुई थी कि वह चाह कर भी कोई विरोध नहीं कर पायी थी। उस दिन जो कुछ हुआ वह पहले से ही दोनों का सोचा हुआ घटित हो गया।
गायत्री
गायत्री का बड़ा बेटा मंगल 11 वर्ष का हो चला था। एकांत पाने के लिए गायत्री चाहती कि मंगल घर से बाहर ही रहे तो अच्छा हो। इसके लिए वह उसे जेब खर्च भी दे देती। परिणामस्वरूप वह मां की बात ज्यादा मानता।
उस रात जग्गू आंगन में सोया था, तब अचानक उसके पीठ में दर्द होने लगा। उसने सोचा अंदर जाकर पत्नी को जगा ले और उससे कहे तेल गरम करके लगा दे, ताकि सुबह तक उसको आराम मिल जाए। लेकिन कमरे के दरवाजे पर पहुॅचते ही पत्नी के खिलाखिलाकर हंसने की आवाज सुनाई दी तो वह ठिठक गया। विस्मय से उसने दरवाजे की फांक से अंदर झांका तो देखा-गायत्री और गिरधारी एक-दूसरे से लिपटे उन्मुक्त भाव से हंसी-ठट्ठा कर रहे थे। दूसरे ही क्षण उसका खून खौल उठा और तड़प कर दरवाजे पर पैर से प्रहार करता गरज उठा, ''दरवाजा खोल हरामजादी! नहीं तो तोड़ दूॅगा .......।''
आवाज सुनकर दोनों चैंके तो, पर तभी अचानक दरवाजा खोलकर गिरधारी ने जग्गू का मुंह दबोच लिया और गुर्रा पड़ा, ''ज्यादा पड़-पड़ाओ मत जग्गू भइया..... बदनामी तुम्हारी ही होगी। मेरा क्या ? मैं तो यहाॅ से चुपचाप खिसक जाऊॅगा।''
''बदनामी का ही डर होता तो बुढ़ापे में शादी न करते''
गायत्री ने उपेक्षा से सिर झटक कर कहा, ''हूॅ! जब तुम कुछ कर नहीं सकते तो शोर क्यों मचाते हो ? चुपचाप जाकर सो जाओ, वरना ज्यादा हो-हल्ला किया तो मैं अभी गिरधारी के साथ अपने मायके चली जाऊंगी और लोगांे के पूछने पर कह दूॅगी मेरे पति ने हम दोनों भाई-बहन को बेइज्जत करके घर से निकाल दिया है....।''
गायत्री का यह रवैया देखकर जग्गू खून का घंूट पीकर रह गया। लेकिन जग्गू का इस तरह खामोश रह जाना भी गिरधारी और गायत्री को कचोटने लगा। गायत्री को यह भी डर लगा कि अगर जग्गू ने बाद में सचमुच बेइज्जत करके निकाल दिया तो वह फिर कहीं की न रह जायेगी। गिरधारी कहने को तो मुंह बोला भाई है लेकिन गिरधारी भी तो उसे तत्काल अपने घर में नहीं रख सकेगा। आखिर बदनामी से बचने और गिरधारी से निर्द्धन्द्व संबंध बनाये रखने के लिए उसे एक ही उपाय समझ में आया क्यों न जग्गू को ही रास्ते से हटा दिया जाए ?
गायत्री ने इस संबंध में गिरधारी से बात की तो वह भी तुरन्त तैयार हो गया। इसके बाद उसका ध्यान अपने बड़े बेटे मंगल की ओर गया। कहने लगी, अगर लालच देकर उसको भी इस साजिश में शामिल कर लिया जाए तो वह कभी भी हम दोनों के खिलाफ मुंह नहीं खोल सकेगा और काम भी आसानी से हो जायेगा; लेकिन गिरधारी ने तुरंत बात काट दी और बोला, ''जब तुम साथ देने को तैयार हो तो फिर मंगल का क्या काम है ? कुछ भी हो मंगल है तो जग्गू का बेटा ही न जाने कब वह कोई बात मुंह से निकाल दे तो हमें और तुम्हें फॅसते देर नहीं लगेगी। बस, तुम किसी भी तरह इतना करो कि जब हम इस घटना को अंजाम दे तो वह घर पर न रहे या तो उसे अपने मायके भेज दो या फिर एक दो दिन के लिए किसी रिश्तेदारी में......।''
और गायत्री ने वैसा ही किया। शाम को मंगल घर लौटा तो उसने बड़ी होशियारी से उसे एक काम के बहाने से अपने मायके अर्थात् उसके ननिहाल भेज दिया और पट्टी पढ़ा दिया कि तेरे पिता की कुछ तबियत ठीक नहीं लग रही है इसलिए तुम नानी के गाॅव में रहने वाले वैद्य जी से उनका हाल बताकर दवा लेकर कल शाम तक लौट आना। मंगल अपने नानी के घर चला गया इसके बाद गायत्री ने फटाफट सारी तैयार कर ली।
जग्गू का शव
उस रोज भी जग्गू रात करीब दस बजे खा-पीकर आंगन में ही सो गया, पर गायत्री और गिरधारी मौके के इंतजार में जागते रहे। आखिर जब उन्हें विश्वास हो गया कि जग्गू गहरी नींद सो गया है, तब करीब ग्यारह बजे वे दबे पांव आंगन में आए और पलक झपकते उसके मुंह पर तकिया रख गिरधारी अपनी भरपूर ताकत से दबाने लगा। दम घुटने के कारण जग्गू छटपटाने लगा तो गायत्री बड़ी बेरहमी से अपने पति के शरीर पर चढ़ बैठी। परिणामस्वरूप पांच-सात मिनट बाद ही जग्गू हमेशा-हमेशा के लिए शांत हो गया।
गायत्री और गिरधारी ने रास्ते का रोड़ा तो हटा दिया, लेकिन योजना के अनुसार लाश को ले जाकर चुपचाप जलाने की हिम्मत नहीं पड़ी, तब विचार-विमर्श करके दोनों ने एक योजना बनायी और अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के उद्देश्य से गिरधारी उसी रात गायत्री के घर से बाहर चला गया और गायत्री भोर में योजनानुसार जग्गू की लाश दरवाजे पर रख दी और सबेरा होते ही गायत्री नाटक करती हुई हाहाकार करने लगी, ''मैं कहती थी, ठीक से दवा-दारू करो। लेकिन यह माने तब न, पता नहीं कैसी दवा उठा लाए। खाते ही तबियत और खराब हो गई ..... और चल बसे। मेरी तो दुनिया उजड़ गई। अनाथ हो गई मैं और वह हूं.....हूं......हूं....कर दहाड़ मारकर रोने लगी।''
उस समय दिन के लगभग 8 बजे थे। लल्लन चैकीदार लपकता हुआ जग्गू के घर पहुॅचा तो वहाॅ सचमुच भीड़ लगी थी और लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे। वह भी यहाॅ-वहाॅ घुसकर मामले का पता लगाता रहा, फिर जैसे ही उसे पता चला कि अभी तक किसी ने थाने में खबर नहीं दी है तो उसे तुरन्त अपने फर्ज का भान हुआ, वह जग्गू का नजदीकी दोस्त भी था इसलिए बिना देर किये जग्गू की मौत की खबर थानेदार को दे दी।
यह 15 फरवरी की बात है। लल्लन चैकीदार से अपने थाना क्षेत्र में हुए इस हत्याकाण्ड की खबर पाते ही थाना प्रभारी एम0पी0 कुमार ने जग्गू की मौत को संदिग्ध मानते हुए अज्ञात अभियुक्तों के खिलाफ एक रिपोर्ट दर्ज कर सब इंस्पेक्टर माधो चरण, कांस्टेबल प्रभु दयाल शर्मा, शिव गोपाल कुशवाहा, मधुसूदन पाण्डेय तथा ड्राइवर शिव मोहन सिंह को साथ लेकर जांच-पड़ताल के लिए घटनास्थल की ओर रवाना हो गये।
पुलिस जनों के घटनास्थल पर पहुॅचते ही वहाॅ जुटी भीड़ काई की तरह फट गई। थाना प्रभारी एम0पी0 कुमार ने बारीकी से लाश का मुआयना किया। लेकिन मृतक के शरीर पर कहीं चोट या खून का कोई निशान नहीं मिला, जिससे यह पता चलता कि उसकी हत्या कैसे हुई है ? अतः आवश्यक जांच-पड़ताल के बाद उन्होंने शव को पोस्टमार्टम हेतु जिला अस्पताल भेज दिया।
लल्लन
शाम को पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई। जिसमें मृत्यु का कारण दम घुटना बताया गया था, अतः श्री कुमार ने पूर्व में दर्ज रिपोर्ट में भारतीय दण्ड विधान की धारा 302 और जोड़ दिया और इसकी जाॅच की जिम्मेदारी वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश पर स्वयं सम्भाल ली।
यद्यपि हत्यारों ने घटनास्थल पर कोई सूत्र नहीं छोड़ा था, फिर भी श्री कुमार निराश नहीं हुए। उन्होंने जांच-पड़ताल के सिलसिले में सबसे पहले मृतक जग्गू की पत्नी से ही पूछताछ की, ''तुम लोगों की किसी से दुश्मनी या कोई झगड़ा तो नहीं था ?''
''नहीं साहब!''
जग्गू की पत्नी ने तपाक से जवाब दिया, ''वह तो बहुत सीधे-सादे आदमी थे। उन्होंने किसी से 'रे'
तक करके बात नहीं की, फिर झगड़ा क्यों करते .......''
''
लेकिन बिना कारण तो कोई किसी की हत्या करेगा नहीं। खैर, तुम अभी जाओ.....।''
थाना प्रभारी एम0पी0 कुमार ने गमगीन माहौल को देखते हुए उस समय ज्यादा पूछताछ करना मुनासिब नहीं समझा और परिवारजनों को जग्गू का अन्तिम संस्कार करने का पूरा समय दे दिया इसके बाद अगले दिन भी उन्होंने कोई भी खोद-विनोद नहीं किया बल्कि अपने तरीके से गुपचुप ढंग से पता लगाने लगे कि इस हत्या का मूल कारण क्या हो सकता है आखिर उनके एक विश्वस्त मुखबिर ने उन्हंे जो कुछ बताया उसे सुनकर चैंक पड़े कि जग्गू की पत्नी गायत्री का चरित्र अच्छा नहीं है और वह अपने मायके के पड़ोसी मुंह बाले भाई गिरधारी से बहुत मेल-जोल रखे हुए थी। बातों-ही-बातों में श्री कुमार ने यह भी पता लगा लिया कि गिरधारी की शादी की बात जग्गू की ही रिश्तेदारी में चल रही थी इसलिए बराबर मिलने-जुलने के बहाने यहाॅ आता रहता था।
यह सुनते ही श्री कुमार का सारा ध्यान घटनास्थल पर जा टिका। उस समय गायत्री अपने पति के शव पर सिर पटक-पटक कर रो जरूर रही थी, लेकिन उसकी आॅखों में आंसू का कतरा भी नहीं दिखाई पड़ा था। यद्यपि उन्हें उसी समय यह बात खटकी थी, पर वह मृतक की पत्नी थी, इसलिए ठीक से सोचे-समझे बिना उन्होंने कोई धारणा बनानी उचित नहीं समझा।
लेकिन अब गिरधारी के साथ गायत्री के मधुर संबंधों की बात सुनते ही श्री कुमार समझ गए कि दाल में कुछ काला है। अतः उन्होंने तुरंत ही एक सिपाही को भेजकर गायत्री को थाने बुलवा लिया और लगे पूछताछ करने, ''तुम्हारे कितने बच्चे हैं। ?''
''चार।''
गायत्री ने तुरंत जवाब दिया, ''एक बेटा और तीन बेटियां, साहब!''
''क्या-क्या नाम हैं उनके ?''
''बड़े बेटे मंगल से तो आप मिल ही चुके हैं। उससे छोटी रजनी, सुनीता और बीना हैं।''
''हूॅ.... और अपने पति के साथ तुम्हारा व्यवहार कैसा था ?''
''व्यवहार ? व्यवहार तो मेरा वैसा ही था जैसे दूसरे आदमी-औरत रखते हैं......।''
''मेरा मतलब तुम दोनों में कभी लड़ाई-झगड़ा तो नहीं हुआ ?''
श्री कुमार ने ध्यान से गायत्री के चेहरे को देखते हुए पूछा, ''देखो, मुझसे झूठ मत बोलना, वरना ठीक नहीं होगा।''
''झूठ क्यों बोलूंगी, साहब!''
गायत्री सिटपिटा गई। आंखें चुराती हुई बोली, ''रही बात मियां-बीबी के लड़ाई-झगड़े की तो वह किस घर में नहीं होता।''
''घटना से पहले भी तुम दोनों में झगड़ा हुआ था ?''
''नहीं तो .........ऐसी कोई बात तो नहीं हुई थी, साहब! बल्कि जिस रात यह विपत्ति टूटी, उस रात वह कहीं घूमने गये थे। मैं बड़ी देर तक उनकी बाट निहारती रही, फिर थक कर जाने कब सो गई। इसके बाद सबेरे जागी तो दरवाजा खोलते ही देखा, वह बाहर मरे पड़े थे .... मेरी तो दुनिया सूनी हो गई।''
''लेकिन मुझे मालुम हुआ है उस समय तुम कुछ और ही राग अलापती कह रही थीं कि जग्गू पता नहीं कैसी दवा उठा लाया था खाते ही उसकी तबियत और बिगड़ गई और वह मर गया।''
''हां....।''
गायत्री आंचल में मुंह छिपाकर फिर सिसकने लगी तो थाना प्रभारी श्री कुमार डपट पड़े, ''अब ज्यादा त्रिया-चरित्र दिखाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि मैं सब कुछ पता लगा चुका हूॅ। तुम्हारे पड़ोसियों ने तो यह भी बता दिया है कि उस शाम तुम दोनों में झगड़ा भी हुआ था।''
यद्यपि थाना प्रभारी श्री कुमार ने अंधेरे में ही तीर मारा था, पर वह एकदम सही निशाने पर जा लगा। गायत्री हड़बड़ा कर बोली, ''लोगों का क्या, कुछ भी बोलें ? जब मेरी उनकी कोई लड़ाई हुई ही नहीं तो डर कैसा ? वह तो बीच में गिरधारी ........।''
पुलिस हिरासत में गिरधारी
''हां-हां बोलो। गिरधारी ही के बारे में तो जानना चाहता हूं, मैं।''
थाना प्रभारी श्री कुमार ने गरज कर पूछा, ''जल्दी बता, कौन है वह ?''
''व....वह मेरे भाई जैसा है .....।''
''भाई जैसा....? इसका मतलब तुम्हारा कोई और संबंध हैं ? उसके साथ''
गायत्री का चेहरा फक् पड़ गया। डर के मारे वह थर-थर कांपने लगी, फिर भी उसने ढिठाई से जवाब दिया, ''और क्या संबंध होगा, साहब! सगा नहीं है तो क्या ? मानता तो वह सगे की ही तरह।''
''मगर गिरधारी ने तो कुछ और ही रिश्ता बताया है।''
श्री कुमार ने फिर अंधेरे में तीर छोडा़, ''कल हम उसे पकड़ कर थाने लाए थे तब उसने सब कुछ बता दिया। अब भलाई इसी में है कि तुम भी सच-सच बता दो। तुम औरत हो, इसलिए हम तुम्हारे साथ गिरधारी की तरह सख्ती से पेश नहीं आयेंगे, बल्कि सही-सही बता दो तो शायद हम तुम्हारी कुछ मदद ही कर दें। वैसे उसने तो सारा भेद उगल ही दिया है.....''
श्री कुमार की बातों से गायत्री का मनोबल टूट गया, फिर उसने सहज ही आरोप स्वीकार कर लिया। अभी तक वह गायत्री से सच उगलवाने के लिए गिरधारी की गिरफ्तारी की बात झूठ-मूठ में कह रहे थे, लेकिन उसका सनसनीखेज बयान सुनते ही श्री कुमार ने छापा मारकर उसी दिन 18 फरवरी की शाम पांच बजे गिरधारी को टूटहे नाला के पास से दबोच लिया।
फिर उसका भी बयान दर्ज करके अगले दिन 19 फरवरी 2012 को गायत्री के साथ गिरधारी को भी सम्बन्धित न्यायालय में पेश किया, जहाॅ से उन दोनों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। पुलिस जल्द ही जाॅच पड़ताल पूरी करके अदालत में चार्जशीट प्रस्तुत करने की तैयारी कर रही है।
कथा पुलिस से प्राप्त तथ्य, घटनास्थल से ली गयी जानकारी एवं मीडिया सूत्रों पर आधारित है।

06 February, 2013

"जब अपने हुए पराये"


डिम्पल बेहद खूबसूरत युवती थी, इतनी खूबसूरत कि उसे देखने वाला हर शख्स पहली ही नजर में उस पर फिदा हो उठता था। गली मोहल्ले का हर युवक उसके आगे प्रेम प्रदर्शन करने को बेकरार रहते थे। डिम्पल मूलरूप से उ0प्र0 के वाराणसी जनपद के चौबेपुर थाना क्षेत्र के पुरनपट्टी गाँव निवासी बलवन्त मिश्र की बेटी है। अपने परिवार की सबसे लाडली डिम्पल उन दिनों इंटर की कर रही थी, पूरा कालेज उसके चेहरे से छिटकती आभा का दीवाना था। वहां शायद ही कोई ऐसा युवक हो, जिस पर उसकी खूबसूरती का जादू न चला हो, शायद ही कोई ऐसा हो जो उससे दोस्ती करने को लालायित न हो। मगर डिम्पल को तो जैसे उन युवकों के बारे में सोचने तक की फुर्सत नहीं थी, वह तो बस अपने आप में ही मग्न रहने वाली युवती थी, अलबत्ता अपनी खूबसूरती पर उसे नाज जरूर था, वह जानती थी कि वह बेहद खूबसूरत है इतनी खूबसूरत कि जिस युवक की तरफ नजर भरकर देख ले, वही उसका दीवाना हो जाये। मगर अभी तक उसे कोई युवक पसंद नहीं आया था, वह अपने सपनों के राजकुमार के इंतजार में पलकें बिछाए बैठी थी।
डिम्पल के पिता बलवन्त मिश्र लगभग 30 साल पहले काम धन्धे की तलाश में मुम्बई का रूख किया। मुम्बई के उपनगर शायन में पहले किराये का एक कमरा लेकर काम की तलाश की जल्द ही उन्हें कपड़ा बनाने वाली एक मिल में काम मिल गया। उनके परिवार में पत्नी के अलावा तीन बच्चे थे। सबसे बड़ा बेटा हरिश्चन्द मिश्र उसके बाद डिम्पल और उससे छोटा बेटा धनन्जय मिश्र है। सन् 1992 में जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया गया था, तब पूरे देश में लूट-पाट और आगजनी की घटनायें हुई थी। उस दौरान शायन का इलाका भी दंगायियों का भेंट चढ़ गया था। दंगायियों ने बलवन्त मिश्र के मकान को जला दिया था। उस समय डिम्पल की उम्र 5-6 साल के लगभग थी। दंगे के बाद 1998 में डिम्पल के माँ की मौत हो गयी। मौत के बाद डिम्पल का बड़ा भाई हरिश्चन्द मिश्र अपने पैतृक गाँव लौट आया और वहीं अपने लिए काम तलाश लिया फिर तो यही का होकर रह गया।
माँ की मौत और बड़े भाई के गाँव चले जाने के बाद बलवन्त मिश्र ने भी शायन का इलाका छोड़कर ठाणे जिले के उल्लासनगर में कमरा लेकर रहने लगे। इस समय बलवन्त के साथ बेटी डिम्पल मिश्रा और छोटा भाई धनन्जय मिश्र साथ रह रहे थे। कुछ साल बाद बलवन्त मिश्र जिस फैक्ट्री में काम करते थे वहाँ से रिटायर हो गये, तब आय के साधन भी सीमित हो गये। पढ़ाई पूरी करने के बाद डिम्पल अपने लिए नौकरी की तलाश करने लगी। संयोग से एक साल बाद डिम्पल को रिलायंस कम्पनी के टेलीकालिंग विभाग में काम मिल गया। डिम्पल का काम था रिलायंस के पोस्ट पेड मोबाईल फोन धारक ग्राहक जिनका बिल जमा नहीं हुआ होता उन्हें फोनकर बकाया बिल जमा करने के लिए उन्हें याद कराना तथा उनसे बकाया जमा करवाना। यही उसकी

‘‘बलात्कारी हत्यारे को म्रृत्युदंड’’

दिव्या बलात्कार हत्याकाण्ड कथा फैसले के बाद
आम तौर पर ठण्ड के दिनों में लोग थोड़ा देर से ही सोकर उठते है, कुछ लोग तो सूर्योदय हो जाने के काफी देर बाद तक रजाई में ही दुबके रहते है। लेकिन पांच दिसम्बर को वाराणसी के शिवपुर थाना क्षेत्र अन्तर्गत तुलसी बिहार कालोनी निवासी पेशे से चिकित्सक डा0 श्याम जी शर्मा और उनकी पत्नी रजनी उस दिन सूर्योदय से काफी पहले ही उठकर अपने नित्यकर्मो में लग गये थे। आँखों  के आगे रह-रह कर वह हृदय विदारक घटना बरबस घूम जाती जब रजनी शर्मा के भाई की लाडली बेटी दिव्या उर्फ मोनी की बलात्कार के बाद नृशंस हत्या कर  दी गयी थी आज कानून वर्ष 2007 में घटी उस घटना को अंजाम देने वाले पेंटर संजय कुमार को उसके कुकर्मो की सजा पर फैसला सुनाने जा रहा था।
नहा-धोकर रजनी शर्मा ने भगवान की पूजा की और मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना किया कि जिस दरिन्दे ने उनकी भतीजी की आबरू लूटने के बाद बेरहमी से हत्या की है उसे कठोर से कठोर दंड मिले। फिर भतीजी दिव्या की फोटो निकाल कर उसके मासूम चेहरे को काफी देर तक एकटक निहारती रही। फोटो को देखते-देखते उनकी आँखों  से आँसू निकल आये। आंसुओं को पोछते हुए बुदबुदाई, “मोनी बेटा आज तुम भले ही हमारे बीच नहीं हो लेकिन शायद ही ऐसा कोई दिन बीता हो जब मैंने तुझे याद न किया हो। तुम्हारे फूफा ने हत्यारे को सजा दिलाने के लिए जो मेहनत की है आज उसका फैसला होने वाला है।” विचारों में खोयी रजनी शर्मा न जाने कितनी देर तक दिव्या की तस्वीर को निहारती रहती लेकिन तभी उनके पति डा0 श्याम जी शर्मा कमरे में प्रवेश करते हुए कहा, “देख लेना कानून उस नराधम को मृत्युदण्ड की सजा सुनायेगा।”
“सचमुच यदि ऐसा हुआ तो सच मानो दिव्या की आत्मा को जरूर शांति मिल जायेगी।” रजनी ने भर्राई आवाज में कहा। पति-पत्नी दोनों बोछिल मन से कमरे से बाहर निकले और थोड़ा-बहुत नाश्ता करने के बाद घड़ी पर नजर डाली तो दिन के साढ़े नौ बज चुके थे। श्याम जी शर्मा जिला कचहरी के लिये रवाना हो गये।
इस हालत में मि्ली थी दिब्या की लाश
आम दिनों की अपेक्षा उस दिन वाराणसी के अपर जिला जज (दशम) दिनेश कुमार सिंह की अदालत कक्ष के अन्दर-बाहर लोगों का जमावड़ा लगा हुआ था। जिस मुकदमें का फैसला होने वाला था उससे जुड़े वादी एवं प्रतिवादी वकीलों के अलावा मीडिया जगत से जुड़े संवाददाताओं की मौजूदगी एवं न्यायालय की सुरक्षा व्यवस्था में तैनात पुलिसकर्मी की उपस्थिति इस बात की ओर साफ ईशारा कर रहे थे कि आज किसी खास मुकदमें का फैसला सुनाया जाना है। श्याम जी शर्मा भी अदालत कक्ष में पड़ी एक बेंच पर जाकर बैठ गये। थोड़ी देर बाद ही दसवें अपर जिला जज दिनेश सिंह ने कक्ष में प्रवेश किया और अपनी कुर्सी पर विराजमान हो गये। जज के बैठने के बाद पेशकार के इशारे पर एक युवक को आरोपियों वाले कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया गया। बचाव पक्ष और अभियोजन पक्ष के वकीलों के बीच सजा के बिन्दु पर अंतिम बहस शुरू हुई। दरअसल आज वाराणसी जनपद के एक बहुचर्चित बलात्कार और हत्याकाण्ड के मुकदमें का फैसला सुनाया जाना था। जिस लड़की के साथ यह हादसा हुआ था उसका नाम दिव्या उर्फ मोना था, वह मूलरूप से बिहार के दानापुर निवासी तपन कुमार की बेटी थी। घटना के समय इण्टर की प्राइवेट परीक्षा देने के लिए वाराणसी में रहने वाली अपनी बुआ रजनी के यहां आई हुई थी।
अदालत की कार्यवाही शुरू हो चुकी थी अभियोजन पक्ष प्रस्तुत कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता डा0 नीलकंठ शास्त्री ने अपनी बात कहनी शुरू की, “हुजूर कटघरे में खड़े इस शख्त का गुनाह साबित हो चुका है। जिस घर से अभियुक्त का रोजी-रोटी जुड़ा था उस घर में ही रह रही छात्रा की न सिर्फ आबरू लूटी बल्कि उसका बेरहमी के

“इश्क की गली में मौत का सन्नाटा”

मीरजापुर अवैध सम्बन्ध हत्याकाण्ड
प्रतिक चित्र
मीरजापुर स्थित देहात कोतवाली क्षेत्र में सिरसी गहरवार गाँव के कुछ लोग सुबह-सुबह दिशा-मैदान के लिए निकले तो पक्की सड़क के किनारे बोरे का एक बड़ा-सा बंडल पड़ा देखकर थोड़ी हैरानी हुई। असमंजस भरे भाव से डरते-सहमते हुए वे थोड़ा पास पहुंचे तो बोरे पर खून के दाग और मक्खिंया भिनभिनाती देखकर सब एकदम चौंक पड़े और आशंकित दृष्टि से एक दूसरे की ओर ताकने लगे। वे समझ गये कि बोरे में जरूर लाश भरी है। यह खबर फैलते देर नहीं लगी। देखते-ही-देखते ग्राम प्रधान सहित गाँव के तमाम लोग आ गए। मामले की नजाकत महसूस करते ही ग्राम प्रधान ने पुलिस को सूचना दी तो देहात कोतवाली के प्रभारी इंस्पेक्टर बी0 के0 सिंह भी दल-बल के साथ आ पहुंचे और सूक्ष्मता से बोरे की जाँच करने लगे।
बोरे का मुंह सुतली से सिला हुआ था। इंस्पेक्टर बी0के0 सिंह के संकेत पर सिपाहियों ने बोरे का मुंह खोला तो अनुमान की पुष्टि हो गई- उसमें सचमुच एक युवक की लाश ठूंसी हुई थी। उसे बाहर निकालने के प्रयास में पता चला कि धड़ अलग है और दोनों पैर अलग। इंस्पेक्टर बी0के0 सिंह को समझते देर नहीं लगी कि लाश को बोरे में ठूंसने के लिए ही उसके पैरों को क्रूरता पूर्वक काट दिया गया होगा।
इंस्पेक्टर बी0के0 सिंह सूक्ष्मतापूर्वक लाश का निरीक्षण करने लगे- मृतक पर बड़ी निर्दयतापूर्वक चाकू से वार किये गये थे और आँखें निकाल कर चेहरा विकृत कर दिया गया था, फिर भी अनुमान लगाना आसान था कि मृतक की उम्र अभी 30 से 35 वर्ष के बीच ही रही होगी। लाश की हालत देखकर यह अनुमान लगाने में भी कठिनाई नही हुई कि उसकी हत्या बीती रात में ही किसी समय की गई होगी सड़क के किनारे पड़ी लाश बोरे में भरी थी और घटनास्थल पर कुछ खास खून भी नहीं गिरा था, इसलिए स्पष्ट था कि उसकी हत्या कहीं और करने के बाद लाश को बोरे में भरकर किसी वाहन से लाकर यहाँ फेंक दिया गया था।
इस बीच यह खबर जंगल में लगी आग की तरह चारों ओर फैल गई थी, परिणामस्वरूप आस-पास के तमाम गाँवों के लोग आ जुटे और तरह-तरह की बातें करने लगे। अपने इलाके में हुए इस काण्ड से इंस्पेक्टर बी0के0 सिंह तिलमिला उठे और किसी भी तरह जल्दी-से-जल्दी हत्यारे का पता लगाने के लिए कटिबद्ध हो गये।
खून-कत्ल के मामलें में जाँच आगे बढ़ाने के लिए सबसे पहले मृतक की शिनाख्त होनी जरूरी होती है। मृतक पैंट-शर्ट पहले हुए था। शर्ट पर ‘न्यू मद्रास टेलर्स’ का स्टीकर टंका हुआ था। जेबों की तलाशी लेने पर उसके पास लगभग 3200 रूपये के साथ ‘भारतीय स्टेट बैंक’ की एक पर्ची भी मिली, लेकिन खून में सनी होने के कारण न तो खातेदार का नाम पढ़ा जा सका, न खाता संख्या। लाश की सूक्ष्म जाँच-पड़ताल में यह जानकारी जरूर मिल गई कि मृतक मुस्लिम समुदाय का युवक था, लेकिन वहाँ मौजूद तमाम लोगों में से कोई भी उसकी शिनाख्त नहीं कर सका। आखिर भरसक पूछताछ के बाद तात्कालिक कार्यवाही शुरू हुई। इस सिलसिले में भा0द0वि0 की धारा 302/201 के अन्तर्गत मुकदमा अपराध संख्या 239 पंजीकृत कर लिया गया। लाश का पंचायतनामा करके उसे सील-मोहर करवाने के बाद पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेजवा कर इंस्पेक्टर बी0के0 सिंह मृतक की शिनाख्त और हत्यारे का पता लगाने की योजना बनाने लगे। पुलिस अधीक्षक के0 सत्यनारायणा ने भी इस घटना की पूरी जानकारी लेकर आवश्यक दिशा-निर्देश देते हुए मामले की जाँच-पड़ताल के लिए तुरन्त ही एस0ओ0जी0 एवं देहात कोतवाली पुलिस की एक टीम गठित कर दी। एस0ओ0जी0 टीम के सब-इंस्पेक्टर इन्द्रभूषण यादव, कांस्टेबल फिरोज, कांस्टेबल अजीमुल्ला और कांस्टेबल अरविन्द सिंह ने मृतक की शिनाख्त के साथ-साथ हत्यारे का पता लगाने की दिशा में तत्परता से मुखबिरों का जाल फैला दिया।
आखिर बहुतरफी प्रयास ने रंग दिखाया। लाश मिलने के अगले दिन ही एक युवक ने आकर शव की शिनाख्त कर दी। शिनाख्त करने वाले युवक ने अपना नाम सुभान बताते हुए कहा कि मृतक उसका चचेरा भाई इस्लाम है। वह शहर कोतवाली इलाके के मलइया की बारी मोहल्ले में रहता था और भवन-निर्माण के ठेके लिया करता था। काम करने के लिए उसने कई कारीगर और मजदूर भी रख छोड़े थे, जिनमें से कुछ को तो बकायदा बंधी तनख्वाह पर रखा था, लेकिन ज्यादातर रोज की दिहाड़ी पर काम करते थे। ऐसे लोगों को इस्लाम जहाँ काम चल रहा होता, वहीं से रख लिया करता था।
सविता
इन दिनों भी इस्लाम के पास कई ठेके थे। आमतौर से वह हर जगह काम करने वालों में से ही किसी विश्वासी को चुनकर वहाँ की तात्कालिक जिम्मेदारी सौंप देता, फिर भी इस्लाम कभी लापरवाह नहीं होता था और मौके-बेमौके हर जगह पहुँच कर काम-काज देखता रहता और जरूरी हिदायतें भी दे देता। इसी सिललिसे में उस दिन वह निकला था। आम तौर से वह कहीं भी जाता, शाम को देर-सबेर डेरे पर वापस जरूर लौट आता था, लेकिन उस रोज वह रात भर नहीं लौटा। फिर सबेरे भी जब उसका कोई संदेश नहीं मिला तो परेशान होकर चचेरा भाई सुभान पता लगाने निकल पड़ा। उसी समय सुभान को देहात कोतवाली क्षेत्र में सिरसी गहरवार गाँव के पास सड़क के किनारे 30-35 साल के किसी मुस्लिम युवक की लाश मिलने की खबर सुनने को मिली तो दिल आशंका से धड़क उठा। फिर वह भागा-भागा तुरन्त देहात कोतवाली पहुँचा तो यह देखकर विलख उठा कि लाश उसके चचेरे भाई इस्लाम की ही थी।
देहात कोतवाली के प्रभारी वी0के0 सिंह ने ढांढ़स बंधाते हुए कहा, “जो होना था, वह तो हो ही चुका, अब तुम्हें अपने भाई के कातिल को पकड़वाने में पुलिस की मदद करनी चाहिए! क्या इस्लाम की किसी से दुश्मनी....”
“नहीं, साहब.... मेरे भाई की किसी से दुश्मनी नहीं थी। वह तो सबसे मेल-मिलाप रखता था ...”
“फिर भी..... पैसे के लिए अपने ही बेगाने हो जाते हैं.... जरा याद करके बताओ.... लेन-देन के मामले में कभी किसी मजदूर-कारीगर से लड़ाई-झगड़ा.....”
“किभी नहीं, साहब! भाई अपने साथ काम करने वालों से भी बड़े प्यार से बोलता था। मौके-बेमौके वह खुद चार पैसे का नुकसान सह लेता, लेकिन किसी मजदूर-कारीगर का कभी एक पैसा भी नहीं मारता था। वह किसी से लड़ता-झगड़ता नहीं....”
बोलते-बोलते एकाएक सुभाष अटककर जैसे कुछ सोचने लगा तो इंसपेक्टर वी0के0 सिंह ने उतावली से पूछा, “बोलो-बोलो.... अटक क्यों गए? क्या कहना चाहते हो.....”
“ऐसे ही एक बात याद आ गई, साहब....”
“क्या....?”
“भाई लड़ाई-झगड़े से दस कदम दूर रहता था, पर..... पर एक बार उसने किसी बात पर नाराज होकर निजामुद्दीन को डांटते हुए धमकी दी थी कि फिर ऐसी हरकत की तो उसके खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करवा देगा....”
“निजामुद्दीन कौन है ?”
“भाई के साथ ही काम करता है, साहब! इधर के इलाके में जो काम चल रहे हैं, उनकी देखभाल की जिम्मेदारी भी भाई ने निजामुद्दीन को ही सौंप रखी थी.... ”
इंस्पेक्टर वी0के0 सिंह ने अनुमान लगाया कि शायद रूपये-पैसे के मामले में ही कोई गड़बड़ी हुई होगी और मामला डाँट-फटकार से बढ़कर खून-कत्ल तक पहुँच गया। लाश की शिनाख्त के साथ-साथ एक सूत्र भी मिला तो पुलिस ने निजामुद्दीन का पता-ठिकाना पूछकर तुरन्त ही उसे दबोच लिया।
इस्लाम के कत्ल के मामले में पकड़ जाने पर निजामुद्दीन एकदम घबरा गया और हाथ-पैर जोड़ता हुआ अपनी बेगुनाही का राग अलापने लगा, पर थाने में थोड़ी सख्ती होते ही उसका मनोबल टूट-बिखर गया। फिर उसने रोते-सिसकते हुए सब कुछ स्वीकार कर लिया तो पता चला कि कहानी कुछ और ही है।
आखिर निजामुद्दीन से व्यापक पूछताछ और सुभान के बयान के बाद इस्लाम के बेमौत मारे जाने की जो सनसनीखेज कहानी सामने आई, वह इस प्रकार बताई जाती है -
इस्लाम मूलतः झारखण्ड के गिरीडीह जिले में धनकार थानान्तर्गत चिहुटीकरन गाँव का रहने वाला था। उसके पिता लुकमान और परिवार के अन्य सदस्य अभी भी वहीं रहते हैं, लेकिन इस्लाम काम-धन्धे की तलाश में उत्तर प्रदेश चला आया था। यहाँ मीरजापुर उसे रास आ गया। कुछ दिन जैसे-तैसे काटने के बाद उसने अपना अच्छा सिलसिला जमा लिया और भवन-निर्माण के ठेके लेने लगा।
पांच-छः साल की अवधि में ही इस्लाम ने अच्छा-खासा काम जमा लिया।
कुछ समय से इस्लाम ने लालगंज और हलिया इलाकों में भी भवन निर्माण के ठेके लेने शुरू कर दिए थे। वहीं उसका परिचय लालगंज थानान्तर्गत तेन्दुआ कलां गाँव के निवासी निजामुद्दीन से हुआ। निजामुद्दीन राजमिस्त्री था और इस्लाम की ठीकेदारी में काम करने आया था, पर हमउम्र और बिरादरी का होने के कारण दोनों में जल्दी ही दोस्ती हो गई। दो-ढ़ाई साल के साथ में ही इस्लाम का निजामुद्दीन पर इतना विश्वास जम गया कि उस इलाके में हो रहे काम-काज के देख-रेख की पूरी जिम्मेदारी उसी को सौंप दी थी।
मृतक  इस्लाम 
लेकिन निजामुद्दीन ने इस छूट का नाजायज फायदा उठाया और दूसरे कारीगरों एवं मजदूरों से इस तरह व्यवहार करने लगा जैसे वही ठेकदार हो। इस्लाम शुरू-शुरू में आदतन कभी-कभी आकर काम की रफ्तार देख कर जरूरी हिदायतें दे जाता था, पर निजामुद्दीन पर विश्वास जमा होने के कारण धीरे-धीरे उसने वहाँ आना कम कर दिया और दूसरी जगह हो रहे कामों पर ज्यादा ध्यान देने लगा। उसका आवागमन एकदम कम हो जाने के कारण वहाँ काम कर रहे सब कारीगर और मजदूर भी सोचने लगे कि शायद इस्लाम ने ठेका छोड़ दिया है, इसलिए अब वे निजामुद्दीन को ही ठेकेदार समझकर उसे खुश रखने की कोशिश करने लगे।
राज-मिस्त्री के साथ काम करने वालों में मर्द भी थे और औरतें भी। उन्हीं में एक युवती सविता भी थी। कोल परिवार की तीखे, नाक-नक्शवाली सविता तेंदुआ कला की रहने वाली थी। डेढ़-दो साल पहले मां-बाप ने पड़ोस के गाँव में रहने वाले बिरादरी के ही एक युवक के साथ उसकी शादी करके विदा भी कर दिया था, लेकिन सविता का पति दिमागी रूप से कुछ कमजोर था, इसलिए सविता को रास नहीं आया और वह छः महीने के अन्दर ही उससे नाता तोड़कर मायके लौट आयी। फिर मां-बाप के बहुत समझाने-बुझाने और डांटने-डपटने के बावजूद सविता ससुराल नहीं गई और किसी का एहसान न सहना पड़े। इसका अच्छा-सा उपाय सोच लिया। उन्हीं दिनों इस्लाम ठेकेदार कलुआ गाँव में भी ठेका लेकर एक मकान बनवा रहा था। वहाँ भी काम की देख-रेख निजामुद्दीन ही करता था। सविता वहीं जाकर मजदूरी करने लगी।
निजामुद्दीन शादीशुदा और बाल-बच्चेदार था, फिर भी शादी के बाद छः महीने के अन्दर ही पति को छोड़ आई सविता का उमड़ता यौवन देखकर उसका मन मचल उठा और उसका उपभोग करने के लिए वह बेचैन रहने लगा। लेकिन विपरीत धर्म का होने के कारण यह काम आसान नहीं था, इसलिए किसी तरह मन पर काबू करके वह बड़ी तिकड़म से चारा फेंकने लगा।
वैसे तो निजामुद्दीन रोज की दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूरों के साथ बड़ी सख्ती से पेश आता था और किसी को भी काम में कोताही करते देख लेता तुरन्त दस बात सुना देता, लेकिन सविता के साथ वह बड़े अपनेपन का व्यवहापर करता। कभी वह सुस्ताने बैठ जाती तब भी निजामुद्दीन हंसकर कहता, “थक गई क्या! लेकिन थोड़ा हमारे ऊपर भी रहम करों... जानती तो हो कि अभी देखा-देखी दूसरों को भी थकान लग जायेगी.... ” फिर फुसफुसा देता, “मैं तुम्हें सुस्ताने से नहीं मना कर रहा हूँ, पर एकदम से मत बैठो..... ज्यादा बोझ मत उठाओं, लेकिन धीरे-धीरे चलती-फिरती दिखाई पड़ती रहोगी तो किसी को बोलने का मौका नहीं मिलेगा.....” नागा का तो कोई हिसाब ही नहीं था! सविता को जब मान होता, छुट्टी कर लेती लेकिन निजामुद्दीन उसे रिझाने के लिए कभी एक भी पैसा नहीं काटता था। ऊपर से उसकी तारीफ ही करता रहता। साथ ही मौके-बेमौके यह भी सहेज देता कि हिसाब-किताब तो होता ही रहता है, लेकिन उसे तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं है। जब भी कोई कमी महसूस हो, फौरन उससे कह दे!
फिर एक दिन निजामुद्दीन मतलब की बात पर आ गया। घुमा-फिराकर कहने लगा, “अभी तेरी उम्र ही कितनी है, सविता! इसके अलावा सिर्फ कमाने-खाने से ही तो जिन्दगी नहीं बीत जाती न! सुख-दुख में अपना कहने वाला कोई न हो तो..... तू दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेती.... ”
“ना बाबा, ना! ” सविता ने छूटते ही सिर हिला दिया, “एक बार शादी करके धोखा खा चुकी हूँ! अब फिर वही पचड़ा मोल लेने का मन नहीं है! ”
“हर मामले में मन की बात नहीं मानी जा सकती..... ”
“मन को मारना भी नहीं चाहिए..... ”
निजामुद्दीन का हौंसला बढ़ गया। बात खींचता हुआ बोला, “खूब अच्छी तरह दूर तक की सोचकर तब कुछ तय करना चाहिए! तू यह तो जानती ही है कि किसी के माँ-बाप सब दिन साथ देने के लिए तो बैठे नहीं रहते...... ”
“माँ-बाप को मेरी चिन्ता होती तो पागल के साथ थोड़े ही ब्याह देते... ”
“उन्होंने जान-बूझकर थोड़े ही तुझे कुंए में झोका! ”
“ठीक से पता लगाया होता तो इतने बड़ी बात छिपी थोड़े ही रह जाती! ” सविता ने उपेक्षा से सिर झटक दिया, फिर किसी के भरोसे थोड़े ही हूँ। मेहनत-मजदूरी करके कमाती हूँ तब खाती हूँ .... ”
“वह तो मैं देख ही रहा हूँ..... लेकिन जिन्दगी बहुत लम्बी होती है, सविता! अच्छे-बुरे दस तरह के मौके आते हैं.... इतने लम्बे सफर में वक्त-बेवक्त हाथ पकड़कर चलने के लिए किसी का साथ हो तो जिन्दगी मजे से कट जाती है। सोच भला- अभी तो तेरे हाथ-पांव चल रहे हैं..... फिर माँ-बाप भी हैं, लेकिन उनके बाद... कभी हारी-बीमारी में एक लोटा पानी पूछने वाला कोई तो होना ही चाहिए.... इसीलिए कह रहा हूँ कि जो होनी थी, सो हो गई, अब पिछली बातें भूलकर तू दूसरी शादी कर लें...... ”
“और कहीं फिर कोई पागल-सरेख मिल गया तो..... ”
निजामुद्दीन हंस पड़ा, “यह तो मैं गारंटी के साथ कह सकता हूँ कि तेरी किस्मत इतनी खोटी नहीं है। क्या दुनिया में सब पागल ही भरे हैं! पहले अच्छी तरह देख-समझ लें..... जब तेरा मन राजी हो जाए तब शादी कर।”
अभियुक्त निजामुद्दीन व उसका साथी ताजू
“हूँ..... ” सविता हुंकारी भर कर कुछ सोचने लगी।
“अच्छा एक मोटी-सी बात बता...... ” निजामुद्दीन ने इधर-उधर ताककर फुसफुसाते हुए पूछा, “मैं तुझे कैसा लगता हूँ..... ”
“तुम...... क्या मतलब? ”
“मतलब.... क्या मैं पागल लगता हूँ? ”
“तुम क्यों पागल लगोगे? ” सविता हंस पड़ी, “अच्छी-भली ठेकेदारी कर रहे हो.... इतने लोग तुम्हारी मातहती में काम करते हैं...... सबका भुगतान करने के बाद भी हजारों रूपये कमा रहे होगे..... ऐसे आदमी को तो कोई पागल ही पागल कहेगा..... ”
“अब अगर मैं ही तुम्हारे साथ शादी करने की बात करूं तो..... ”
“क्या-ऽ-ऽ-ऽ..... ” निजामुद्दीन का व्यवहार देखते-देखते उसकी बातों से यह तो समझ में आ गया था कि उसके मन में कुछ है, पर वह एकदम शादी करने की बात कहने लगा तो सविता का चौंकना स्वाभाविक था। हंस कर कहने लगी, “यही जरूर पागलपन की बात होगी, क्योंकि मैं जानती हूँ कि तुम शादी-शुदा और बाल-बच्चेदार हो! ”
निजामुद्दीन ने तपाक से बात बनाई, “शादीशुदा होने की बात याद दिला कर तुमने तो मेरे जले पर नमक छिड़क दिया, सविता..... ”
“क्यों.... क्या हुआ”
“अरे, ऐसा शादी-शुदा होने से तो अच्छा होता कि मैं जिन्दगी-भर कुंवारा ही रहता... ”
“क्यों? घरवाली मन की नहीं मिली क्या? ”
“ऐसी घरवाली से तो अच्छा होता कि मौत आ गई होती... सूरत-शक्ल से तो माशा अल्लाह है ही, जबान भी इतनी जहरीली है कि बोलती है तो लगता है जैसे नागिन फुफकार रही हो! कुछ दिन और उसके साथ गुजारना पड़ा तो पक्का समझो कि मैं कभी खुदकुशी कर लूंगा.... ”
उस समय शाम हो चली थी। काम खत्म करके कुछ और कारीगर-मजदूर आ गए तो बात बीच ही में रूक गई, लेकिन एक बार मुंह खुल गया तो निजामुद्दीन ने मामले को ठण्डा नहीं पड़ने दिया और जब-न-तब मौका पाते ही सविता से छेड़-छाड़ करने लगता। फिर भी कई दिन तक सविता हंसी-हंसी में ही टालती रही तो एक दिन निजाम ने फैसला करने की ठान ली। उस रोज शाम को कारीगर-मजूदर काम खत्म करके जाने लगे तो निजामुद्दीन ने जान-बूझ कर हिसाब करने के बहाने सविता को अटका लिया। आखिर एकान्त मिलते ही वह सविता का हाथ पकड़ कर कहने लगा, “तुमने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया, सविता.... ”
“किस बात का? ”
“इतनी जल्दी भूल गई? ” निजाम ने खिन्नता में जोर से सांस लेकर कहा, “शायद मैं ही बदनसीब हूँ, वरना...... तुम्हारे बारे में सब कुछ जानता-समझता था..... फिर तुम पहली ही नजर में मन को भा गई थी, इसीलिए बड़ी उम्मीद से तुम्हारे सामने बात रखी थी..... सोचा था कि तुम मान जाओगी तो मुझे भी आदमी की तरह हंसी-खुशी जीने का मौका मिल जायेगा! बीबी की जली-कटी से तो जान बचेगी ही दोनों जून तुम्हारे हाथ की बनी रोटी खाने को मिलने लगेगी, पर.... ”
सविता चुप बैठी ताकती रही जैसे आँखों ही आँखों में तोल रही हो!
सविता को चुप देख कर निजामुद्दीन बेचैनी से गिड़गिड़ा उठा, “इस तरह क्यों ताक रही हो? कुछ तो बोलों...... यकीन करो सविता, मैं तुमको बहुत चाहता हूँ! तुम्हें पाने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ...... देख, लेना, तुम्हारे आगे मैं खुशियों का ढेर लगा दूँगा..... ”
“तब भी मैं रखैल बन कर नहीं रहूँगी, ठेकेदार..... ”
“तुम्हें रखैल बनाने को कौन कह रहा है, सविता! ” निजाम चहककर जोश से बोला, “मैं तो शादी करने की बात कर रहा हूँ..... ”
“एक बीबी के रहते...... मैं जानती हूँ कि तुम लोगों में चार-चार बीबियां तक रखने रिवाज है, पर मुझसे सौतिया डाह नहीं सहा जायेगा, बाबा........ ”
“तुम बिना मतलब उसकी फिक्र कर रही हो, मैं तो कहता हूँ कि शहर चलो, वहाँ कचहरी में सरकारी स्टैम्प पेपर पर शादी की लिखा-पढ़ी होगी ! एकदम पक्का काम तुम्हारा सहारा मिलते ही मैं अलग घर ले लूंगा जहाँ सिर्फ हम दोनों रहेंगे! उसे तलाक देकर हमेशा-हमेशा के लिए अपनी जिन्दगी से दूर कर दूँगा..... ”
आखिर निजामुद्दीन के झांसे में आकर एक दिन सविता उसके साथ शहर चली गई, लेकिन वादे के मुताबिक निजामुद्दीन ने कोर्ट मैरिज करने के बजाए दिखावे के लिए स्टैम्प पेपर लेकर शादी का फर्जी इकरारनामा बनवा लिया, इसके बाद एक कमरा लेकर दोनों पति-पत्नी की तरह रहने लगे। निजामुद्दीन ने पहली बीबी को तलाक भी नहीं दिया। इसके बजाए उसने एक बहाना जरूर गढ़ लिया कि काम बहुत पिछड़ गया है और लोग जल्दी काम खत्म करने के लिए दबाव डाल रहे हैं, इसलिए ठेकेदार ने कुछ जगहों पर रात में भी काम करने को कहा है और खुद भी सिर पर सवार रहता है। इस बहाने वह घर से गायब रहकर मजे से सविता के साथ रात भर रहकर मनचाही पूरी करने लगा। लेकिन बीबी को कुछ शक न हो, इसलिए बीच-बीच में यही बहाना सविता से करके दो-चार राते घर जाकर बीबी के साथ भी काट आता था।
लेकिन सविता आए दिन तलाक के बारे में पूछने लगी तब मामला गड़बड़ हो गया। शुरू-शुरू में निजामुद्दीन इधर-उधर की बातें करके टाल-मटोल करता रहा, पर सविता तो जेसे हाथ धोकर पीछे पड़ गई। तब तक निजामुद्दीन का मन भी उससे भर चुका था, इसलिए उसने काम के ही बहाने सविता से कटना शुरू कर दिया। इससे सविता के मन में शक का अंकुर फूट पड़ा और वह लड़ने-झगड़ने लगी तो निजामुद्दीन ने उसके साथ रहना ही कम कर दिया। कभी-कभी खाने-खर्चे के लिए कुछ रूपये-पैसे देने आ जाता, लेकिन सविता के झगड़ों से घबरा कर उसने धीरे-धीरे आना एकदम बन्द कर दिया।
सुभान
जली-भुनी सविता कुछ दिन इन्तजार करती रही, लेकिन भूखों मरने की नौबत आ गई तो गुस्से में बिलबिलाई हुई एक दिन पूछताछ करती हुई निजामुद्दीन के घर पहुँच गई तब सबको पता चला कि निजामुद्दीन ने चोरी-चोरी एक और शादी कर ली है और रात में भी ठेके पर काम करने के बहाने वह सविता के साथ रंगरेलियां मनाया करता था। भेद खुलने के बाद मामला जटिल हो गया। अभी तक सविता ही लड़ा-झगड़ा करती थी, अब बीबी भी बिफरने लगी। दो पाटों के बीच पिसने के कारण निजामुद्दीन का जीना मुहाल हो गया। न बीबी उसकी सुनती, न सविता पीछा छोड़ने को तैयार थी। वह आए दिन उसके घर पहुँचकर हड़कम्प मचाने लगी।
निजामुद्दीन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें और क्या नहीं। बौखलाहट में काम में भी कोताही होने लगी तो ठेकेदार इस्लाम ने भी टोकना शुरू कर दिया। आखिर टूटकर एक दिन निजामुद्दीन ने सब कुछ बता कर गिड़गिड़ाने लगा, “मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई, इस्लाम भाई! अब तुम्हारा ही सहारा है...... छुटकारे का कोई उपाय बताओं, वरना मैं खुदकुशी कर लूंगा..... ”
इस्लाम पहले तो निजामुद्दीन की हरकत के लिए उसे झिड़कता रहा, लेकिन दोस्त था इसलिए दोस्ती भी निभाई। सोच-विचार कर कहने लगा, “मेरा एक चचेरा भाई है- सुभान, गाजीपुर में काम-धन्धे से भी लगा है। उसकी बीबी हमेशा बीमार रहती है.... चाहों तो मैं सविता की शादी सुभान के साथ...... ”
निजामुद्दीन को मुंहमांगी मुराद मिल गई! वह गिड़गिड़ा उठा, “मैं तुम्हारा यह अहसान जिन्दगीभर नहीं भूलूँगा, इस्लाम भाई..... ”
आखिर इस्लाम ने सविता और सुभान के घरवालों से बात करके उनकी रजामंदी से दोनों की शादी करवा दी। इसके बाद इस्लाम के कहने पर सुभान भी मीरजापुर चला आया और बरौंधा गाँव में घर लेकर सविता के साथ रहने लगा। इस्लाम ने उसे अपने ठेके में ही काम दे दिया था। दो-दो जन की ठोकरे खाई सविता को सुभान और उसके भाई से निश्छल अपनापन मिला तो वह भी पिछली बातों को भूलकर अपनी गृहस्थी संजोने लगी।
लेकिन निजामुद्दीन सविता को नहीं भूला। सिर से बला टलते ही उसके मन में फिर शैतान जाग उठा और सविता के साथ मनाई गई रंगरेलियां याद आने लगीं तो बेचैन होकर वह एक दिन बरौधा पहुँच गया और सविता के साथ फिर सम्बन्ध बनाने की कोशिश करने लगा, पर एकाएक सुभान के आ जाने के कारण वह बातें बनाता हुआ तुरन्त रफूचक्कर हो गया।
दूसरे दिन सुभान ने सारी बात इस्लाम को बताई तो वह तुरन्त जाकर निजामुद्दीन की लानत-मलामत करने लगा। घबराकर निजामुद्दीन सफाई देने लगा, “तुम गलत मत समझो इस्लाम भाई.... मैं..... मैं बस यूँ ही सविता का हाल पूछने चला गया था.... ”
“आइन्दा कभी भूलकर भी उसकी ओर नजर मत उठाना! ” इस्लाम ने फटकारते हुए कहा, “कान खोल कर सुन लो, सविता अब हमारे घर की इज्जत है! अगर फिर कभी ऐसी हरकत की तो मैं तुरन्त तुम्हारे खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करवा दूँगा.... ”
इंस्पेक्टर बी0के0 सिंह
“नहीं-नहीं, इस्लाम भाई.... तुम ऐसी बात भूलकर भी दिल में मत लाना..... ईमान से कहता हूँ ..... तुमने मेरी इतनी मदद की है कि जिन्दगी भर तुम्हारा अहसान नहीं भूल सकता... ”
लेकिन सच यह था कि अहसान मानना तो दूर रहा, इस्लाम की धमकी सुनकर निजामुद्दीन भीतर-ही-भीतर सुलग उठा और उसे किसी भी तरह अपने रास्ते से हटाने की सोचने लगा। पूरी योजना बनाकर निजामुद्दीन ने इस्लाम को सन्देश दिया कि कोल्हुआ लालगंज में हो रहे काम के सिलसिल में कुछ जरूरी बात करनी है, इसलिए एक बार जल्दी से जल्दी आ जाऐ.....
3 मई को इस्लाम मोटर साइकिल से कोल्हुआ आया तो वहाँ काम निपटने बाद निजामुद्दीन कहने लगा, “टउंआ में भी कुछ झंझट है इसलिए लगे हाथ वहाँ भी चलकर समझ लो नहीं तो काम रूक जाएगा.... ”
दोपहर बाद करीब दो बजे दोनों मोटर साइकिल से टउंआ के लिए रवाना हुए। रास्ते में एक जगह रूककर दोनों ने शराब भी पी। निजामुद्दीन बड़ी होशियारी से खुद तो कम पी रहा था, लेकिन इस्लाम को उसने जान-बूझकर ज्यादा पिला दी थी। इसके बाद दोनों आगे चले। नशे में होने के बावजूद मोटर साइकिल इस्लाम ही चला रहा था, निजामुद्दीन उसके पीछे बैठा सही मौके का इंतजार कर रहा था। आखिर टउंआ के जंगल में थोड़ी दूर जाते ही निजामुद्दीन ने सन्नाटा देखकर इस्लाम पर छूरे से भरपूर वार कर दिया और मोटर साइकिल गिरने के पहले ही नीचे कूद पड़ा। घायल इस्लाम तड़प कर जमीन पर गिर पड़ा, लेकिन नशे में होने के कारण विरोध नहीं कर पाया और इस्लाम ने देखते-ही-देखते उसको बुरी तरह गोद डाला।
आखिर खून से लथपथ इस्लाम ढेर हो गया, तब निजामुद्दीन उसकी लाश वही छिपाकर अपने घर चला आया। यहाँ उसने अपने एक साथी ताजू को राजदार बनाकर इस्लाम की लाश को ठिकाने लगाने में साथ देने के लिए तैयार कर लिया। इसके बाद कुल्हाड़ी और बोरा आदि लेकर निजामुद्दीन ताजू के साथ फिर टउंआ के जंगल में पहुँचा। उस समय रात के आठ-नौ बज रहे होंगे। समूची लाश बोरे में नहीं भरी जा सकती थी, इसलिए उसके पैरों को काटकर अलग कर दिया गया। बाकी धड़ को बोरे में डालने के बाद जैसे-तैसे दोनों टांगें भी ठूंसकर बोरे का मुंह सुतली से सिल दिया।
सारा काम निपटाकर लाश से भरे बोरे को इस्लाम की ही मोटरसाइकिल पर लादा गया। ताजू बोरे को सम्हालने के लिए पीछे बैठ गया तब निजामुद्दीन ने मोटर साइकिल स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी। उस समय तक काफी रात हो चुकी थी इसलिए चारों ओर गहरा सन्नाटा छाया हुआ था। इस मौके का फायदा उठाकर सिरसी गहरवार गाँव के पास लाश से भरा बोरा मोटर साइकिल से नीचे धकेल कर दोनों रफू चक्कर हो गये।
सब कुछ एकदम गुपचुप ढंग से निपट गया था, लेकिन एक कहावत है कि पाप कितना भी छिपा किया जाए, उजागर हो ही जाता है। एक छोटे से सूत्र के सहारे निजामुद्दीन को पकड़कर पुलिस ने सब कुछ उगलवा लिया। इसके बाद 7 मई को ताजू को पकड़ा गया तो उसने भी रोते-सिसकते हुए इस्लाम की लाश को ठिकाने लगाने में निजामुद्दीन का साथ देने की बात स्वीकार कर ली। दोनों अभियुक्तों की शिनाख्त पर पुलिस ने वारदात में इस्तेमाल किये गये छुरे और कुल्हाड़ी के अलावा इस्लाम की मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली। फिलहाल मुकदमा अदालत में विचाराधीन है। कथा लिखे जाने तक दोनों आरोपी जेल की सलाखों के पीछे है।
(प्रस्तुत सत्यकथा पुलिस द्वारा दिये गये तथ्यों, घटनास्थल से ली गयी जानकारी एवं मीडिया सूत्रों पर आधारित है।)

“बेवफा तूने ये क्या किया”

“बेवफा प्रेमी के जाल में फंसी प्रेमिका को मिली मौत”
प्रतिक चित्र
उस दिन रात के दस बज रहे थे। उड़ीसा में कटक कोतवाली के थाना प्रभारी एस0के0 पाणी रात्रि गश्त के लिये निकल रहे थे। सब इंसपेक्टर माधव चौधरी उनके साथ जाने के लिए उठे ही थे कि टेलीफोन की घंटी बज उठी, “हैलो, थाना कोतवाली से सब इंसपेक्टर माधव चौधरी स्पीकिंग।”
“जल्दी आईये सर। एक कार नंन्दिनी को कुचलकर भाग गई है।” दूसरी ओर से हड़बड़ाया स्वर...., “अंधेरे में मैं उस कार का नम्बर नहीं देख सका, लेकिन....”
“कौन नन्दिनी और आप कहाँ से बोल रहे हैं ?” सब इंसपेक्टर माधव चौधरी ने सवाल किया तो दूसरी और से बताया गया, “हाइवे पांच के पास लिंक रोड पर मोहन्ती मिल्क फूड प्रोडक्ट्स की बगल वाली सड़क पर ही यह एक्सीडैंट हुआ है।”
“आप कौन बोल रहे हैं ?”
फोन करने वाले ने कुछ कहा अवश्य लेकिन माधव चौधरी को साफ सुनाई नहीं दिया। क्योंकि उसी समय रिसीवर में एक अजीब सी थरथराहट गूंज उठी, इसके बाद टेलीफोन कट गया।
सब इंसपेक्टर माधव चौधरी ने बाहर आकर यह खबर इंसपेक्टर एस0के0 पाणी को दी तो उन्होंने जीप में बैठते ही ड्राइवर को आदेश दिया, “ठीक है, पहले घटनास्थल चलो।”
कोतवाली प्रभारी श्री पाणी दलबल के साथ मोहन्ती फूड प्रोडक्ट्स के पास पहुँचे तो हाइवे नम्बर पाँच पर वाहनों का आवागमन बना हुआ था, लेकिन आसपास के इलाकों में रात का सन्नाटा छाया हुआ था। पुलिस दल फोन पर मिली सूचना के अनुसार मोहन्ती फूड प्रोडक्ट्स बिल्डिंग के बगल वाली सड़क पर घूमी ही थी कि इंसपेक्टर पाणी चौक पड़े। इस इमारत के चारों कोनों पर तेज प्रकाश वाली फ्लड लाइट लगी हुई थी, जिनकी जगमगाती रोशनी में थोड़ी दूर पर ही सड़क के बाएं किनारे पर एक लाश पड़ी हुई थी। नजदीक पहुँचकर देखा तो म्रृतका 22-23 साल की युवती थी। वेषभूषा से सहज ही यह भी अनुमान हो गया कि वह सुशिक्षित और किसी सम्भ्रान्त परिवार की सदस्या रही होगी।
इंसपेक्टर पाणी और उनके दल ने देखा कि म्रृतका का आधा शरीर सड़क पर था और आधा सड़क से नीचे धूल भरी कच्ची पटरी पर। दुर्घटना करने वाली कार उसके सीने और टांगों के ऊपर से निकलकर गई थी, जिससे साफ जाहिर था कि कार का बायां पहिया सड़क के नीचे पटरी पर था। उन्होंने दिमाग लगाया। इसके दो कारण हो सकते है, या तो किसी गाड़ी को पास देने के लिए कार जरूरत से ज्यादा बाएं आ गई या फिर कार चालक ने इस लड़की को कुचलने के उद्देश्य से ही सड़क से नीचे उतरी थी।
अब सवाल यह था कि कार अगर किसी गाड़ी को पास देने के लिए किनारे आई होती तो यह दुर्घटना उस गाड़ी के चालक ने भी देखी होती और संभवतः वह इसकी खबर पुलिस को देता। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो दूसरा मतलब है युवती की सुनियोजित हत्या है।
“सर...” एकाएक सब इसंपेक्टर माधव चौधरी ने कहा, “फोन करने वाले ने तो बताया था कि वह अंधेरे के कारण दुर्घटना करने वाली कार का नम्बर नहीं पढ़ पाया, जबकि यहाँ तेज रोशनी है। कहीं इसमें कोई चाल तो नहीं है?”
“ऐसा ही लग रहा है।” इंसपेक्टर पाणी ने सिर हिलाते हुए कहा, “आस-पास के लोगों से पूछो कि थोड़ी देर पहले बिजली गोल तो नहीं हुई थी।”
मृतका नन्दिनी
पूछताछ करने पर मालूम चला कि शाम से एक क्षण को भी बिजली नहीं गई थी। सब इंसपेक्टर माधव चौधरी ने खुश होकर कहा, “देख लिया न सर... जरूर फोन करने के पीछे किसी की चाल है।”
“हूँ... फोन करने वाले ने क्या कहा था चौधरी ? जरा एक-एक शब्द याद करने की कोशिश करो?”
“मुझे अच्छी तरह याद है सर। मेरे फोन उठाते ही उसने कहा था, जल्दी आईये, एक कार नन्दिनी को कुचलकर भाग गई है।”
“इसका मतलब फोनकर्ता म्रृतका को पहचानता है?”
“राइट सर।” चौधरी ने सहमति जाहिर की।
कुछ सोचते हुए इंसपेक्टर पाणी बोले, “तुम एक काम करो चौधरी, कन्ट्रोल रूम से यह पूछो किसी थाने में नन्दिनी नाम से या किसी अन्य नाम की युवती की गुमषुदगी की रिपोर्ट तो दर्ज नहीं है।”
सब इंसपेक्टर माधव चौधरी ने तुरन्त अपने मोबाइल से कन्ट्रोल रूम से सम्पर्क किया, लेकिन कोई काम की जानकारी नहीं मिल सकी। इस बीच आस-पड़ोस के काफी लोग जमा हो गये थे। इंसपेक्टर पाणी ने पंचनामा भरकर शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजकर मृतका के पर्स की तलाशी ली तो अंग्रेजी दवा की दुकान का एक कैशमेमो मिल गई, जिस पर नन्दिनी का नाम और पता लिखा हुआ था... 17, आचार्य विहार।
इंसपेक्टर एस0के0 पाणी दल-बल के साथ 17, आचार्य बिहार पहुँचे तो उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि पूरी कालोनी में सोता पड़ जाने के बावजूद उस घर के लोग अभी तक जाग रहे थे। पुलिस वालों को देखते ही घर के मालिक केशवदास के चेहरे पर हवाइंया उड़ने लगी। उन्होंने घबराई आवाज में कहा, “मैं थाने ही आने की सोच रहा था सर... मेरी बेटी का दोपहर तीन बजे से कोई पता नहीं है। मैं चारों ओर खोज-खोजकर हार गया।”
“आपकी बेटी का क्या नाम है? इंसपेक्टर पाणी ने पूछा, “उसका कोई फोटो तो होगा?”
“हां-हां, क्यों नहीं। केशवदास लपककर अन्दर से एलबम उठा लाए और एक फोटो निकालकर दिखाते हुए कहा, “यह मेरी बेटी नन्दिनी है साहब.... मैं रिपोर्ट दर्ज कराने थाने आ रहा था कि आप लोग इतनी रात में कुशल तो है साहब?”
“साँरी मिस्टर केशवदास।“ पाणी ने फोटो देखते हुए भारी स्वर में कहा, “मुझे बड़े अफसोस के साथ बताना पड़ रहा है कि आपकी बेटी अब इस दुनिया में नहीं है।“
“क्या.....?“ केशवदास हक्के-बक्के रह गये।
“धैर्य रखिए मिस्टर दास, हाइवे नम्बर पाँच के लिंक रोड पर मोहन्ती मिल्क फूड प्रोडक्ट्स के बगल वाली सड़क पर किसी कार ने उसे कुचल दिया। हमने लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी है। आप चलकर शिनाख्त कर लें तो हम जांच आगे बढ़ाएं।”
पोस्टमार्टम हाउस में बेटी की लाश देखते ही केशवदास हाहाकार कर उठे। इंसपेक्टर एस0के0 पाणी बड़ी मुश्किल से उन्हें धैर्य बंधाकर पूछताछ करने लगे
केशवदास ने बताया, “नन्दिनी की शादी तय हो चुकी थी। मेरा होने वाला दामाद सुरेश बरूआ आज दोपहर घर आया था। खाने पीने के बाद मेरी पत्नी ने बताया कि नन्दिनी सुरेश के साथ मिलकर फिल्म देखने जा रही है। घर से निकलने के लगभग घण्टा भर बाद नन्दिनी अकेले लौट आई थी। वे दोनों फिल्म देखने का विचार छोड़कर शापिंग करने लगे थे। नन्दिनी ने दो साडि़यां खरीदी थी। उन्हें घर रखकर तुरन्त ही वह फिर बाहर चली गयी थी। हम समझ रहे थे कि वह सुरेश के ही साथ होगी, लेकिन फोन करने पर सुरेश ने बताया कि नन्दिनी तो शापिंग करके घण्टा भर बाद ही लौट गई थी। इसके बाद मैंने उसकी सहेलियों इत्यादि के यहां पता लगाया पर कुछ पता नहीं चला। आखिर चारों ओर से निराश होकर रिपोर्ट के लिए थाने आने की सोच ही रहा था कि आप लोग पहुँच गए। हमारे ऊपर तो वज्रपात हो गया इंसपेक्टर साहब। नन्दिनी हमारी इकलौती बेटी थी। उसकी मौत ने मुझे और मेरी पत्नी को बुरी तरह तोड़ दिया है। हमारे जीने का सहारा ही खत्म हो गया। एक डेड़ महीने बाद ही उसकी शादी होने वाली थी।”
इंसपेक्टर पाणी ने कुछ सोचते हुए पूछा, “सुरेश बरूआ कहां रहता है?”
“लक्ष्मी नगर में।”
अभियुक्त सुरेश बरूआ
सुरेश का पूरा पता नोट करके इंसपेक्टर पाणी ने केशवदास का कंधा थपथपाते हुए कहा, “जो होना था, हो चुका, लेकिन आप विश्वास रखिए हम असलियत का पता लगाकर रहेंगे। हमें शक है कि नन्दिनी की मौत दुर्घटना नहीं, बल्कि जान बूझकर की गई हत्या है। अगर यह सच हुआ तो अपराधी को सजा दिलाए बगैर मैं चैन से नहीं बैठूंगा।”
पोस्टमार्टम के बाद नन्दिनी का शव केशवदास को सौंप दिया गया, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखते ही इंसपेक्टर एस0 के0 पाणी चैंक पड़े। पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा था कि नन्दिनी की मृत्यु दम घुटने से हुई है। मौत का समय अनुमानतः 6 घण्टे पूर्व 3 से 4 बजे के बीच रहा होगा। मृतका की गर्दन पर रस्सी ऐंठने के निशान मिले थे, जिससे सिद्ध होता था कि नन्दिनी का गला घोटकर हत्या की गई है, परिणाम स्वरूप उसकी जुबान बाहर लटक गई थी। डाक्टर ने बातचीत के दौरान यह भी बताया कि मृतका के गालों पर आंसू के निशान थे, जैसे मरने से पूर्व वह रोई हो, लेकिन सबसे चैंकाने वाला तथ्य यह उजागर हुआ कि नन्दिनी मृत्यु के समय लगभग 4 माह से गर्भवती थी।
इंसपेक्टर एस0के0 पाणी ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार अज्ञात अभियुक्त के विरूद्ध नन्दिनी के साथ यौनाचार, हत्या और सबूत नष्ट करने के आरोप में भारतीय दण्ड विधान की धारा 376, 302, 120 बी व 34 के अन्तर्गत मामला दर्ज करके, जांच कार्य अपने हाथ में ले लिया।

नन्दिनी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट सुनकर केशवदास को एकाएक विश्वास नहीं हुआ। वह जोर से सिर हिलाते हुए बोले, “ऐसा नहीं हो सकता इंसपेक्टर साहब? मेरी बेटी ऐसी नहीं थी?”
“क्या आपका होने वाला दामाद अक्सर यहां आता था?” इंसपेक्टर एस0के0 पाणी ने पूछा।
“जी हां, पुराने ख्यालात का होते हुए भी मैंने बच्चों की खुशी के लिए उन्हें मिलने-जुलने की छूट दे रखी थी।”
“क्या ऐसा नहीं हो सकता कि नन्दिनी के गर्भ में सुरेश का ही बच्चा हो?”
“सुरेश इतना गिरा हुआ नहीं हो सकता इंसपेक्टर साहब। आप उससे मिलोगे तो खुद महसूस करोगे कि वह सुसंस्कृत और जिम्मेदार लड़का है। एक-डेढ़ महीने बाद उन दोनों की शादी होने वाली थी, फिर वह ऐसी गलती क्यों करेगा, जो बदनामी का कारण बने।”
“कहीं न कहीं तो गड़बड़ी है ही।” इंसपेक्टर पाणी ने उठते हुए कहा, “फिलहाल मैं चलता हूँ।”
जिस समय इंसपेक्टर एस0के0 पाणी और सब इंसपेक्टर माधव चौधरी सुरेश बरूआ के आवास लक्ष्मी नगर पहुँचे तो वह कहीं जाने के लिए तैयार हो रहा था। इंसपेक्टर को देखते ही पूछा, “क्या हुआ इंसपेक्टर साहब? नन्दिनी के पिता जी बता रहे थे कि शायद उसकी हत्या की गई है... कुछ पता चला किसने हत्या की है?”
“अभी तो मामला उलझता ही जा रहा है।” इंसपेक्टर पाणी इधर-उधर ताकते हुए कहा, “मैं आपसे कुछ जानकारियां चाहता हूँ। आप कहीं जाने की तैयारी में हैं क्या?”
“कोई बात नहीं, मैं बाद में चला जाऊंगा... आप बैठिए... आइए न...” सुरेश बरूआ ने सबको अन्दर ले जाकर ड्राइंग रूम में बैठाते हुए बोला, “पूछिए, क्या जानकारी चाहते हैं?”
“नन्दिनी को आप कब से जानते है?”
“करीब साल भर से... हम दोनों पहली मुलाकात से ही एक दूसरे से प्रेम करने लगे थे। कुछ दिन हम चोरी छुपे मिलते रहे, लेकिन एक दिन नन्दिनी के पिता को हमारे बारे में मालूम चला तो उन्होंने उदारता पूर्वक हमारी शादी को स्वीकृति दे दी। जल्द ही हम दोनों एक हो जाते, परन्तु ईश्वर को शायद यह मंजूर नहीं था।”
“क्या आप दोनों में शारीरिक संबंध भी थे?”
“जी नहीं, नन्दिनी बहुत ही सचरित्र लड़की थी।”
“लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार वह चार माह की गर्भवती थी।”
यह सुनकर सुरेश का चेहरा एकदम तमतमा उठा। उसने क्षुब्ध स्वर में तीव्र विरोध किया, “मैं इस पर किसी कीमत से विश्वास नहीं कर सकता। इतनी सीधी लड़की को मरने के बाद बदनाम मत कीजिए इंसपेक्टर साहब। पोस्टमार्टम वाले डाक्टर को जरूर कोई गलतफहमी हुई है।”
“यह कोई छोटी मोटी बात नहीं है मिस्टर बरूआ।” इंसपेक्टर पाणी उसकी आंखों में झांकते हुए बोले।
“मैं जानता हूँ इंसपेक्टर साहब।” सुरेश तैश में बोला, “लेकिन मैं यह भी जानता हूँ कि ज्यादातर पोस्टमार्टम किस तरह हुआ करते है। बदबू मारती लाशों की ओर डाक्टर आंख उठाकर भी नहीं देखते। जमादार चीड़-फाड़ करके जो कुछ बताता है, उसी के आधार पर रिपोर्ट तैयार कर दी जाती है।”
इंसपेक्टर एस0के0 पाणी ने भारी स्वर में कहा, “पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार नन्दिनी की गर्दन पर रस्सी का निशान मिला है, जिससे तय है कि उसकी हत्या गला दबाकर की गई है। फिर इस मामले को दुर्घटना का रूप देने के लिए नन्दिनी को कार से कुचल दिया गया।”
“तब तो यह क्रूर कर्म पुलिस के लिए चुनौती है, इंसपेक्टर साहब। आप किसी तरह नन्दिनी के.....” सुरेश की बाकी बात तेज गड़गड़ाहट में डूब गई।
पुलिस वालों ने चैक कर देखा सुरेश बरूआ के घर के पास ही रेलवे लाइन थी, जिस पर इस समय कोई मेल ट्रेन घड़घड़ाती हुई जा रही थी। सब इंसपेक्टर माधव चौधरी की आंखें चमक उठी, उन्होंने उठकर बाहर जाते हुए इंसपेक्टर एस0के0 पाणी से कहा, “सर, एक मिनट बाहर आएंगे? एक जरूरी बात याद आ गई।”
इंसपेक्टर पाणी अचकचाए हुए ड्राइंग रूम से बाहर निकले तो सब इंसपेक्टर माधव चौधरी ने फुसफसा कर कहा, “सर, उस रोज रात को जब नन्दिनी के मौत की खबर मिली थी तब फोन पर एकाएक ऐसी ही गड़गड़ाहट गूंज उठी थी मानों एकदम पास से कोई ट्रेने गुजर रही हो। इसके बाद फोन कट गया था।”
“ओह....” इंसपेक्टर पाणी ने तुरन्त ड्राइंग रूम में लौटकर सुरेश से पूछा, “आसपास कहीं टेलीफोन बूथ होगा? मुझे एक जरूरी बात करनी है, मेरा मोबाइल सुबह से खराब है।”
“शौक से कीजिए।” सुरेश बरूआ ने एक कोने की ओर इशारा करते हुए कहा, “मेरे घर में ही टेलीफोन लगा हुआ है।”
“अच्छा रहने दीजिए। मैं खुद ही वहाँ चला जाता हूं, फोन पर कितना बात करूंगा....” इतना कहकर इंसपेक्टर पाणी दल-बल के साथ जीप में आ बैठे। ड्राइवर को चलने का आदेश देते हुए बोले, “अच्छा मिस्टर, बरूआ। मैं आपसे फिर मिलूंगा....”
पुलिस जीप बंगले से बाहर निकली ही थी कि सब इंसपेक्टर माधव चौधरी ने कहा, “क्या हुआ सर? आपने टेलीफोन के बारे में पूछा, फिर बातचीत बीच ही में छोड़कर एकदम चले आए, मैं कुछ समझा नहीं?”
“तुमने बड़ी महत्वपूर्ण जानकारी दी है, चौधरी, लेकिन उस दिशा में आगे बढ़ने के लिए ठोस सबूत की जरूरत है। मुझे पूरी उम्मीद है कि वह भी मिल जाएगा।” फिर ड्राइवर की ओर देखते हुए बोले, “पहले आचार्य विहार में केशवदास के यहाँ चलो।”
एक ही दिन में दोबारा पुलिस वालों को आया देख केशवदास को आश्चर्य हुआ, पर इंसपेक्टर पाणी नीचे नहीं उतरे। जीप में बैठे-बैठे ही उन्होंने पूछा, “दास साहब, क्या सुरेश बरूआ ड्राइविंग जानता है?”
“जी, हां.... उसके पास अपनी कार है, जिसे वह खुद ही चलाता है।”
“धन्यवाद, मुझे इतना ही पूछना था। चलो, ड्राइवर।”
ड्राइवर ने इंजन स्टार्ट करके जीप को सड़क पर दौड़ाते हुए पूछा, “कहाँ चले साहब?”
“सुरेश बरूआ के यहां... लक्ष्मी नगर।”
थोड़ी देर बाद ही पुलिस जीप सुरेश बरूआ के यहां पहुँचकर खड़ी हो गई, सुरेश ने अचकचा कर पूछा, “क्या हुआ इंसपेक्टर साहब?”
“आपको थोड़ी तकलीफ देना चाहता हूँ, बरूआ साहब। अफसरों ने कुछ जरूरी काम सौंप दिए है। थोड़ी देर के लिए अपनी कार दे सकेंगे? बड़ी मेहरबानी होगी।”
“लेकिन मेरे पास ड्राइवर नहीं है।”
“कोई बात नहीं, मैं बहुत अच्छी ड्राइविंग जानता हूं। विश्वास कीजिए, रात 10 बजे तक आपकी गाड़ी सही-सलामत पहुँचा दूंगा।”
सुरेश बरूआ ने तुरन्त ही गैरेज से कार निकाल कर बाहर खड़ी कर दी और चाबी थमाता हुआ बोला, “परेशान होने की जरूरत नहीं है। सुविधापूर्वक सवेरे भिजवा दीजिएगा।”
इंसपेक्टर पाणी ने हंसकर कहा, “हमारे पास गैरेज थोड़े ही है। रात को गाड़ी रखने में परेशानी होगी, इसलिए मैं 10 बजे तक पहुँचा दूंगा। अच्छा चौधरी तुम सारा काम निपटाकर एक बार कोतवाली आ जाना, मैं वहीं तुम्हें फोन करूंगा।”
बात पूरी करते-करते उन्होंने धीरे से बाई आंख दबाकर इशारा किया और कार में बैठकर चलते बने। सब इंसपेक्टर माधव चौधरी उनका मतलब समझ गए। उन्होंने जीप पर बैठकर फुसफुसाते हुए कहा, “दिखावे के लिए गाड़ी को उल्टी ओर घुमा लो, फिर कोतवाली चलना है।”
ड्राइवर ने जीप स्टार्ट करके विपरीत दिशा में दौड़ा दी, लेकिन थोड़ी दूर जाते ही वह कोतवाली के रास्ते पर मुड़ गया। सब इंसपेक्टर चौधरी कोतवाली पहुँचे तो इंसपेक्टर पाणी बेचैन से उनका इंतजार कर रहे थे कार की चाबी थमाते हुए उन्होंने कहा, “सुरेश की गाड़ी तो मैंने हथिया ली, अब सबूत खोजना तुम्हारा काम है। भाग-दौड़ कर किसी भी तरह गाड़ी के पहियों की जांच करवाओ। मुझे पूरा विश्वास है कि उन पर खून का दाग जरूर मिल जाएगा।”
इंसपेक्टर पाणी का संदेह सच निकला। शाम को सब इंसपेक्टर माधव चौधरी लौटे तो दिन भर की थकान के बावजूद उनकी आंखे चमक रही थी। खुशी से चहकते हुए उन्होंने बताया, “कार के पहिए धो दिए गये है, इसके बावजूद पहियों पर खून के दाग मिल गए है। इसके अलावा कार के पेंदे में भी खून के तमाम छींटे पड़े हैं, जिन पर शायद हत्यारे का ध्यान ही नहीं गया।”
“ठीक है। रात 10 बजे मैं सुरेश की कार पहुंचाने जाऊंगा और उससे तुम्हें फोन करने को कहूँगा, उस समय एक और सबूत तुम्हें मिल जाएगा।”
इंसपेक्टर पाणी ने टाइम टेबुल देखकर पता लगा लिया था कि रात लगभग दस बजे सुरेश बरूआ के घर के पास स्थित रेलवे लाइन से चेन्नई से हावड़ा जाने वाली एक डाउन एक्सप्रेस ट्रेन गुजरती है। इसके 10 मिनट पहले ही वह कार लौटाने के बहाने सुरेश बरूआ के यहां पहुँच गए, हांफते हुए कहने लगे, “अभी एक मामला निपटा भी नहीं था कि एक और कांड हो गया। पुलिस की नौकरी में एक मिनट भी चैन नहीं है, मिस्टर बरूआ। जरा कोतवाली फोन करके सब इंसपेक्टर चौधरी से कह दीजिए कि मैं यहां उनका इंतजार कर रहा हूं, जल्दी आएं हाइवे नं0 5 पर बड़ा भयानक एक्सीडेण्ट हो गया है।”
मृतका के पिता केशवदास
बात पूरी करने के साथ ही इंसपेक्टर पाणी सेण्टर टेबल पर कुछ कागज फैलाकर जैसे बड़ी एकाग्रता से उनका अध्ययन करने लगे, पर उनका सारा ध्यान फोन कर रहे सुरेश बरूआ की ओर लगा था। उसी समय रेल लाइन पर घड़घड़ाती हुई चेन्नई हावड़ा एक्सप्रेस गुजर गई, सुरेश बरूआ फोन करके खाली हुआ तो एस0के0 पाणी नन्दिनी के बारे में बातें करने लगे।
थोड़ी देर में तीन चार सिपाहियों के साथ सब इंसपेक्टर चौधरी आ गए। ड्राइंग रूम में घुसते हुए उन्होंने चहक कर कहा, “नन्दिनी के हत्यारे का पता चल गया, सर।”
“क्या?” सुरेश बरूआ चौंक पड़ा, “कौन है उसका हत्यारा?”
“तुम! सुरेश बरूआ, यू आर अण्डर अरेस्ट। अब भलाई इसी में है कि तुम खुद सब कुछ सच-सच बता दो, वरना तुम्हारे खिलाफ सारे सबूत तो हमें मिल ही गए है। अपराधियों से बात उगलवाने के और भी तरीके पुलिस वाले अच्छी तरह जानते हैं।”
पलक झपकते ही सुरेश बरूआ का चेहरा राख हो गया। शायद उसने इंसपेक्टर एस0के0 पाणी द्वारा बिछाए गए ताने-बाने को अच्छी तरह समझ लिया था, इसलिए एक बार भी ना-नुकुर करने की कोशिश नहीं की और निमिश मात्र में सारा आरोप स्वीकार कर लिया। दरअसल वह मनचले स्वभाव का युवक था। कुसंगति में पड़कर बहुत कम उम्र में ही शराब और लड़कियाँ उसकी कमजोरी बन गई थी। इन शौकों को पूरा करने के लिए घर वालों से पर्याप्त पैसे न मिल पाने के कारण सुरेश बरूआ छोटे-मोटे अपराध भी करने लगा था, लेकिन उससे उसका मन न भरता। वह बड़े ऐशो-आराम की जिन्दगी जीना चाहता था। अपनी अय्याशी को पूरा करने के चक्कर में उसने पहले नन्दिनी को फांसकर उसका शरीर हासिल किया। जब मन भर गया तो पीछा छुड़ाने के लिए उसकी हत्या कर दुर्घटना का रूप देने की पुरजोर कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो सका और पुलिस ने उसका राजफास कर उसे जेल की सलाखों के पिछे भेज दिया।




patna kalgirl